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वह यहाँ उम्मीद लेकर आया था क्यों कि दिल्ली के अलावा वरुण का जो पता उसे मालूम हुआ है वह सीरामपोर का है। वह दिल्ली से ही फैसला करके आया है, अगर वरुण उसे मिल गया और उसने उसका हिस्सा नहीं दिया तो वह उसे जान से मार देगा। दगाबाज़ों की सज़ा मौत ही होती है। वह हल्की बरसात में भीगता हुआ ही वहाँ पहुँचा था।

कुछ देर वह प्रतीक्षा करता रहा मगर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। उसने दोबारा और देर तक दरवाज़ा खटखटाया। प्रतिक्रियास्वरूप, दरवाज़ा तो नहीं खुला मगर साथ वाली बड़ी-सी खिड़की का एक पल्ला खुला और अंधेरे से एक बूढ़ा चेहरा उसकी ओर झाँका, जो एक बुढ़िया का था। उसने बंगला भाषा में कुछ कहा जो उसे समझ नहीं आया।
''वरुण मंडल है?'' वह उच्च स्वर में बोला।
''के?'' बूढ़े चेहरे ने पूछा।
''यहाँ वरुण मंडल है क्या?'' उसने पूर्ववत उच्च स्वर में पूछा।
बुढ़िया ने कुछ नहीं कहा और खिड़की से गायब हो गई। साथ ही खिड़की भी बंद कर गई।
बारिश में फिर से तेज़ी आ गई थी। उसके मुँह से एक गाली निकली जो तीन लोगों के लिए थी, वरुण, बरसात और वह बुढ़िया। वह भीगता रहा और प्रतीक्षा करता रहा।

कुछ देर बाद गदर के ज़माने का दरवाज़ा खुला। इस बार उसके सामने मकान जितना ही जर्जर एक बूढ़ा खड़ा था।
''काके चाई?'' बूढ़े ने पूछा।
''मेरा नाम सत्यम है, मुझे वरुण मंडल से मिलना है।'' उसने कहा।
''बृष्टि हो रही है, भीतर आ जाओ।'' बूढ़े ने कहा।
वह भीतर दाखिल हो गया। बैग उसने कंधे से उतारकर नीचे लटका लिया था। वह एक गलियारा जैसा था जहाँ अंधेरा फैला हुआ था। बूढ़े ने दरवाज़ा बंद कर दिया। सामने खुला बरामदा था जहाँ बारिश गिर रही थी। गलियारा दायें बायें दोनों जगह मुड़ रहा था। बूढ़ा बायें मुड़ गया। उसके पीछे-पीछे वह भी। उसे कुछ पुरानी हिन्दी फिल्में याद आईं। उन फिल्मों में ऐसे ही मकान होते थे। यहाँ भी किसी फिल्म की शूटिंग हुई होगी, उसने सोचा।
उस गलियारे में एक तख्त बिछा था। बूढ़े ने उसे वहाँ बैठने का इशारा किया।
''पानी?'' उसके बैठने के बाद बूढ़े ने पूछा।

उसने ''हाँ'' में सिर हिलाया। बूढ़ा पीछे मुड़ गया। किसी के मकान में घुसते ही वह अनुमान लगाने लग जाता है कि वहाँ से कितना और क्या चोरी किया जा सकता है। लेकिन यह पहला मकान था जिसमें घुसते हुए ऐसा ख़याल भी दिमाग के किसी कोने से नहीं निकला था।
वह सामने देखने लगा। बरामदे में सामने की ओर कुछ कमरे बने थे, जो सूने पड़े थे। दूसरे सिरे पर दुनिया भर का झाड़-झंकाड़ उगा हुआ था जो बरसात के दिनों में ज़्यादा बढ़ जाते हैं। यह भुतहा मकान की हरियाली थी। ऐसा लग रहा था यहाँ सिर्फ़ बूढ़े बुढ़िया के अलावा कोई नहीं है। कहीं उसे गलत पता तो नहीं मिला। बूढ़ा पानी और एक प्लेट में अजीब-सी मिठाई के दो टुकड़े लेकर लौटा। उसने पानी ले लिया। मिठाई की ओर देखकर उसे उबकाई आने को हुई। बूढ़ा प्लेट उसके पास रखकर पीछे एक दरवाज़े से भीतर चला गया और एक स्टूल लेकर वापस लौटा।

