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अभी मैं यह सोच ही रही थी कि किसी ने पीछे से आवाज़ दी, "एक्सक्यूज़ मी मिसेज़"  मैंने पलट कर देखा आवाज़ डस्टबिन मैन के पहनावे से मैच नहीं कर रही थी, क्यों कि आवाज़ ज़नानी थी।
"क्यों क्या बात है?" मैंने आवाज़ को संतुलित कर के कहा।
"आप से कुछ बात करनी है।" डस्टबिन मैन के पहनावे में खड़ी लंबी तड़ंगी उस औरत ने कहा।
"मैं जल्दी में हूँ ब्रिक्सटन में मेरा किसी से अपाइंटमेंट है।"
वह ज़रा हंसी । डस्टबिन मैन के उन कपड़ों में से आती वह मादक सी हंसी बड़ी भली सी लगी।
"वह बात नहीं है, आपने शायद मुझे पहचाना नहीं! " उसकी आवाज़ कुछ थर्राई और नम सी लगी, "मैं शुकराना हूँ।"

आज से ठीक छै साल पहले की बात है मेरे दोनों बच्चों की ए और ओ लेवेल की परीक्षा अगले साल होने वाली थी। सजग हिन्दुस्तानी मां होने के नाते मेरा ख्याल था कि उन्हें गरमियों की छुट्टियों में घर पर बैठ कर पढ़ाई करनी चाहिये। पर उन्होंने मेरी एक न मानी। दोनो ने हैरड्स डिपार्टमेंटल स्टोर में नौकरी के साथ-साथ शाम को कैरेबियन कारनिवल शो में डांस का रिहर्सल भी शुरू कर दिया। उस दिन मुझे उन्हें छोड़ने एअरपोर्ट जाना था। दोनों बच्चों ने मनुहार की कि डैडी को एअरपोर्ट छोड़ कर मैं सीधे घर जाने के बजाय पोरटोबेलो पहुंच जाऊँ क्यों कि उस दिन उनके कारनिवल का सबसे बड़ा शो होने वाला है। बच्चों को साढ़े छै से सात बजे के बीच आना था। अब यह एक घंटा कैसे बिताया जाये। मैं अभी वहाँ खड़ी यह सब सोच ही रही थी कि गाड़ी में बैठी रेडियो सुनती रहूँ या बाहर मैदान में टहलते हुए समय काटूँ, तभी एक बारह तेरह साल की लंबी सी लड़की ढ़ीला सा फ्रॉक पहने अपने छोटे भाई का हाथ पकड़े टहलती हुई दिखाई दी।

लड़की को शायद मुझे वहाँ देख कर कुछ कौतूहल सा हुआ। वह धीरे धीरे टहलते हुए अपने भाई के साथ मुझसे कुछ दूरी पर खड़े होकर मेरा निरीक्षण कर रही थी। मैंने इशारे से उसे पास बुलाया। शायद वह मेरे बुलाने भर का इंतज़ार कर रही थी। मैंने उससे पूछा, "क्या तुम यहीं रहती हो।" उसने क्षण भर को मुझे ऊपर से नीचे तक अजीब नज़रों से देखा फिर हाँ में सिर हिलाते हुए कहा, " तुम तो यहाँ के लिये बिलकुल नयी लगती हो? रास्ता भूल गयी हो क्या?" उसके प्रश्न पूछने के ढंग पर मुझे हंसी सी आगई। उसकी अंग्रेज़ी बता रही थी कि उसको खुद इस मुल्क में आए हुए साल दो साल से अधिक नहीं हुए होंगे।

मैंने मज़े लेते हुए कहा, "हाँ बात तो सही है पर पहले यह तो बताओ कि यहाँ पर कोई डीसेंट कैफे है क्या?"
"हाँ, हाँ, है क्यों नहीं? मैं एक कैफ़े जानती हूँ जो बहुत अच्छा है। जहाँ बड़े बड़े अंग्रेज़ काफी पीने आते हैं" और वह मुझे अपने साथ लेकर इस तरह चलने लगी मानो मैं कोई भटका हुआ राही हूँ। थोड़ी ही देर में हम एक रोड-साइड-कैफ़े के सामने खड़े थे। कैफ़े क्या था सड़क पर बने हुए कई छोटी-छोटी दुकानों के बीच एक चटक नीले रंग का कमरा जिसके बाहर बेकन और सासेज के तलने की तीखी दुर्गंध आ रही थी।

