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पढ़ लिख कर सभ्यता में अज्ञानता को दूर कर ज्ञान का प्रकाश
चारों तरफ़ फैलाएँ। ऐसे ही बच्चों में रवीन्द्र प्रमुख था।
गरीब परिवार का रवीन्द्र, खुद अपने बलबूते पर पढ़ता चला गया।
जिस स्कूल का रिज़ल्ट कभी दस प्रतिशत से अधिक नहीं आया,
रवीन्द्र दसवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में पूरे जिले में
प्रथम आया। स्कूल के प्रधानाचार्य ने रवीन्द्र की प्रतिभा का
अवलोकन छोटी उम्र में ही कर लिया था, वह स्कूल की हर परीक्षा
में प्रथम रहता था। जिले में प्रथम आने पर रवीन्द्र का उत्साह
दुगना हो गया और अधिक लगन से पढ़ने लगा। प्रिंसिपल ने रवीन्द्र
के लिए छात्रवृति के लिए आवेदन किया और दौड़भाग कर दो वर्ष के
लिए छात्रवृति भी करवा दी। होनहार रवीन्द्र जोश, लगन और
प्रतिभा के बल पर आगे बढ़ता रहा और पढ़ाई के अंतिम शिखर पर
पहुँचकर उसने अपना ध्यान आई ए एस की परीक्षा पास कर एक अधिकारी
बनने पर केन्द्रित किया।
मुख्य
राजमार्ग पर बसे गाँवो का अधिकरण सरकार करने लगी और एक
औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना हुई। छोटे उद्योगों के साथ एक
विदेशी कंपनी ने कार बनाने के लिए ज़मीन ख़रीदी। कार बनाने के
कारखाने का निर्माण शुरू हो गया। यह एक बड़ी परियोजना थी। गाँव
के गरीब परिवारों को मज़दूरी मिल गई। दो साल बाद कारखाना तैयार
हो गया और गाँव के सभी नौजवानों की भरती कार बनाने के कारखाने
में हो गई।
बारहवी कक्षा
की बोर्ड परीक्षा समाप्त हो गई और रिज़ल्ट आने में दो महीने का
समय था। कारखाने में भरती पूरे जोश में थी। गाँव के दूसरे
नौजवान कारखाने में भरती हो रहे थे, लेकिन रवीन्द्र ने अपना
लक्ष्य आईएएस रख लिया था, वह नौकरी के लिए तैयार नहीं था। घर
में खाली बैठे पुत्र को कोई बरदाश्त नहीं करता है। उसे घर देख
माँ ने पिता से कहा, ''अजी सुनते हो, गाँव के सारे लड़के
कारखाने में भरती हो रहे हैं। अपना रबी घर पड़ा है, कुछ बात
करो उससे। अपना रबी तो प्रथम आता है, फेल लड़के सारे भरती हो
गए हैं, सुना है पाँच-पाँच हज़ार रुपये महीना तनखाह मिल रही
है, इसको तो अधिक तनखाह मिलेगी।
''तुम ठीक कहती हो, माँ, कल सरपंच भी कह रहा था, जल्दी भरती
बंद हो जाएगी, ऐसे घर बैठे इतनी बढ़िया नौकरी के मौके कभी-कभी
मिलते हैं।'' कह कर आवाज़ लगाई, ''रबी।''
रवीन्द्र
पढने में मस्त था, शायद उसे अहसास था कि पिता कारखाने में
नौकरी की बात करेंगे। इसलिए पिता की आवाज़ अनसुनी कर दी।
रवीन्द्र को पढ़ता देख माँ बाप दोनों बाहर आ गए।
''रबी परीक्षा समाप्त हो गई हैं, अब नौकरी कर ले, कारखाने में
सब लड़के भरती हो गए है, यह सुनहरा अवसर है, इसको गँवाना नहीं
है।''
''माँ मैं अभी पढ़ना चाहता हूँ, मुझे नौकरी नहीं करनी है।''
''तो क्या करेगा, रमाशंकर की आवाज़ तेज़ और कड़क हो गई।''
''मैं आईएएस अधिकारी बनना चाहता हूँ। उसके लिए अभी और पढ़ना
है।''
''देख रबी, हम कोई अमीर नहीं हैं। हम पढ़ाई का खर्च नहीं उठा
सकते हैं।''
''आप खर्च की चिन्ता मत करें। प्रिंसिपल साहिब ने कहा है कि वे
मेरी छात्रवृति की बात करेंगे।''
''देख रबी, तुझे घर के हालात तो मालूम है, तेरी दो बड़ी बहनों
और भाई की शादी में कर्ज़ लिया था, जो आज तक चुका नहीं पाया,
आधा खेत साहूकार पहले ही अपने नाम करवा चुका है। बाकी आधे खेत
से बहुत मुश्किल से घर का गुज़ारा होता है। साल दो बाद छोटी