जब बूढ़ा उसके सामने बैठ गया तो वह अधीर स्वर में बोला, ''वरुण मंडल से मिलना है मुझे।''
''वो तो यहाँ नहीं है।''
''कहाँ गया है?''
''अब तो दिल्ली में होगा। आप कौन हैं?''
''मैं उसका दोस्त हूँ, सत्यम। वह दिल्ली में नहीं है। मैं दिल्ली से ही आ रहा हूँ।'' उसने कहा।
''यहाँ तो वह लगभग एक साल पहले आया था।'' बूढ़े ने कुछ सोचते हुए कहा।
एक साल पहले, यानि तब जब वो जेल में था।
''आप उसके साथ ही काम करते हो?'' बूढ़े ने पूछा।
''काम!'' वह चौंक-सा गया। हाँ, काम ही करता है वह उसके साथ। दोनों मिलकर चोरियाँ करते हैं। पच्चीस लाख के जेवर लेकर भागा है वो, जो उन दोनों ने मिलकर नोयडा के एक मकान से चुराए थे। अगर वे जेवर पाँच छह में भी बिकते हैं तो वह उसके तीन लाख रुपये लेकर भागा है।
''हाँ, हम एक साथ ही काम करते हैं।'' प्रत्यक्षत: उसने कहा।
''ओ आच्छा।'' बूढ़े ने सिर हिलाया।
''अब नहीं है वरुण यहाँ पर?''
''अब तो नहीं है। वह तो बहुत समय से नहीं आया यहाँ।''
''आप कौन हैं उसके?'' उसने सवाल किया।
''वरुण हमारा किरायेदार है समझो। वह गाँव के रिश्ते में मेरा भतीजा लगता है। वह यहाँ रहता था। उसका कमरा हम किसी को नहीं देता। जब वह बाड़ी आता है तो यहीं रहता है। वरुण खूब भालो छेले। वो दिल्ली ते भालो काज कोरे आर अमादेर ओनेक पोएसा दिए जाए। महाकालीर किरपा...''
''अब कब आएगा?'' उसने बूढ़े की बात काटते हुए पूछा।
''क्या मालूम कब आएगा। हमें कोई फोन नम्बर भी नहीं दिया जो उससे कभी बात कर लें। हमें तो उसकी बहुत चिन्ता होता है। न जाने कहाँ होगा वो?'' बूढ़ा जैसे सोते में बड़बड़ा रहा था। उसे कोई मतलब नहीं था कि सत्यम नाम का आदमी उसकी बात सुन भी रहा है या नहीं। वह यह भी नहीं जानता कि सत्यम नाम का आदमी उसके रिश्ते के प्यारे भतीजे को कत्ल करने आया है।
''उसका सामान है यहाँ पर?'' उसने फिर उसकी बात काटी।
''सामान? उसका सामान? उसका यहाँ एक बिस्तर है और दो चार कपड़ा। आप क्यों उसको पूछ रहे हो?'' बूढ़े ने मतलब का प्रश्न किया।
उसे एकदम से जवाब नहीं सूझता। वह सोचने लगता है।
''क्या बरसात रुकने तक मैं यहाँ ठहर सकता हूँ?'' उसने बात ही बिल्कुल पलट दी।
''हाँ, हाँ, क्यों नहीं।'' बूढ़े ने कहा, ''आपने बताया नहीं, वरुण तो दिल्ली में है, आप उसे यहाँ क्यों तलाश रहे हो?''
''वो दिल्ली में नहीं है। वैसे मैं कलकत्ता किसी काम से आया था। उसने यहाँ का पता दिया था तो मैं उससे मिलने चला आया। मैंने यही सोचा था कि वह यहाँ होगा। अगर वह दिल्ली में नहीं है तो यहीं होगा।'' उसने धीरे-धीरे एक-एक शब्द सोच समझ कर अपने मुँह से निकाला।
बूढ़ा कुछ नहीं बोला।
''उसका गाँव कहाँ पर है? पास में ही है क्या?''
''गाँव तो बहुत दूर है। मालदा से आगे रतुआ के पास है हमारा गाँव। बस से सात-आठ घण्टे का सफ़र है।'' बूढ़े की आँखे ठहर-सी गईं थी। बताते-बताते वह अपने गाँव ही पहुँच गया था, ''गाँव तो वह कभी जाता ही नहीं। गाँव में कोई नहीं है उसका, सब चल बसे। यहाँ भी कोई नहीं है। शेतो एतो बोछोर आमियो गाम्रे जेते पारि नी। आमरो ग्रामे आर क्यो ने। काश! मैं...''

