जब मीनाक्षी पेट
में थी तभी से कमलेश बीमार रहने लगी, मीनाक्षी के होते-होते वह
काफी कमज़ोर हो चुकी थी, धीरे-धीरे उसने चारपाई पकड़ ली, राजेश
ने आसपास के कई छोटे मोटे डाक्टरों को दिखाया तमाम दवाइयाँ भी
खिलाई पर कमलेश का रोग किसी से ठीक नहीं हुआ।
किसान हो या व्यापारी चाहे नौकरी
पेशा ही क्यों न हो, घर में बीमारी
किसी को लग जाए तो घर बरबाद हो जाते हैं। राजेश कमलेश को लेकर
शहर गया। घर बूढ़ी माँ के हवाले हो गया, माँ को दो बच्चे
देखने, खेतों को देखना, जानवर भी पाले थे, उन्हें कौन देखता,
सो एक दिन पास के बाज़ार में भिजवाकर सभी जानवर औने पौने दामों
में बेच दिए, उधर शहर में कमलेश के डॉक्टर ने परीक्षण के आधार
पर बताया कि इसको शुगर की बीमारी है और वह काफी बढ़ चुकी है,
एक गुर्दा तो बिल्कुल खराब हो चुका है, दूसरा भी खराब होने ही
वाला है। कमलेश का रोग ठीक हो ही नहीं सकता इसके गुर्दे बदलने
पड़ेगे, राजेश की तो हालत खराब, रूवांसा हो गया, कमलेश की उमर
ही क्या होगी यही कोई अठाइस तीस साल, गुर्दे बदलने को पाँच लाख
रुपए की ज़रूरत पड़ेगी वो भी ठीक होने की कोई गारण्टी नहीं,
डाक्टर के कम्पाउन्डर ने सलाह दी कि इसे दिल्ली दिखा दो किसी
बड़े अस्पताल में। राजेश कमलेश को लेकर दिल्ली पहुँच गया, जो
भी पाई पैसा था वह सब खर्च हो चुका था, वहाँ के डॉक्टरों ने भी
वही सलाह दी जो उसके शहर के डॉक्टर ने दी थी, राजेश कमलेश को
लेकर घर आ गया, घर आने के एक महीने बाद कमलेश की मृत्यु हो गई।
सारी जमा पूँजी इलाज में लगा दी अन्त में मरीज़'
से भी हाथ धो बैठा राजेश।
राजेश के घर की हालत खराब हो
चुकी थी, बूढ़ी माँ विक्षिप्त हो गई थी, जब देखो तब आँखों से
आँसू की धारा, राजेश को जब भी देखें तब रो पड़ती थीं, कलेजे के
टुकड़े को परेशानी में देखकर हर माँ का दिन ऐसे ही भर आता है।
छोटे बच्चों की भी हालत खराब। कपड़े मैले हो रहे हैं, हफ्ते भर
से बच्चों को नहलाया नहीं है, बड़ा स्कूल जाने लायक हो गया हे
कौन भेजे सब तितर बितर हो गया है, सारा निजाम ही बिगड़ गया है
घर का, माँ बिल्कुल टूट गई है, उसे घर सुधरने के आसार नज़र
नहीं आ रहे हैं। निराशा से घिरी रहती है रात दिन, एक दिन राजेश
के चाचा घर पर आए तो उसकी माँ उनके आगे फफक-फफक कर रो दी, चाचा
ने बहुत समझाया बुझाया ये सब विधि का विधान है, वैसे ही आपको
भाईसाहब का दुख सालता रहता है, ऊपर से जवान बहू की मौत हो गई
रोना तो आएगा ही पर किया क्या जाए, हिम्मत रखो धीरे-धीरे सब
ठीक हो जाएगा।
इतने में ही राजेश कहीं से आया, बड़ा बच्चा
राजेश को लिपट गया, छोटी दादी की गोद में बैठी है। पूरा घर ही
बेतरतीब हुआ पड़ा है, छत की तरफ़ जाले लगे हैं, दीवारें बच्चों
ने खुरच रखी है, कपड़े अस्तव्यस्त हैं, बरतन कोई यहाँ पड़ा है
कोई वहाँ, रसोई में मक्खियाँ भिनभिना रहीं हैं। झूठे बर्तनों
का ढेर लगा पड़ा है। अब राजेश आ गया है, वह छोटी को पकड़ेगा तो
माँ किसी तरह रोटी का प्रबन्ध करेगी, बातों ही बातों में चाचा
ने कहा भाभी जी आप राजेश की शादी कर दो, दूसरी औरत आ जाएगी तो
घर की हालत सँभाल लेगी, ''कह तो ठीक रहे हो पर कोई नरम दिल की
मिले तब ना'' दूसरी तो पहली के बच्चों को मारेगी, जलन करेगी,
अगर चाल चलन ठीक नहीं तो घर को नरक बना देगी, उससे तो ऐसे ही
काट लेंगे। फिर रूवांसी हो गई। चाचा ने कहा, ''फिकर मत करो
देखभाल कर करेंगे। कोई विधवा परित्यक्ता मिल जाएगी तो ज़्यादा
ठीक रहेगा। वो ज़्यादा नखरे नहीं करेगी, पर पूछताछ करनी