बहन भी शादी लायक हो जाएगी। आखिर कैसे रकम का जुगाड़ करूँगा।
घर बैठे बिठाए इतनी अच्छी नौकरी मिल रही है, तू अभी जा और भरती
हो जा।''
रवीन्द्र ने
लाख समझाने की कोशिश की लेकिन सब बेकार, आखिर थक कर उसने
कारखाने में नौकरी कर ली। रवीन्द्र को स्टोर में ड्यूटी दी गई,
छ: हज़ार रूपये का वेतन पा कर घर वाले तो खुश हो गए, लेकिन
रवीन्द्र का मन दु:खी था। कंपनी में दो हज़ार लोगों को रोज़गार
मिला। रवीन्द्र स्टोर में बैठा वर्करों की वर्दी के कपड़ों के
लिए थान में से नाप के अनुसार कपड़ा फाड़ के बाँटा करता था, इस
काम से वह दु:खी था, लेकिन कुछ कर नहीं सकता था। दो महीने जैसे
तैसे काटे। बारहवी कक्षा की बोर्ड परीक्षा का रिज़ल्ट घोषित
हुआ। दसवी कक्षा में रवीन्द्र जिले में प्रथम आया था, इस बार
वह पूरे राज्य में प्रथम रहा। राज्य सरकार ने आगे पढ़ने के लिए
छात्रवृति की छोषणा की, जिससे उत्साहित होकर रवीन्द्र ने कॉलिज
मे दाखिला लिया और नौकरी छोड़ दी। नौकरी छोड़ने की ख़बर मिलते
ही रवीन्द्र के माता पिता दोनों बहुत नाराज़ हुए और प्रिंसिपल
को कोसने लगे।
''आग लगे
नाशपीटे प्रिंसिपल को, रबी की बुद्धी ख़राब कर दी है, कहता है,
नौकरी नहीं करेगा।'' माँ ने क्रुद्ध हो कर कहा तो जवाब में
रमाशंकर खूँखार शेर की तरह दहाड़ने लगा, ''अभी जा कर हरामज़ादे
प्रिंसिपल की ख़बर लेता हूँ। अपने को क्या समझता है।'' कह कर
रमाशंकर तमतमाता हुआ घर से निकला और अपने साथ दो तीन पड़ोसियों
को भी साथ ले लिया। प्रधानाचार्य को स्कूल परिसर में ही दो
कमरों का क्वार्टर मिला हुआ था, जहाँ वह सपरिवार रहता था। वहाँ
पहुँचते ही गालियों की बौछार के साथ प्रिंसिपल को खूब बुरा-भला
कहा। प्रिंसिपल ने बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन को प्रभाव
पड़ा। थक हार कर प्रिंसिपल ने कहा कि आपका लड़का है, जो आप
उचित समझे, वही करें।
घर पहुँच कर
रमाशंकर ने रवीन्द्र को हिदायत दी कि आगे पढ़ने की को ज़रूरत
नहीं है, नौकरी दुबारा शुरू कर दे। रवीन्द्र को कुछ भी नहीं
सूझ रहा था। वह प्रिंसिपल से मिला कि उसे क्या करना चाहिए, यदि
वह नौकरी करता है, तब पढ़ाई को अलविदा कहना होगा। घर की आर्थिक
स्थिति को देखते हुए परिवार के साथ रह कर आगे की पढ़ाई नहीं कर
सकता है। घर से दूर रह कर अपना जीवन निर्वाह कैसे करेगा।
प्रिंसिपल ने समझाया कि उसकी छात्रवृत्ति पढ़ाई का खर्च सहन कर
लेगी, यदि वह अपने परिवार को समझा सके तो उसके भविष्य के लिए
उत्तम रहेगा। लेकिन रवीन्द्र का परिवार अपने फ़ैसले पर अड़िग
रहा।
''रबी कान
खोल कर सुन ले। आगे पढ़ाई की कोई ज़रूरत नहीं है। नौकरी करेगा
तो पैसे कमाएगा। पढ़ाई करेगा तो पैसे खर्च होंगे। जितने साल
पढ़ने में लगाएगा, तब तक कम से कम दो लाख रूपये बचा लेगा। तू
अब पढ़ लिख गया है, अपने आप हिसाब लगा ले। रोटी घर से निकल
आएगी। पूरा वेतन बचाएगा।''
''लेकिन मैं आगे नहीं बढ़ पाऊँगा। कारखाने की नौकरी में पूरी
ज़िन्दगी क्लर्क बन कर रह जाऊँगा।''
''तो क्या लाटसाब बनेगा।'' रमाशंकर बिगड़ कर बोला।
''मैं आईएएस अफ़सर बनना चाहता हूँ।''
''उस पागल प्रिंसिपल की बातों में आ कर तू भी पागल बन गया है।
लगता है, अपने पैरों पर कुल्हारी मारने का शौक हो रहा है,
लेकिन कान खोल कर सुन ले रबी। इस घर में रहना है तो पढ़ने का
भूत उतारना होगा।'' रमाशंकर ने धमकी दी।
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