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सितंबर महिने की ग्यारह तारीख, साल २००१, मंगलवार
की सुबह। अमेरिका में चार प्लेन्स ने अपनी उड्डान शुरू की और अपनी राह बदल दी। आकाश
खुला था, सुबह खुशनुमा थी, मगर इरादे भयंकर थे। मनुष्य जीवन के इतिहास में आज की
तारीख सदा के लिए अंकित होने वाली थी। एक ऐसी घटना होने जा रही थी जिसमें हर जीवित
की ज़िंदगी एक ही दिन में पलट जानेवाली थी।
चार में से एक प्लेन अपना निशाना चूक गया। कहीं
खेत में जा कर गिरा। जो भी ज़िंदगियाँ थीं प्लेन में, भस्मीभूत हो गई।
शायद हम कभी पूरा जान नहीं पाएँगे : क्या हुआ? कैसे हुआ?
कल्पना के सहारे, जन्म लेती है एक कहानी : ''मरना है एक बार''
कहानी, एक उस उड़ान की, जो अपना निशाना चूक गई।
''अरे, रहमान, इतना घबरा क्यों रहा है?''
''अब्दुल, यह मशीन ज़ालिम-सी लगती है। मालूम नहीं क्या होगा। देख वहाँ, उस आदमी का
बैग खोला जा रहा है।'' अब्दुल और रहमान अंतिम चेक-पॉइंट पर खड़े थे जहाँ से एक्स-रे
मशीन में से गुज़रना था।
''देख, हमने अपने हैन्ड-बैग ठीक से तैयार किए है, कोई मशीन चिल्लाएगी नहीं। कुछ सोच
मत, चेहरे पर मुस्कान रख, और जब तेरी बारी आए तब गुड-मॉर्निंग बोलना मत भूलना,''
काँपते हुए रहमान को अब्दुल ने सांत्वना दी।
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