दूसरे दिन गाँव के ही पंडित ने गाँव के मन्दिर
में एक दूसरे के गले में जयमाला डलवा दी। राजेश और उसके चाचा
रूपा को लेकर गाँव आ गए। चाचा जी ने अपने घर से खाना पका कर
भेज दिया, खाना खा पीकर थोड़ी देर बातचीत कर सब सो गए। दूसरे
दिन सूर्योदय से पहले ही जाग की खड़ी हुई रूपा, पूरे मकान की
सफाई की छतों के जाले साफ़ किए, आँगन की लिपाई कर दी फ़र्श पर
पोंछा लगाया, सभी कपड़ो की तह कर करीने से जगह पर रखे, रसोई की
धुलाई कर दी राजेश थोड़ी देर देखता रहा फिर उठकर वह भी रूपा का
हाथ बँटाने लगा, पड़ोस से दूध लाया चाय बनाई माँ को जगाया
उन्हें चाय पिलाई फिर रूपा ने दोनों बच्चे जगाए, उनको सुबह ही
नहला दिया, उनको नए कपड़े पहना दिए, दूध पिलाकर आँगन में खाट
बिछाकर बैठा दिए, वे दानों खेलने लगे माँजी को नहला दिया। उनके
बालों में थोड़ा तेल चुपड़कर कंघी कर दी, साफ़ धोती पहनने को
दी, उनको भी बाहर खाट पर बिठा दिया, अब देखो कल शाम ही रूपा घर
में आई थी सुबह उसके काम को देखकर लग रहा था जैसे बरसों से
यहीं रह रही हो, हो भी क्यों न सेवा भाव हो तो हाथ पैर काम की
तरफ़ अपने आप चलने लगते हैं, रूपा रसोई में गई सभी डिब्बे
खोलकर देखा किस डिब्बे में क्या दालें हैं, आटा चावल के बरतन
टटोले राजेश खेतों से कुछ सब्ज़ियाँ ले आया, इतने में रूपा ने
पराठे सेंक दिए सभी का नाश्ता हो गया।
नाश्ते से निपटकर रूपा ने घर
के सभी कपड़े धोए राजेश ने हेंडपंप चलाकर रूपा का सहयोग किया,
दोनों ने मिलकर कपड़े फैला दिए, माँ आँगन में खाट पर बैठकर
रूपा को काम करते हुए एक टक देखती रही, चन्द घन्टों में ही घर
की काया पलट दी रूपा ने। सुबह के सारे कामों से निपट खुद
नहाधोकर रूपा ने माँ जी से पूछा दिन में खाने के लिए क्या
पकाना है। माँ जी ने उसे अपने साथ थोड़ी देर खाट पर बैठाया,
कुलदीपक संशय भरी निगाह से देख रहा था रूपा को, उसने हाथ
पकड़कर खींचा अपने सीने से लगाया, उसने उसके गालों को कई बार
चूमा, फिर उसे छोड़कर मीनाक्षी को गोद में उठा लिया, उसे लेकर
आँगन में ही टहलने लगी। चंद घन्टों में ही बच्चे भी अपना लिए
माँ भी खुश।
पड़ोस में नई दुल्हन आई हो और
पड़ोसने देखने को न आएँ ऐसा कैसे हो सकता है? लिहाजा दोपहर के
समय एक-एक दो-दो करके घर में आने लगीं। रूपा का रंग रूप देखकर
सभी माँ जी से फुसफुसाने लगीं, ''अरे लाना ही था तो किसी
अच्छी-सी देखने भालने में ठीक-सी लाते। ये क्या लाए हो? इतनी
जल्दी भी क्या थी? अभी छ: महीने ही तो हुए हैं कमलेश को मरे।
हमसे कहते हमारे मायके में है एक पति से बनी नहीं मायके में ही
रह रही है इतनी सुन्दर की पूछो मत। माँ जी उनको सुनती रहीं
बोली कुछ नहीं। थोड़ी देर में रूपा चाय बना लेकर आई सबको चाय
के कप पकड़वाए। फिर जिस जिसको माँ जी ने बताया उनके पैर छुए
सामने बैठ गई। पड़ोसनों का आना जाना दो तीन घन्टे चला आखिर में
छाया आई।
छाया इस गाँव की सबसे पढ़ी लिखी बहू
है। एम.ए. तक पढ़ी है। लम्बी-सी चोटी माँग में सिन्दूर
बड़ी-बड़ी आँखे गदराया हुआ शरीर गोरा चिट्ठा रंग जैसे अंग्रेज़
हो। गाँव भर में इसके रूप रंग के चर्चे होते हैं। पति भी बहुत
प्यार करता है। गाँव के जवान लड़के घर पर मंड़राते रहते हैं।
बड़े सलीके से रहती है आसपास की औरतें इससे ईर्ष्या रखती हैं।
बहुत कम बोलचाल है कुछ घमन्डी टाइप की है। यह नई बहुओं को
देखने के लिए इसलिए जाती है कि कहीं आने वाली मुझसे ज़्यादा
सुन्दर तो नहीं? बनाव शृंगार में घन्टों लगाती है इसके खर्चे
भी बहुत हैं। छाया के पति ने घर में टीवी, फ्रिज, गैस चूल्हा
सब रखा है। इन सबके लिए अपना पुराना ट्रैक्टर तक बेच दिया, जो
इनकम होती है कुछ फैशन में, कुछ ज़ायके के हवाले हो जाती है। पर
है बहुत खुश। बीबी जो अति सुन्दर है। छाया ने भरपूर नज़र रूपा
के चेहरे पर डाली पूरा शरीर आँखो से टटोला फिर माँजी की तरफ़
मुस्कुराकर देखा, अपने घर चली आई। रूपा के रूप रंग से गाँव की
रूपवतियाँ खुश नहीं थी। एक ने दूसरे से कहा, ''हमें क्या है?