मैंने उससे कहा, "अरे नहीं, यहाँ नहीं।" उसे कुछ निराशा सी हुई। तभी मुझे अस्पताल का साइन दिखा मैंने उससे कहा, "चलो वहाँ चलते हैं। वहाँ साफ सुथरा और अच्छा कैफ़े होगा। खाने पीने की काफी वैराइटी होगी।" इतनी बड़ी जगह देखकर उसे कुछ घबराहट सी होने लगी और वह मेरे पीछे पीछे चलने लगी। जगह जगह लगे साइनबोर्ड से कैफ़े ढूँढने में मुझे कोई दिक्कत नहीं हो रही थी। और वह अपने बनाए हुए बाह्य व्यक्तित्व के घेरे से निकल कर सहज और सरल हो रही थी। चूँकि इस तरह के वातावरण से वह पूर्ण रूप से अनभिज्ञ थी। अत: अब वह मेरे साथ बिलकुल मुर्गी के चूज़े की माफिक चिपकी हुई चल रही थी। उसका भाई उसके साथ दुबका हुआ सा चल रहा था। कैफ़े सेल्फ सर्विस था। मैंने ट्रे में तीन कप काफी और तीन टुकड़े ब्लैक फॉरेस्ट गैटो रखा पेमेंट करने के बाद काँटे छुरी चम्मच और नैपकिन भी रखे। वह चकित सम्मोहित सी सब कुछ देखती रही। मैं काफी में चीनी नहीं लेती हूँ इसलिये चीनी के सैशे रखना भूल गयी। टेबल पर बैठते ही मुझे याद आया बच्चों को तो चीनी चाहिए ही होगी। अत: मैंने लड़की से कहा, " जाकर अपने और भाई के लिये चीनी ले आओ। देखो वहाँ उस डब्बे में सफेद और भूरी चीनी के सैशे रखे हुए हैं। काफी में ज्यादातर लोग भूरी चीनी डालते हैं पर तुम्हें अगर सफेद चीनी अच्छी लगती है तो वही ले लेना वर्ना दोनों ही ले लेना। तुम पढ़ तो सकती हो ना।" अभी तक मैंने उससे उसकी पढ़ाई के बाबत कुछ भी नहीं पूछा था। उसने सकारात्मक सिर हिलाया पर वह उठी नहीं। शायद उसका आत्मविश्वास डोलने लगा था या वह अंग्रेज़ी मे साक्षर नहीं थी।

मुझे उसका मनोविज्ञान कुछ कुछ समझ आ रहा था। अत: उसके कंधे पर स्नेह से हाथ रखते हुए मैंने कहा, "आओ मेरे साथ आओ। चीनी के कोई पैसे नहीं देने होते हैं। तुम जितना चाहो अपनी काफी में डाल सकती हो।" उसकी आँखों और चेहरे पर आई हुई खुशी की दमक मुझे अच्छी लग रही थी। मेरे खुद के अंदर एक अच्छी अनुभूति का सृजन हो रहा था।
"अ आपने यह सब केक और काफी हमारे लिये ख़रीदा है?"
"हाँ, आज तुम मेरी मेहमान हो। खाना खाओगी ?" मुझे उस बच्ची के हाव भाव के तरीके में आनंद सा आने लगा था।
"हाँ अगर आप खाएँगी तो।"
"अरे नहीं मैं तो वैसे भी कम ही खाती हूँ वह तो वक्त गुज़ारने के लिये कैफ़े ढूंढ रही थी। फिर अब तुम मिल गयी हो तो अच्छा लग रहा है। मुझे बच्चे अच्छे लगते हैं और तुम तो बहुत अच्छी लड़की हो।"
क्षण भर को उसकी आँखों में उदासी तिरी। फिर चहकती सी वह बोली, "क्यों क्या आपके बच्चे नहीं हैं?"
"हाँ क्यों नहीं, वह जो कार्निवल हो रहा है उसमें वे लोग डांस कर रहे हैं ना। वही तो देखने आई हूँ मैं।" मैंने उत्फुल्ल होकर कहा।

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