पड़ेगी, समय निकाल कर करना होगा। भाभी आपकी हालत मुझसे देखी
नहीं जाती, आपने तो अपने बच्चे की तरह पाला है मुझे, देखना मैं
राजेश को सही औरत लाके दूँगा।''
चाचा शादी के लिए औरत देखने
में लग गए, जगह-जगह के आदमियों से चर्चा की, कुछ रिश्तेदारियों
में संदेशा पहुँचवाया कि कहीं राजेश के लायक कोई औरत हो तो
बताना, कुछ दिनों के बाद एक गाँव से खबर आई कि यहाँ एक ऐसी औरत
रहती है, बड़े ही गरीब घर की है, बाप के पास कुछ नहीं है, अगर
भगवान ने चाहा तो रिश्ता हो जाएगा, चाचा राजेश के साथ उसी गाँव
में पहुँच गए जिन्होंने सन्देशा भिजवाया था उन्ही के घर रुके,
नमस्कार कुशलक्षेम के बाद चाय पी।
थोड़ी देर बाद घर के
मुखिया ने कहना शुरू किया, देखो राजेश बाबू आप ठहरे बड़े किसान
कोशिश करोगे तो आपको कुँवारी कन्या मिल जाएगी थोड़ा बहुत दहेज
भी मिल जाएगा, अभी आपकी उमर ही क्या है अब तो चालीस छोड़ो
पैंतालिस साल के भी शादी कर रहे हैं, पर मैंने जो देखा है उसका
जबाब नही, देखने में साँवली ज़रूर है, कद भी छोटा है, पर है बड़ी होशियार, अपने बाप को पाल रही है, हमारे ही
बिरादरी के हैं, इसके दादा गलत सोहलत में पड़ गए थे, तमाम बुरे
काम 'शराब, जुआ' सब सम्पत्ति बेचकर मरते समय कंगाल हो गए थे,
आगे को एक लड़का था उसी का बाप हमारे खेतों में काम करता है। न
पढ़ा न लिखा न ज़मीन और करता भी क्या बीबी पहले ही मर चुकी है,
हमने रहने के लिए छोटा-सा मकान बनाकर दे दिया था, उसी में रहते
हैं, मेरे कहने को टालेंगे नहीं कहो तो मैं लड़की और उसके बाप
को बुला देता हूँ, और यह भी सुन लो हमने उसकी शादी भी करवा दी
थी एक अच्छे परिवार में पति को पसंद नहीं आई, उसने छोड़ दिया,
यहीं रहती है, इन्टर तक का कॉलेज है गाँव में इंटर तक पढ़ी है,
अगर शहर में किसी सेठ के यहाँ पैदा हुई होती तो डॉक्टर
बैरिस्टर होती। राजेश जी घर बनाने वाली है, सिलाई कढ़ाई करती
है गाँव के बच्चों को घर पर पढ़ाती है, बड़ी शालीन है, किसी से
कभी ज़ोर से बोली नहीं होगी, मैं अपनी लड़की समझता हूँ उसे। अगर
आप राज़ी हो गए तो उस बेचारी की ज़िन्दगी सुधर जाएगी और आपका
घर भी बन जाएगा।
राजेश ने गौर से बातें सुनी
और औरत और उसके बाप को बुलाने को आग्रह किया, थोड़ी देर में
दोनों बाप बेटी सामने बैठे थे। वाकई रंग काला ही था फिर गरीब
थी परित्यक्ता थी, फिक्र में जीने
वालों का रंग वैसे ही काला पड़ जाता है पच्चीस छब्बीस की होगी,
चेहरे से ज़्यादा की लग रही थी, बाप कुछ बोला नहीं गरदन झुकाकर
एक तरफ़ को बैठ गया। राजेश ने नाम पूछा तो औरत ने 'रूपा' बता
दिया, शादी के लिए पूछने पर कह दिया जैसा ताऊजी कहेंगे।
फिर
राजेश के चाचा ने कहना शुरू किया देखो बिटिया ये दो बच्चों का
बाप है? घर में बूढ़ी माँ है, घरवाली के इलाज में बहुत बरबाद
हो गया है, इसके पास जमा पूँजी कुछ नहीं है, बस एक ट्रैक्टर
और खेत में टयूबवैल है। एक हवेली और सात आठ एकड़ ज़मीन है। सारे
जानवर बहू की बिमारी के दौरान देखभाल न हो पाने की खातिर बेच
दिए हैं, तुम समझ लो बड़ी मेहनत करनी पड़ेगी, भाभी को सम्भालना
होगा, बच्चों की देखभाल करनी होगी, तुम यह सब कर लोगी, रूपा ने
हाँ में गरदन हिला दी, फिर उस रिश्तेदार जिसके यहाँ रुके थे ने
कहना शुरू किया, ''बेटी ये बड़े किसान हैं परेशानी किसे नहीं
आती, सब दिन एक समान नहीं होते जमी जमाई गृहस्थी है, मुझे यकीन
है तुम ज़रूर सँभाल लोगी, फिर राजेश की तरफ़ मुखातिब होकर बोले
राजेश जी आपने इसे देख लिया है आप हाँ कर रहे हो?'' राजेश ने
भी हाँ कह दिया। |