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ख़बर आग की तरह फैल गई। लोगों के झुंड के झुंड कुएँ की तरफ़ जा रहे थे। पानी का घड़ा उठाए जसोदा ने जाते हुए लड़के से पूछा, ''क्या है?''
''रति मर गई।'' इतना कहकर लड़का उस दिशा में भाग गया जहाँ सब जा रहे थे। जसोदा के पैरों तले की ज़मीन खिसक गई। लड़के के शब्द दिलो-दिमाग में गूँज रहे थे- ''रति मर गई?''
जसोदा भारी मन घर पहुँची। लखिया खटिया पे बैठा-बैठा बीड़ी फूँक रहा था। उसका बेपरवाह चेहरा जसोदा को बड़ा क्रूर लगा। घड़े से पानी उड़ेलते हुए उसने कहा, ''रति नहीं रही।''
''लखिया ने बीड़ी का ज़ोरदार कस खींचा, धुएँ का गुब्बार उड़ाते हुए बोला, ''अच्छा ही हुआ मौत में शांति।''

जसोदा के हाथ से घड़ा गिरकर टुकड़े-टुकड़े हो गया। क्रोध के मारे शरीर काँपने लगा। लखिया के शब्दों में रही सही संबंधों की डोर तोड़ दी थी। घड़ा रख के घर से बाहर जाने लगी तो लखिया चिल्लाया, ''कहाँ जा रही हैं?''
''रति के घर।''
''चुपचाप घर में बैठ जाओ वरना टाँगे तोड़ दूँगी कहीं नहीं जाना.... सुन लिया तुमने?''
''आज जसोदा के शरीर में न जाने कौन-सी शक्ति आ गई थी उसने एक नज़र लखिया पे डाली जैसे उसे धिक्कार रही हो। दूसरे ही क्षण जाँपा खोलकर हनहनाती हुई बाहर हो गई। लखिया भौंचक्का-सा देखता रह गया।

गाँव भर को शक था कि रति मरी नहीं, मारी गई है। पुलिस के आत्महत्या की रिपोर्ट दर्ज की और केस फाइल कर दिया। नारायण साधारण आदमी था, उसकी कौन सुनता और फिर नारायण का साथ देकर मूर्ख ही होगा जो चौधरियों से बैर मोल लेगा। चौधरी हरीराम की कोठी पर जलसा था। उसकी राह का काँटा इतनी आसानी से निकल जाएगा, सपने में भी सोचा न था।

लखिया ने प्रणाम करते हुए कहा, ''चौधरी साहब राम राम, अब तो आपकी सरपंची पक्की, हुजूर कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं हुई। पुरा गाँव मानता है कि रत्ती ने आत्महत्या कर ली है। न रहा बाँस न बजेगी बाँसुरी।
चौधरी ने होंठों पे अंगुली दबाते हुए लखिया से कहा, ''चुप कर, मूर्ख दीवारों के भी कान होते हैं।''
''हुजूर, अब तो नारायण का खेत मुझे दिलवा दीजिए।''
''शांति रख, अभी मामला ठंडा होने दें। वो खेत अब तेरा ही हैं न।''

लखिया का चेहरा खुशी से फूल गया। चौधरी के कदमों में अपना सर रखकर प्रार्थना करने लगा, ''जुग जुग जियो, हुजूर, जुग जुग जियो।'' गरीब अल्प धन को प्राप्त करके भी कुबेर के ख़ज़ाने की प्राप्ति के बराबर खुश होता है। असल में चौधरियों के खेत सीलींग एक्ट के तहत सरकार ने हरिजनों के नाम कर कर दिए थे। आज़ादी के पचास वर्ष बाद भी इन खेतों के असली मालिक अब भी चौधरी बने हुए हैं। रती ने नारायण के नाम वाला टुकड़ा अपने अधिकार में कर लिया था। चौधरी को ये डर था कि रती धीरे-धीरे सब को भड़का गई और अगर सरपंच बनीं तो ये काम वो बड़ी आसानी से कर देगी। रती का मरना चौधरियों के लिए आशीर्वाद था।

