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                    '' मेरी मौजूदगी में, मुझसे ही 
                    अपनी इस वाहियात महत्वाकांक्षा को ज़ाहिर करने की हिम्मत तो 
                    तुममें है, लेकिन गालियाँ देने की नहीं!…कमाल है।'' बूढ़ा लगभग 
                    डाँट पिलाते हुए उससे बोला। युवक पर लेकिन लीचियों की इस बार की ज़ोरदार उछाल का कोई असर न 
                    पड़ा। वह जस का तस बैठा रहा। बोला,''बात को समझने की कोशिश 
                    कीजिए प्लीज़!…पुराना ज़माना गया। यह नए मैनेजमेंट का ज़माना 
                    है, पॉलिश्ड पॉलीटिकल मैनेजमेंट का। अकॉर्डिंग टु दैट- आजकल 
                    दुश्मन वह नहीं जो आपको सरे-बाज़ार गाली देता फिरे; बल्कि वह 
                    है जो वैसा करने से कतराता है…''
 ''अच्छा मज़ाक है…।'' बूढ़ा हँसा।
 ''मज़ाक नहीं, हकीक़त है!'' युवक आगे बोला,''मैं बचपन से ही 
                    आपके आर्टिकल्स पढ़ता और सराहता आ रहा हूँ। मानस-पुत्र हूँ 
                    आपका…।''
 ''फिर फालतू की बातें…''
 ''देखिए, लोगों के चरित्र में इस सदी में गज़ब की गिरावट आई है। 
                    दुनियाभर के साइक्लॉजिस्ट्स ने इस गिरावट को अण्डरलाइन किया 
                    है। आप एक मज़बूत साहित्यिक हैसियत के आदमी हैं। चौबीसों घण्टे 
                    आपके चारों तरफ़ मँडराने, आपकी जय-जयकार करते रहने वाले आपके 
                    प्रशंसकों में कितने लोग मुँह में राम वाले हैं और कितने बगल 
                    में छुरी वाले- आप नहीं जान सकते। इस योजना के तहत उक्त 
                    अध्यक्ष-पद से मैं आपको ऐसी-ऐसी बढ़िया और इतनी ज़्यादा गालियाँ 
                    दूँगा…लोगों के अन्तर्मन में दबी आपके खिलाफ़ वाली भावनाओं को 
                    इतना भड़का दूँगा कि खिलाफ़त की मंशावाले सारे चूहे बिलों से 
                    बाहर आ जाएँगे…मेरे साथ आ मिलेंगे…''
 ''यानी कि एक पंथ दो काज।'' चश्मा बोला,''साँप भी मर जाएगा 
                    और…''
 ''साँप?…मैं आपके बारे में ऐसा नहीं सोच सकता।'' युवक ने कहा।
 ''नहीं सोच सकते तो गालियाँ दिमाग के किस कोने से क्रिएट 
                    करोगे?''
 ''यह सोचना आपका काम नहीं है।''
 ''अच्छा! यानी कि मुझे यह कहने या जानने का हक भी नहीं है कि 
                    मुझे गालियाँ देने की अनुमति मुझसे माँगने वाला शख़्स वैसा 
                    करने में सक्षम नहीं है।''
 ''कुछ बातें मौके पर सीधे सिद्ध करके दिखाई जाती हैं, बकी नहीं 
                    जातीं।''
 ''यानी कि खेल में बहुत आगे बढ़ चुके हो!''
 ''आपके प्रति अपने मन में जमी श्रद्धा की खातिर।''
 ''तुम्हारे मन में जमी श्रद्धा के सारे मतलब मैं समझ रहा 
                    हूँ।'' चश्मे ने कहा,''बेटा, मुझे गालियाँ बककर दिल की भड़ास भी 
                    निकाल लोगे और मेरी नजरों में भले भी बने रहोगे, क्यों?''