बूढ़ा फिर बहक रहा था। उसने उसकी ओर से ध्यान हटाया और निरंतर तेज़ होती बरसात को देखने लगा। उसने जेब से मोबाइल निकालकर समय देखा। दो बजने वाले थे। बूढ़ा चुप होकर उसे देख रहा था।
''चाय पिओगे?'' उसने पूछा।
''हाँ।'' उसने हौले से कहा। वह इस समय चाय ही पीना चाहता था और इस बूढ़े की बकवास से बचना।
बूढ़ा उठा और गलियारे के दूसरे सिरे की ओर चला गया जहाँ निश्चय ही उसकी बुढ़िया होगी।
बारिश का प्रकोप जारी था। पता नहीं कब तक बरसती रहेगी। क्या उसे इस भूत बंगले में रात बितानी पड़ेगी? क्या बुराई है अगर मुफ्त में सोने का जुगाड़ हो जाए तो। खाने का तो यहाँ जुगाड़ हो सकता है मगर दारू का। दारू का ध्यान आते ही उसके मुँह में पानी आ गया। ऐसे मौसम में तो रॉयल स्टैग और तन्दूरी चिकन मिल जाए। उसने बड़ी ही बेचैनी से पहलू बदला। अभी फिलहाल चाय से ही काम चलाना पड़ेगा।

अच्छा भला सब ठीक चल रहा था। वरुण और वह पिछले तीन साल से चोरी चकारी कर रहे हैं। दोनों का बँटवारे को लेकर कभी कोई मनमुटाव या लड़ाई झगड़ा नहीं हुआ था। जो भी मिलता था, उसे वे दोनों अय्याशी में उड़ा देते थे। लेकिन पिछले दाँव में, जो उनके अब तक के जीवन का सबसे बड़ा दाँव था, वरुण को लालच आ गया था जो उसी रात वह चुपचाप चंपत हो गया। खैर, उसे लालच का अंजाम तो भुगतना ही पड़ेगा।

वे दोनों इस दुनिया में अकेले हैं। लेकिन साल में एक या दो बार वरुण पश्चिमी बंगाल ज़रूर आता है। उसे नहीं पता कि जब उसका कोई यहाँ है ही नहीं तो वह यहाँ क्यों आता है? इस बूढे के लिए? या किसी और के लिए? उसने भी तो कभी नहीं बताया? वह विचारों में गुम था कि बूढ़ा प्रेत की तरह उसके सामने आ खड़ा हुआ। उसके हाथ में लकड़ी की एक ट्रे थी जिसमें दो कप रखे थे। उसने चुपचाप एक कप ले लिया। बूढ़ा फिर उसके सामने बैठ गया। अब बूढ़ा ही उसका सहारा था जो उसे वरुण का कोई आइन्दा पता दे सकता है वर्ना इतनी बड़ी जिन्दगी है, क्या पता कब मिले?
''आप अकेले रहते हैं यहाँ पर?'' उसने चाय का घूँट भरने के बाद पूछा।
''अकेले कहाँ, मैं हूँ, मेरी पत्नी है, मेरा एक बेटा कलकत्ता में एक मिल में काम करता है, एक बेटी है जो यहीं के एक प्राइवेट स्कूल में काम करती है, अभी आने ही वाली होगी। मेरा एक बेटा सड़क दुर्घटना में मारा गया। मैं रिटायर्ड हूँ, स्कूल मास्टर था। अच्छे बुरे सारे दिन देखे हैं मैंने...। मेरा मकान साक्षी है, जीवन के सभी रंगों का। कभी इस मकान में बहुत चहल-पहल रहती थी। दुर्गा पूजा में हमारा घर महल जैसा सजता था। इसी बरामदे में हम माँ की मूर्ति स्थापित करते थे। मेरी बहनें खुद उसका शृंगार करती थीं। सारी डस्की लेन हमारे यहाँ ही पूजा के लिए आती थीं। मगर अब... अब वह विलासिता, वह वैभव सब समाप्त हो गया। कितने वर्षों से इस घर में सफ़ेदी नहीं हुई, मरम्मत नहीं हुई। सच्ची, पुराने दिन कितने अच्छे होते हैं न! उन्हें हल्का सा छू दो तो कितना सुख दे जाते हैं...''

