|  अभी दो दिन पहले ही पृथ्वीराज चौहान ने महोबा के 
बाहर पंचपहाड़ पर पड़ाव डाला था। तुर्की सेना का पीछा करते-करते वह रास्ता भूल कर 
महोबा पहुँच गए थे। साथ में सेनापति चामुण्यराय और सेना भी थी। उसी शाम को चंदेल राजकवि जगनीक पृथ्वीराज चौहान की अभ्यर्थना के लिए आया। उसने उनके 
गुणों की, वीरों की, धीरों की प्रसंशा की।
 जगनीक ने कहा, "आप की राजसभा तो मानो महोबे की राजसभा है।"
 जगनीक ने संजुक्ता के रूप गुण का बखान करते हुए कहा, "सुनकर उनका रूप कल्पना से 
चित्र आंका है अदभुत है वह।"
 फिर रानी मल्हना के रूप का वर्णन करते हुए कह दिया, "उनकी सुंदरता का कोई सानी 
नहीं।"
 पृथ्वीराज चौंक पड़े। उनको ईर्ष्या हुई पर एक प्रबल आकर्षण भी हुआ।
 मल्हना रानी पूजा कर भी नहीं पाईं थीं कि पृथ्वीराज चौहान की सेना ने कीरत सागर को 
घेर लिया। चामुण्यराय नेतृत्व कर रहे थे। पृथ्वीराज महोबे पर चढाई के लिए तैयार 
बैठे थे।
 स्त्री सैनिकों में एक सैनिका थी मछलदे- नख शिखा रूपणी दर्पिता। उसने अपने अश्व को 
तेज़ी से मोड़ा, दौड़ाती हुई परकोटे के अंदर लाल मिट्टी के टीले पर ले गई और वहाँ 
से उसका अश्व हवा में तैरता हुआ परकोटे के बाहर हो गया। पृथ्वीराज के सैनिक देखते 
ही रह गए। उसका अश्वा हवा से बातें करता हुआ सीधा परमाल के दरबार में रुका। आल्हा 
ऊदल और योद्धा वहीं थे।
 आल्हा ने उस तमतमाए चेहरे की शौर्य-वीर्य-साहस की 
प्रतिमा को देखा तो रीझ कर देखते ही रह गए।लेकिन जब उसकी बातें सुनी तो उनकी आँखों से गुस्से से चिनगारियाँ निकल पड़ीं।
 वह योद्धा तो मरने मारने को हमेशा तैयार ही रहते थे। आनन-फानन में उनकी सेना तैयार 
हो गई। रणनीति तय कर ली। युद्ध का धौंसा बज उठा। चंदेल योद्धा बड़ी हौंस से निकल 
पड़े साथ में पाँच "उड़न घोड़े" थे।
 आल्हा और उसके साथी सीधे सिंहद्वार की ओर गए जहाँ से पृथ्वीराज चौहान को रोकना था। 
ऊदल और साथी चामुण्यराय की ओर बढ़े। ब्रह्मा और साथी दूसरी ओर से सेना की ओर। रणजीत 
और अभय ऊदल के साथ थे। उन दो योद्धाआें की छपक-छपक चलती तलवार के सामने चौहान सेना 
के पैर उखड़ गए। वे दोनों काफ़ी अंदर घुस गए। चामुण्यराय ने अपनी सेना को भागते देख 
रणजीत और अभय के पीछे से घेरा बंद कर दिया। चामुण्यराय ने लगातार वार किए। रणजीत और 
अभय दोनों घायल हो गए। तभी क्रोध में ऊदल तेज़ी से चामुण्यराय की ओर बढा। उसकी मार 
को चामुण्यराय सँभाल नहीं पाया। वह और उसके सैनिक पीछे ही भागते गए और पड़ाव पर जा 
कर ही रुके।
 रणजीत और अभय ने रणभूमि में ही वीरगति प्राप्त की। पृथ्वीराज के बहुत सैनिक हताहत 
हो गए थे।
 पृथ्वीराज चौहान दिल्ली लौट गए।
 4 रक्षाबंधन के दूसरे दिन का सूरज नई खुशियों के साथ 
उगा। नए सिरे से धूमधाम के साथ कजली पूजा का आयोजन हुआ। स्त्रियों ने हरी-हरी 
चूड़ियाँ पहनी। हरी परिधान धारण किए। हरी चूनरी ओढ़ी। वह सावन की हरियाली की तदरूपा 
हो गईं। सुहागनों ने सुहाग की मनौती की, कुँवारियों ने अच्छे वर की कामना। हरे-हरे 
दोनों में रोपी गई धान की बालें (जवारे) उन्होंने लोगों को दिए जो लोगों ने कान के 
ऊपर खुरस लिए। जिस नवयुवती ने जिस नवयुवक को जवारे दिए उसकी बाँछें खिल गईं।कीरत सागर में मेला लग गया। जगह-जगह अखाड़े जम गए जो लोगों को बड़े प्रिय थे। लोगों 
की भीड़ उमड़ पड़ी।
 बुंदेलखंड में, खासकर महोबा में, आज तक कजली 
रक्षाबंधन के दूसरे दिन मनाई जाती है। उसके अगले दिन होता है "विजय दिवस" जिस पर 
कृतज्ञतायापन के लिए तांडव शिव की पूजा होती है। 5 यह बाद की बात है कि पृथ्वीराज चौहान ने दुबारा 
महोबा पर चढ़ाई की और विजय पाई। रानी मल्हना का भाई माहिल खलनायक सिद्ध हुआ। वह 
पृथ्वीराज से मिला हुआ था और इधर परमालदेव को आल्हा ऊदल के विरुद्ध भड़काता रहता 
था। यह जान कर कि वहाँ रहना ठीक नहीं, आल्हा ऊदल राजा जयचंद के यहाँ कन्नौज चले गए। 
जब पृथ्वीराज चौहान ने महोबे पर चढ़ाई कर दी तो परमाल ने आल्हा ऊदल को बुला भेजा। 
माँ के कहने पर वे महोबा आ गए। उसके बाद जो घमासान युद्ध हुआ वह राजपूतों में मिसाल 
माना जाता है। लेकिन आल्हा को छोड़ कर सब योद्धा- ऊदल, ब्रह्मा, मलखान, सुलखान, 
ढेवा, ताला और सैयद ने युद्ध में अपनी जान निछावर कर दी। आल्हा गुरु गोरखनाथ की शरण 
में जंगल चले गए। परमालदेव कलिंजर का पदार्पण हुआ और महोबा का प्रभुत्व समाप्त हो 
गया। एक किंवदंती के अनुसार दूसरी लड़ाई के पीछे एक 
प्रेम कहानी भी है। राजकुमार ब्रह्मा के तेज़ और शौर्य पर पृथ्वीराज चौहान की बेटी 
बेला मोहित हो गई थी। दोनों ने छुप कर विवाह कर लिया था, लेकिन पृथ्वीराज ने उनको 
मिलने नहीं दिया। बिल्कुल पृथ्वीराज-संजुक्ता का दर्पण प्रतिबिंब पर पृथ्वीराज का 
स्वरूप सर्वथा विपरीत। युद्ध में पृथ्वीराज के पुत्र ताहर ने ब्रह्मा को घायल कर 
दिया दूसरी और क्रोध में ऊदल ने ताहर का वध कर दिया। ब्रह्मा की मृत्यु हो गई और 
बेला सती हो गई। इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की विजय हुई। परमाल ने आल्हा ऊदल को 
कन्नौज से बुला भेजा लेकिन जीत फिर भी महोबा के हिस्से में नहीं आई।  |