जब राजेश को पसन्द है तो ठीक है।''
रूपा को आए पूरा हफ्ता हो
चुका है। माँ जी को लग रहा है जैसे रूपा हफ्ता नहीं बरसों से
साथ है। सेवा में लगी रहती है, राजेश से कहकर दूध देने वाली
भैंस ख़रीद ली। बच्चों को दूध घर का मिलने लगा, कुलदीपक स्कूल
जाने लगा है मीनाक्षी अभी डेढ़ साल की है। रूपा कुलदीपक को
बड़े प्यार से पढ़ा रही है। बच्चे मम्मी-मम्मी कहने लग गए हैं।
राजेश खेतों की देखरेख में लग गया है। माँ जी सुबह शाम घूमने
लगीं हैं, माँ जी के सिर में तेल ठोककर पैरों के तलवों की
मालिश होने लगी है। पूरा घर घर की तरह हो गया है। गाँव के
बाज़ार से कपड़ा लाकर बच्चों को नए कपड़े रूपा ने खुद सीकर
पहना दिए, माँ जी का ब्लाउज पेटीकोट सी दिया।
पड़ोसने चुपचाप
देखती रहती, रूपा को किसी और से बात करने की फुरसत कहाँ। इन्टर
पास है गाँव के कॉलेज से वो भी कृषि विज्ञान से, उसने खेतों
में जाना भी शुरू कर दिया। राजेश को खेत की मिट्टी की जाँच
कराने को कहा सही बीज खाद का चयन करने को कहा। एक भैंस से घर
के ही दूध की भरपाई हो पाती है, अगर हमारे पास आठ दस भैंसे
होती तो हमारी इनकम बढ़ जाती बायो गैस प्लान्ट लग जाता घर की
रोशनी के लिए सौर ऊर्जा संयत्र लग जाता गोबर के उपले की जगह
जैविक खाद बनने लगती। किसी सरकारी बैंक से कर्ज़ लेकर राजेश ने
रूपा की मनोकामना पूरी कर दी। भैंसो की देखरेख के लिए एक नौकर
रख दिया।
रूपा राजेश के संग पिछले एक
डेढ़ साल से रह रही है। माँजी ने कहा, ''रूपा बेटी तुम्हारा भी
एक बच्चा होता तो तुम्हारे लिए ही अच्छा होता।'' रूपा ने साफ़
इनकार कर दिया, ''माँ जी भगवान की कृपा से बगैर पैदा किए दो
बच्चे मिल गए और मुझे नहीं चाहिए। भगवान इनको लम्बी उमर दे।
फिर माँ जी अपना पराया क्या है? क्या अपने बच्चे वाले सुखी
हैं।'' राजेश की माली हालत पहले से काफी बेहतर हो गई। एक दिन
माँ जी ने गाँव से रूपा के पिता जी को भी अपने घर पर ही बुला
लिया। इनसे अब मजदूरी नहीं हो पाती है काफी कमज़ोर और बीमार हो
गए थे। रूपा के अलावा इस संसार में इनका कोई नहीं है।
आज राजेश के घर के आगे नई कार
खड़ी है। दूध की ब्रिकी से ख़रीदी है। बैंक में पैसा भी है, खेत
पहले से दुगनी उपज वाले हो गए हैं। माँजी जवान लगने लग गईं है
और बच्चे भी खुशहाल हैं। और क्या चाहिए राजेश को? उधर छाया के
पति को उसके खर्चों ने कर्ज़दार बना दिया है। आज छाया रूपा के
आगे नतमस्तक होकर खड़ी है उसे एक हज़ार रुपए की सख़्त ज़रूरत
है। रूपा ने माँ जी की तरफ़ इशारा कर दिया उनसे ले लो। रूपा से
मिलने के बाद और उसके कार्यकुशलता से प्रभावित होकर छाया को
अपने रूप रंग पर खुद ही घृणा होने लगी। अब वह रूपा की दिवानी
हो चली है। रूपा उसे कृ'षि' एंव पशुपालन
की ट्रेनिंग दे रही है। उससे रूपा ने कहा दीदी आप मुर्गी फारम
खोल लो बहुत जल्दी कार आ जाएगी।
राजेश के चाचा उसकी मम्मी के
सामने बैठे हैं रूपा की चर्चा पूरे गाँव में है बोल, ''भगवान
ने मेरी लाज रख दी मैं अपने को धन्य भाग समझता हूँ। भाभी जी जो
रूपा जैसी बेमिसाल औरत हमारे गाँव में हैं।'' माँजी की आँखे
एक बार फिर छलछलाने लगीं पर ये आँसू खुशी के थे जो रूपा ने माँ
जी को दी थी। आज इस बड़ापुर गाँव में रूपा से रूपवान कोई औरत
नहीं हैं पर रूपा दूसरी औरत के रूप में आई है काश! कोई रूपा
जैसी दुल्हन पहली औरत के रूप में सहर्ष ले आता।