सत्यम चाय पीना भूलकर उसके झुर्रीदार चेहरे को देख रहा था। एक अजीब-सी चमक उसके चेहरे पर आ बैठी थी, बरसात में चमकती हुई, पानी से धुली हुई, यादों से भीगी हुई। वह उसके चेहरे से बँध गया। भूल गया कि वह यहाँ किस काम से आया था। बूढ़े की टीस उसके भीतर उतर आई थी।
''बाबा, ओ बाबा।'' जब उसे खुद होश आया तो उसने उसे स्मृति से जगाने की कोशिश की।
बाबा लौट आया।
''बेटा, क्या नाम बताया था तुमने अपना?'' कुछ क्षण रुक कर उसने पूछा।
''सत्यम, सत्यम सिंह चौहान।'' उसने अपना नाम बड़े रौब से बताया। वह चाहता था कि जब कभी वरुण यहाँ आए तो उसे मालूम होना चाहिए कि सत्यम उसके पीछे यहाँ तक पहुँच गया था और देर सवेर उसकी गर्दन तक भी जा पहुँचेगा।
''आपनार कोथा कोखोनो किछू बोले नी।''
''क्या?''
''वरुण ने कभी बताया नहीं।''
''उसे ज़रूरत नहीं लगी होगी।''
''हो सकता है।'' बाबा ने धीमे से कहा, ''खाना खाओगे?'' फिर पूछा।
''नहीं।''
''ठीक है, फिर तुम थोड़ा आराम कर लो। बारिश समाप्त हो जाए फिर चले जाना।'' वह उठता हुआ बोला, ''ठहरे कहाँ हो?''
''अभी तो यहीं हूँ। यहाँ से निकलने के बाद सोचूँगा या दिल्ली ही चला जाऊँगा।'' उसने कहा।

बूढ़ा सिर हिलाता हुआ चला गया। वह उसे जाता देखता रहा। क्या बूढ़ा वरुण के बारे में झूठ बोल रहा हो सकता है? क्या पता वो यहीं हो और उसने मना किया हो। वह फैसला नहीं कर पाया कि बूढ़ा सच बोल रहा है या झूठ। जिस दिन से वह भागा है, तभी से उसका मोबाइल भी बंद आ रहा है। पता नहीं कहाँ मर रहा होगा साला? उसके लिए वह बंगाल में धक्के खा रहा है। एकाएक उसके मन में आया कि बूढ़े की गर्दन पर चाकू टिकाकर उगलवाऊँ कि वरुण कहाँ है? और नहीं बताए तो वही चाकू उसकी गर्दन में घोंप दूँ। इस विचार के साथ उसने अपनी पैन्ट की भीतरी जेब में रखे चाकू को टटोला। चाकू अपनी जगह था। फिलहाल उसने अभी और प्रतीक्षा करने का विचार किया लेकिन अपनी इस इच्छा को उसने अपने मन के एक कोने में सुरक्षित रख लिया ताकि उसका इस्तेमाल वह किसी भी समय कर सके।

बारिश खत्म होने के या कम होने के कोई लक्षण नहीं दिखाई दे रहे थे। लेकिन उसे यहाँ का भुतहा वातावरण विचलित कर रहा था। बूढ़े ने बताया था कि अभी उसकी लड़की आने वाली है। देखते हैं, कैसी लड़की है? वो भी बरसात के कारण रुकी हुई होगी? और लड़का? वो तो शायद शाम को ही आएगा। कोई बात नहीं, रौनक तो अभी आएगी। उसने बूढ़े की लड़की के बारे में सोचा। कुछ रंगीन से और कुछ अश्लील से विचार उसके भीतर आने लगे उस लड़की के प्रति जिसको उसने देखा नहीं था, जो उसके लिए नितान्त अजनबी थी।

