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मुख्य
राजमार्ग से कटती एक संकरी सड़क आठ किलोमीटर के बाद नहर पर
समाप्त हो जाती है। नहर पार जाने के लिए कच्चा पुल एकमात्र
साधन है। जब नहर में अधिक पानी छोड़ा जाता है, तब पुल टूट जाता
है और नाव से नहर पार जाया जाता है। यह अस्थायी पुल जिसे नहर पार
के गाँववाले खुद बनाते हैं, बरसात के महीनों में भी अधिक
पानी के आ जाने पर टूट जाता है। सरकार ने कभी पुल को पक्का
करने की नहीं सोची। नहर के पार गाँवों में गरीब परिवारों की
संख्या अधिक है। आधे छोटे खेतों में फसल बो कर गुज़ारा करनेवाले हैं और आधे दूध बेचने का काम करते हैं। गाय, भैंसें पाल
रखी हैं, जिनका दूध वे मुख्य राजमार्ग पर बसे शहर में बेचने
जाते हैं।
शिक्षा से
गाँव वालों का दूर-दूर तक को वास्ता नहीं है। ऐसा लगता था, कि
नहर पार आधुनिक सभ्यता ने अपने पैर अभी तक नहीं रखे हैं। नहर
से पहले गाँव में एक स्कूल है, जहाँ नहर पार गाँव के बच्चे
इसलिए पढने जाते हैं, क्योंकि सरकारी स्कूलों में मुफ्त शिक्षा
और दोपहर का खाना मिलता है। इसके अतिरिक्त गाँव वाले अपने
बच्चों को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते, जब को बच्चा
फेल हो जाता है तो स्कूल से निकाल लिया जाता है।
इस सबके
बावजूद कुछ बच्चों पर सरस्वती मेहरबान होती है, प्रकृति चाहती
है, कि |