लौटकर विजय फिर से उसी खाली कुर्सी पर बैठ
गया। तभी दूध के काउंटर पर शोर के कारण विजय उस ओर देखने के
लिए बाध्य हो गया। एक बार फिर उसकी नज़र उस व्यक्ति पर पड़ी,
जो आधे घंटे पहले विजय से सहायता की याचना कर रहा था। दूध वाला
चिल्ला रहा था, "तुम जैसे लोगों के
लिए यहाँ कोई दूध-वूध नहीं है।'' वह छोटा लड़का फिर से रोने
लगा था। उसकी माँ ने उसे कसकर गोद में ले लिया। वह भी शायद
फूट-फूट कर रोना चाहती थी, परंतु मुँह से आवाज़ ने साथ छोड़
दिया था। बस आँख से गंगाजल सदृश्य अश्रुधारा फूट पड़ी थी।
हाँ, शोर के कारण कुछ ज़्यादा लोग
ही जुट
गए थे। दूध के काउंटर वाला दुकानदार, तमिल में लोगों को बता
रहा था कि ये लोग सुबह भी बच्चे का बहाना लेकर दूध ले गए थे और
अब फिर आकर सामने खड़े हो गए। ये दुकान है, कोई धर्मालय नहीं।
विजय ने देखा, वह आदमी बस हाथ जोड़े उसके सम्मुख खड़ा था। कुछ
लोग, भीड़ से उसे कुछ कहने लगे।
''मैं क्यों उधर देख रहा हूँ?
अभी एक घंटा और है, चलो पूल भी हो जाए।'' विजय ने फिर मन को
समझाया। वह इतना पूल तो खेलता नहीं था, फिर भी समय व्यतीत
करने के लिए प्रयोग करने में कोई बुराई न थी। एक घंटे से भी
कम समय में विजय वापस लौट आया। अभी आधा घंटा शेष था, ट्रेन
के आने में। कुर्सी अभी तक खाली थी। विजय पुनः खाली कुर्सी पर बैठ गया। उसने इधर-उधर
देखा, वे लोग भी वहाँ से जा चुके थे।
'कुछ भोजन कर लिया जाए। ये बर्गर-चाय के भरोसे तो सफ़र का आरंभ
नहीं किया जा सकता।'' विजय ने मन ही मन सोचा। परंतु भोजन के
नाम पर उस छोटे बच्चे का चेहरा उसे वापस याद आ गया। उस बच्चे
के बहते आँसू और उसकी माँ का उसे गोद में कसकर पकड़ना सांत्वना
देना, उसे भूल पाने में विजय असमर्थ होता जा रहा था। फिर भी पग
भोजन की दिशा में ही पड़ रहे थे।
''एना वेणु (तमिल), क्या चाहिए, वॉट डू यू वांट सर?'' एक साथ
समस्त भाषाओं का प्रयोग कर दुकानदार ने विजय की तंद्रा तोड़नी
चाही।
''खाने में क्या है?'' विजय इस समय किसी नये प्रयोग के पक्ष में
नहीं था।
''वेज बिरयानी, दोसा, इडली, बड़ा, चपाटी...'' दक्षिण भारतीय
आहारों के मुख्य समस्त अवयव उपलब्ध थे।
''एक वेज बिरयानी'' जाँचा परखा भोजन ही करना उपयुक्त था।
''बाईस रुपए'' कहते हुए दुकानदार ने एक प्लेट विजय की तरफ़ आगे
बढ़ा दी। विजय ने जेब से बाइस रुपए निकालकर दुकानदार को दे
दिये।
प्लेटफार्म नंबर एक पर थोड़ा
अंधेरा था। विजय ने सोचा कि भीड़ न होगी, वहीं पर भोजन कर लेना
उचित होगा।
खाली पड़ी लंबी बेंच पर विजय बैठ गया। अभी प्लेट का कवर ही हटा
रहा था कि आगे बेंच पर किसी के सिसकने की आवाज़ ने उसे रोक
दिया।
''हम बिना टिकट लिए ही वापस चले जाएँगे। अपने घर, बस इसके लिए
फिर एक बार किसी से कहिए ना। मैं दूधवाले के पाँव पर गिर
जाऊँगी।'' वही औरत की आवाज़ थी, ''अब मेरी चिंता मत करो। मैं
चलूँगी। बस एक बार यह कुछ खा लेगा, तो यह भी चलेगा। हम अब एक
पल भी न रहेंगे।'' आदमी निःशब्द था। बच्चा भी निःशब्द था। शायद
अब कुछ करने व कहने की सामर्थ्य वह खो चला था।
विजय ने खुला हुआ कवर बंद किया और
उनकी तरफ़ जाकर वेज बिरयानी का प्लेट उन्हें पकड़ा दिया।
''........'' निःशब्द ने निःशब्दता को प्रणाम किया। सभी के
चेहरे सारे भाव स्पष्ट प्रकट कर रहे थे, परंतु जिह्वा अचल।
नेत्र जलमय थे।
तभी उद्धोषणा हुई कि राप्तीसागर प्लेटफार्म नंबर ६ पर आ रही है।
विजय ट्रेन की दिशा में बढ़ गया।
सभी जल्दी में थे। यथाशीघ्र
अपने बर्थ में बैठने की लालसा। विजय भारी कदमों से धीरे धीरे
अपने डिब्बे की ओर बढा। परंतु समय से अपनी बर्थ पर पहुँच गया।
अपने के व्यवस्थित कर खिड़की से बाहर झाँका। वह व्यक्ति अपनी पत्नी व बच्चे के
साथ अनारक्षित कोच की तरफ़ जा रहा था। हाथ में वेज-बिरयानी का
प्लेट अभी भी बच्चे के साथ था।
थोड़ी देर में ट्रेन ने
चेन्नई
सेंट्रल छोड़ दिया। विजय ने हैंडबैग से किताब निकाली।
'यह जीवन तो एक रेलगाड़ी के सदृश्य है, जो एक स्टेशन से चलकर
गंतव्य तक जाती है...।''
किताब पढ़ते-पढ़ते विजय बर्थ
पर सो गया था। |