आगे खड़े थे अब्दुल, रहमान और
तारीक, खंजरों से सजे हुए। एन्ड्रयू, जॉनी और गुरजीत को वहाँ तक पहुँचना था, और
उनको वश में करना था।
गुरजीत ने कुछ तरकीब सोची। शायद ये हाइजैकर्स गुरजीत की ओर सहानुभूति भी दिखाए।
दिखावे में गुरजीत की मूँछ, दाढ़ी, और सर की पगड़ी ये हाइजैकर्स को कुछ अपनापन
महसूस कराये। और गुरजीत कुछ टूटी-फूटी हिंदी-पंजाबी-उर्दू में बोल सकता था जो इन
हाइजैकर्स को पसंद भी आए।
गुरजीत की काया बड़ी थी। ऊँचा था, और चौड़ा भी। इजाज़त लेने का कोई समय ही नहीं था।
गुरजीत खड़ा हो गया, और कुछ गड़बड़ी वाली भाषा में बोलते हुए निर्भयता से,
निश्चिंतता से, एक-एक कदम माप के अब्दुल की ओर बढ़ने लगा। पीछे-पीछे चल दिए
एन्ड्रयू और जॉनी, और कुछ और मुसाफिर।
अब्दुल को कुछ सोचने का वक्त नहीं
मिला। यकायक ये लोग क्यों आगे आ रहे थे? इस जलूस को रोकना होगा। वह खंजर को हवा में
घुमाते हुए ज़ोर-शोर से चिल्लाने लगा, ''रुक जाओ, वहीं रुक जाओ...''
यह जलूस रुकने वाला नहीं था।
अब्दुल ने गुरजीत पर खंजर से वार
किया। गुरजीत ने अपनी पगड़ी झट से खंजर के सामने रख दी। खंजर निशाना चूक गया।
गुरजीत के दायें हाथ पर घाव हो गया। लहू बहने लगा, और गिरी हुई केसरी पगड़ी लाल
होने लगी।
एन्ड्रयू और जॉनी ने रहमान और तारीक से मुकाबला किया।
''जॉनी, तुम झट से पायलट के केबिन
पहुँच जाओ।'' एन्ड्रयू ने जॉनी को हुक्म दिया। एन्ड्रयू ने रहमान और तारीक दोनों को
अपने साथ की लड़ाई में पिरो दिया। अब्दुल का गिरा हुआ खंजर एन्ड्रयू के हाथ में आया
था।
''गुरजीत, वो पगड़ी खोलो, हम उसका पट्टा बना के इन बदमाशों को बाँध देंगे,
''एन्ड्रयू बोल ही रहा था, और तारीक के नाम का एक खंजर एन्ड्रयू के सीने में घुस
गया।
जॉनी पायलट के केबिन की ओर आगे
बढ़ गया था।
जैसे ही केबिन का दरवाज़ा खोला तो जॉनी गिर गया। दोनों पायलट्स की लहू से भीगी हुई
काया ज़मीन पर अवरोध बन गई थी। गिरता हुआ जॉनी पायलट की सीट के नज़दीक आ पड़ा।
प्लेन और भी मचकने लगा। प्लेन के दोनों ओर के एंजिन आग की ज्वाला में लिपट गए थे और
काला घना धुआँ निकल रहा था। प्लेन आकाश से गिर रहा था। नीचे की ज़मीन साफ़-साफ़
दिखाई देने लगी थी।
अज़ीज़ को विघ्न आ गया। एक ओर
प्लेन अपने निशाने की ओर ले जाना था, और दूसरी ओर यह जॉनी नाम का बंदा आ टपक पड़ा।
अज़ीज़ ने पास रखे हुए खंजर से जॉनी पर वार किए। वही खंजर जिसने दोनों पायलट्स के
गले काट दिए थे।
जॉनी घायल हुआ, मगर खंजर अज़ीज़
के हाथ से छूटकर दो कदम दूर गिरा। हाथों-हाथों की लड़ाई हुई, किस्मत जॉनी के साथ
थी। अज़ीज़ गिरा, गिरे हुए खंजर की धार पर। अज़ीज़ के खंजर ने अज़ीज़ का गला काट
दिया। रक्त की धार हुई, और कटे हुए गले से आवाज आई, ''ओ खुदा, मैं आ रहा हूँ...''
प्लेन ज़मीन से कुछ पाँच सौ फीट ऊपर होगा। ज़मीन पर सब खेत दिखाई दे रहे थे। थोड़ी
दूर पेड़ों से भरा कुछ जंगल-सा दिखाई दे रहा था। शहर से दूर औ़र नीचे कोई हलचल नहीं
दिख रही थी।
अचानक जॉनी की नज़र कुछ मकानों पर
आ गिरी। ओह, ये तो स्कूल लगता है। कुछ बच्चे मैदान में खेल भी रहे थे। ये तो नहीं
हो सकता। बहुत से बच्चे होंगे स्कूल में। ये प्लेन स्कूल पर नहीं गिरेगा। ''ओ जीसस,
ये प्लेन को कुछ आगे बढा दे, '' जॉनी ने अपने भगवान से आखिरी विनती की।
प्लेन गिरा जंगल में आकर, निशाना चूक गया अपना, ना वो स्कूल पर गिरा ना वो
वाशिंग्टन पहुँचा।
जो भी प्लेन में थे, सब पहुँच गए
खुदा के घर।
आग के गोले में से कहीं अल्लाह की पुकार हो रही थी, कहीं जीसस की, कहीं वाहे-गुरु
की।
अब्दुल के हाथ सर पर बाँधी हुई पट्टी पर थे, गुरजीत की आंखें केसरी पगड़ी पर थी, और
एन्ड्रयू की नज़र 'कुरबानी' देख रही थी।
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