 उसके इस आकलन पर चंगेजी-मूल का दिखनेवाले उस युवक को लाल-पीले 
                    अन्दाज़ में उछल पड़ना चाहिए था, या फिर वैसा नाटक तो कम से कम 
                    करना ही चाहिए था; लेकिन उसने ये दोनों ही नहीं किए। अविचल 
                    बैठा रहा।
 बूढ़े ने एकाएक ही दोनों 
                    हथेलियों को अपने सीने पर ऊपर-नीचे सरकाकर ऊपर ही ऊपर जेबें 
                    टटोल डालीं। टटोलते-टटोलते ही वह खड़ा हो गया और ऊपर ही ऊपर 
                    पेंट की जेबों पर भी हथेलियाँ सरकाईं। फिर दायीं जेब से पर्स 
                    बाहर निकालते हुए बुदबुदाया,''शुक्र है, यह जेब में चला 
                    आया…मेज की दराज़ में ही छूट नहीं गया।''''अरे…पर्स क्यों निकाल लिया आपने?'' युवक दबी जुबान में लगभग 
                    चीखते हुए बोला।
 ''अब…यह चला आया जेब में तो निकाल लिया।'' पर्स को अपने सामने 
                    मेज़ पर रखकर वापस कुर्सी पर बैठते हुए बूढ़ा बोला।
 ''अब आप इसे वापस जेब के ही हवाले कर दीजिए प्लीज़।'' युवक 
                    आदेशात्मक शाही अंदाज़ में फुसफुसाया।
 ''एक बात कान खोलकर सुन लो…'' बूढ़ा कड़े अंदाज़ में बोला,''कितने 
                    भी बड़े तीसमार खाँ सही तुम…तुम्हारी किसी भी बात को मानने के 
                    लिए मजबूर नहीं हूँ मैं।''
 ''दिस इज़ अ रिक्वेस्ट, नॉट अन ऑर्डर सर!'' युवक ने हाथ जोड़कर 
                    कहा।
 ''तुम्हारी हर रिक्वेस्ट को मान लेने के लिए भी मैं मजबूर नहीं 
                    हूँ।'' बूढ़ा पूर्व-अंदाज़ में बुदबुदाया; और युवक कुछ समझता, 
                    उससे पहले ही उसने सौ रुपए का एक नोट पर्स से निकालकर कॉफी के 
                    बर्तन रखी ट्रे में डाल दिया।
 ''यह…यह क्या कर रहे हैं आप?'' उसके इस कृत्य से चौंककर युवक 
                    बोल उठा।
 ''अब सिर्फ़ पाँच मिनट बचे हैं तुम्हारे पास।'' उसकी बात पर 
                    ध्यान दिए बिना वह निर्णायक स्वर में बोला।
 ''यह ओवर-रेस्पेक्ट का मामला बन गया स्साला…और ओवर-कॉन्फिडेंस 
                    का भी।'' साफ़ तौर पर उसे सुनाते हुए बेहद खीझ-भरे स्वर में 
                    युवक बुदबुदाया, ''बेहतर यह होता कि आपको विश्वास में लेकर काम 
                    की शुरुआत करने की बजाय, पहले मैं काम को अंजाम देता और आपके 
                    सामने पेश होकर बाद में अपनी सफ़ाई पेश करता। इस समय पता नहीं 
                    आप समझ क्यों नहीं पा रहे हैं मेरी योजना को?''
 ''कैसे समझूँ? मैं राजनीतिक-मैनेजमेंट पढ़ा हुआ नई उम्र का लड़का 
                    तो हूँ नहीं, बूढ़ा हूँ अस्सी बरस का! फिर, पॉलिटिकल आदमी नहीं 
                    हूँ…लिटरेरी हूँ।'' दूर खड़े बेयरे को ट्रे उठा ले जाने का 
                    इशारा करते हुए चश्मे ने कहा। बेयरा शायद आगामी ऑर्डर की 
                    उम्मीद में इनकी मेज़ पर नज़र रखे था। इशारा पाते ही चला आया 
                    और ट्रे को उठाकर ले गया।
 ''न समझ पाने जैसी तो कोई बात ही इस प्रस्ताव में नहीं है।'' 
                    युवक बोला,''मूर्ख से मूर्ख…''
 ''शट-अप…शट-अप। गालियाँ देने की इज़ाज़त मैंने अभी दी नहीं है 
                    तुम्हें।''
 ''ओफ् शिट्!'' दोनों हथेलियों में अपने सिर को पकड़कर फ्रेंचकट 
                    झुँझलाया,''यह मैं गाली दे रहा हूँ आपको?''
 ''तुम क्या समझते हो कि मेरी समझ में तुम्हारी यह टुच्ची भाषा 
                    बिल्कुल भी नहीं आ रही है?''