लखिया ये खुश ख़बरी जसोदा तो देना चाहता था। वह दौड़ता हुआ घर पहुँचा। आज तो मैं बड़ा खुश हूँ जसोदा। मेरे वर्षों का सपना पूरा हो गया। जानती हो, नारायण वाला खेत चौधरी ने अपने नाम कर दिया है।'' लखिया के चेहरे पर संतोष और सफलता की खुशी थी। जसोदा को काटों तो खून नहीं, उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। लखिया ने अब नीचता की हद पार कर दी थी। कल तक जिसकी दोस्ती की सौगंध खाता था, आज उसी का घर लूटने चला हैं। अब इस घर में उसका दम घुटने लगा था।'' लखिया के प्रति रहासहा सम्मान भी अब खत्म हो गया उसने धिक्कारते  हुए लखिया से कहा, ''भाड़ में जाए तेरा खेत और तेरा चौधरी। तू इंसान नहीं है, कुत्ता है कुत्ता, एक बात कान खोल कर सुन ले आज के बाद इस घर में चौधरी का एक दाना नहीं आएगा... वरना मैं...।''
बीड़ी को ज़मीन में बुझा कर लखिया जोश में बोला, ''वरना क्या साली क्या कर देगी। मर्दों के सामने हेकड़ी करेगी तो तेरा भी वही हाल होगा जो...।''
जसोदा ने हाथ में कुल्हाड़ी उठा ली थी। आज वो शेरा भवानी की तरह खूँखार लग रही थी। उसकी आँखों में अग्नि ज्वालाएँ फूट रही थी। लखिया ने जसोदा के इस रूप को देखा तो ... हाथ पाँव फूल गए। जोश ठंडा पड़ गया।
जसोदा फिर चीखी, ''सच बता तुमने ही रती को मारा है न? पूरे गाँव से कहूँगी हरामखोर तू हत्यारा है, हत्यारा। रती रती नहीं थी..देवी थी देवी। दुष्ट तुने ही देवी को मारा है देवी को।''

जसोदा चीखे जा रही थी। लखिए ने अरजण भूतों के यहाँ इसी तरह भूत लगे लोगों को चीखते देखा है। तो भागकर जापे से बाहर हो लिया। आसपास में आग की तरह ख़बर फैल गई। जसोदा को रती का भूत लगा है। आग पानी और ख़बर को फैलते देर नहीं लगती। कुछ ही क्षणों में सैंकड़ों का समूह इकट्ठा हो गया। लोग तरह-तरह की सलाह दे रहे थे। कुछ कह रहे थे अरजण भूते को बुलाओ। कुछ कह रहे थे डॉक्टर के पास ही जाना चाहिए। भीड़ में सबसे आगे खड़ा था- देसाई। उसने लखिए से बेतकल्लुफ़ होकर पूछा, ''कहाँ है तेरी लुगाई? प्रश्न का उत्तर जसोदा ने दिया, ''ये रही बोलो किसको काम है?''

जसोदा के मुँह में ज़बान देखकर पूरा समूह हतप्रभ-सा रह गया। उसके बाल निखरे हुए थे। उसकी आँखें लाल हो रही थी। उसने भीड़ के बीच आकर तकरीर शुरू की। भीड-भौचक्की-सी सुनने लगी, ''मार दिया रती को भी मार दिया, आप रती कल जसोदा, परसों गंगा जमना सबकी बारी आएगी। रती साधारण स्त्री नहीं थी, देवी थी देवी उसने हम सब को जगाने के लिए अपनी आवाज़ उठाई। हमें अधिकार मिले इसलिए तो लड़ती रही। खेत हम बोते हैं, धान चौधरी लेती है। पंचात हमारी हैं, सरपंच चौधरी होता है, मिट्टी का तेल सरकार देती है। पी चौधरी जाता है, कब तक? कब तक? मुर्दों की तरह जिओगे। उठो देवी रती तुम्हें उठने का आदेश दे गई हैं, बोलो रती देवी की जय। सभा में गूँज उठी- जय हो। जय हो।''

मैं बनूँगी सरपंच मैं देखती हूँ कौन-सी ताकत मुझे रोकती हैं।'' जसोदा की साँस फूल रही थी, उसका संपूर्ण शरीर काँप रहा था। लोगों में कानाफूसी होने लगी थी। ऐसी तकरीर पहले किसी से सुनी नहीं थी। ये तो कोई चमत्कारी स्त्री ही कर सकती हैं। देसाई ने खींचकर लखिया को जसोदा के सामने ला खड़ा किया। देसाई चीखा, ''दुष्ट तेरे कारण पूरे गाँव का अनिष्ट होता, जसोदा देवी तो चमत्कारी है, माफ़ी माँग उनसे।'' लखिया हाथ जोड़े बड़बड़ा रहा था। ''माफ़ कर दो माँ, मैं माफ़ी चाहता हूँ।'' भीड़ में फिर एक नारा गूँजा, ''हत्यारों को फाँसी हो फाँसी हो भई फाँसी हो।'' देवी जसोदा अमर रहे- अमर रहे भई अमर रहे।

इस गूँज ने चौधरियों के हवेलियों के कंगूरे हिला दिए, आवाज़ इतनी बुलंद थी कि हवेलियों के प्राचीर काँप उठे।

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१७ अगस्त २००९

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