 ''इस समय तो आप मेरे एक-एक शब्द का गलत मतलब पकड़ रहे हैं।'' वह 
                    दुखी अन्दाज़ में बोला,''इस स्टेज पर मैं अगर अपनी योजना को 
                    ड्रॉप भी कर लूँ तो आपकी नज़रों में तो गिर ही गया न…विश्वास 
                    तो आपका खो ही बैठा मैं!''
 इसी दौरान बेयरा ने ट्रे में 
                    बिल, बाकी बचे पैसे और सौंफ-मिश्री आदि लाकर उनकी मेज़ पर रख 
                    दिए।''ये सब अपनी जेब में रखो बेटे और ट्रे को यहीं छोड़ दो।'' 
                    बकाया में से पचास रुपए वाला नोट उठाकर अपनी जेब के हवाले करके 
                    शेष रकम की ओर इशारा करते हुए बूढ़े ने बेयरा से कहा। एकबारगी 
                    तो वह बूढ़े की शक्ल को देखने लगा, लेकिन आज्ञा-पालन में उसने 
                    देरी नहीं की।
 उसके चले जाने के बाद बूढ़े ने 
                    फ्रेंचकट से कहा,''बिल्कुल ठीक कहा। मेरी नजरों में गिरने और 
                    मेरा विश्वास खो देने के जिस मकसद को लेकर यह मीटिंग तुमने रखी 
                    थी, उसमें तुम कामयाब रहे। मतलब यह कि गालियाँ तो अब 
                    सरे-बाज़ार तुम मुझे दोगे ही।…अब तुम मेरी इस बात को सुनो—यह 
                    रिस्क मैं लूँगा। हिंदी भवन वाले कार्यक्रम में मैं नहीं 
                    जाऊँगा। अध्यक्ष बन जाने का जुगाड़ तुम कर ही चुके हो और मुझे 
                    गालियाँ बककर मेरे कमज़ोर विरोधियों का नेता बन बैठने का 
                    भी;…लेकिन मैं परमिट करता हूँ कि उस कार्यक्रम के अलावा भी, 
                    तुम जब चाहो, जहाँ चाहो…और जब तक चाहो मेरे खिलाफ़ अपनी भड़ास 
                    निकालते रह सकते हो।…तुम्हारे खिलाफ़ किसी भी तरह का कोई बयान 
                    मेरी ओर से जारी नहीं होगा। हाँ, दूसरों की ज़िम्मेदारी मैं 
                    नहीं ले सकता।''''भड़ास नहीं सर, यह हमारी रणनीति का हिस्सा है।'' पटा लेने की 
                    आश्वस्ति से भरपूर फ्रेंचकट प्रसन्न मुद्रा में बोला।
 ''हमारी नहीं, सिर्फ़ तुम्हारी रणनीति का।'' चर्चा में बने 
                    रहने का एक सफल इन्तज़ाम हो जाने की आश्वस्ति के साथ बूढ़ा 
                    कुर्सी से उठते हुए बोला,''बहरहाल, तुम अपने मकसद में कामयाब 
                    रहे…क्योंकि मैं जानता हूँ कि ऐसा न करने के लिए मेरे 
                    रोने-गिड़गिड़ाने पर भी तुम अब पीछे हटने वाले नहीं हो।''
 युवक ने इस स्तर पर कुछ भी बोलना उचित न समझा। बूढ़ा चलने लगा 
                    तो औपचारिकतावश वह उठकर खड़ा तो हुआ, लेकिन बाहर तक उसके साथ 
                    नहीं गया। बूढ़े को उससे ऐसी अपेक्षा थी भी नहीं शायद। समझदार 
                    लोग मुड़-मुड़कर नहीं देखा करते, सो उसने भी नहीं देखा।
 'खुद ही फँसने चले आते हैं स्साले!’- 
                    रेस्तराँ से बाहर कदम रखते हुए उसने मन ही मन सोचा—'और 
                    पैंतरेबाज मुझे बताते हैं।'
 बाहर निकलकर वह ऑटो में बैठा और चला गया।
 उसके जाते ही फ्रेंचकट जीत का 
                    जश्न मनाने की मुद्रा में धम-से कुर्सी पर बैठा और निकट बुलाने 
                    के संकेत-स्वरूप उसने बेयरा की ओर चुटकी बजाई। उसकी आँखों में 
                    चमक उभर आई थी और चेहरे पर मुस्कान। 
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