उसने अभी तक जूते भी नहीं उतारे थे और तख्त पर वह आरामदायक स्थिति में भी नहीं बैठा था। उसने जूते उतारे और अपने बैग को एक ओर रखकर तख्त पर लेट गया। छत के साथ की दीवार पर, जिसके किनारे से सटाकर तख्त बिछाया गया था, उसे दो मोटी-मोटी छिपकलियाँ दिखाई दीं। उसे छिपकलियों से बहुत डर लगता है। वह रह-रहकर छिपकलियों को देखने लगा। बूढ़े की अनदेखी लड़की, रॉयल स्टैग और तन्दूरी चिकन के सपनों के बीच दीवार पर चिपकी छिपकलियाँ आ गई थीं। उसके मुँह से कई गालियाँ निकलीं जो सारी की सारी छिपकलियों के लिए थीं। उसका मन वितृष्णा से भर उठा।

जल्द ही उसकी आँखें बंद होने लगीं। बरसात का तेज़ शोर धीरे-धीरे उसके कानों में कम होने लगा। उसे खुद मालूम नहीं हो पाया कि वह सो गया है। अवचेतन में उसे वरुण मंडल, जेवरात, बूढ़ा और उसकी लड़की दिखाई देते रहे। अवचेतन में ही उसने अपना चाकू निकाल लिया और चाकू हवा में लहराया ही था कि ज़ोर से बादल गरजे और भयंकर बिजली कड़की।
वह हड़बड़ाकर उठ बैठा। सचमुच में ही बादल ज़ोर से गरजे थे और बिजली कड़की थी। इसके अलावा सब कुछ वैसा ही था जैसा तख्त पर लेटने से पहले था। बरामदा पानी से भर चुका था। एक लकड़ी का डंडा, कुछेक कागज और पन्नियाँ पानी में तैर रही थीं। वह उनका तैरना देखता रहा। उसे लगा, उसकी जिन्दगी भी ऐसे ही तैर रही है। जब तक पानी है, ठीक है। पानी खत्म वो भी खत्म। उसका कोई भविष्य नहीं है। कभी-कभी वह अपने भविष्य को लेकर चिन्तित हो जाता है। वह भी दूसरे चोरों की तरह हमेशा सोचता है कि एक बार बड़ा-सा हाथ मार ले तो उस रकम से कोई छोटा-मोटा धन्धा करेगा और चैन से जियेगा। मगर ऐसा कभी नहीं हुआ और न ही होगा। चोरी के काम के अलावा उससे और कोई काम नहीं होने वाला, ईमानदारी वाला तो बिल्कुल भी नहीं। फिर भी वह सोचता है। लेकिन उसने ये कभी नहीं सोचा कि किसी की धन सम्पत्ति के अलावा भी वह उसका बहुत कुछ चुरा लेता है, किसी के सपने, किसी के अरमान, किसी का सुख, किसी का जीवन।

तभी बूढ़ा फिर आता दिखाई दिया। उसने बताया कि उसकी बेटी आ गई है। बाहर गली में घुटनों तक पानी भरा हुआ है और ऐसा ही हाल सड़कों का भी है।
''तो आपकी बेटी कैसे आई?'' उसके मुँह से निकला।
''भीगती हुई, डूबती हुई।'' बूढ़े ने हँसते हुए कहा।
वह पहली बार हँसा था। उसे अच्छा लगा। थोड़ी देर पहले की बोझिलता बूढ़े की हँसी से धुल गई थी। वह फिर उसकी लड़की के बारे में सोचने लगा।
''बारिश तो पता नहीं कब बंद हो, आप कैसे जाओगे?'' बूढ़े ने पूछा।
''पता नहीं।'' उसने अनिश्चय स्वर में कहा।
''अगर बारिश नहीं रुकी तो यहीं रुक जाना।'' बूढ़े ने जैसे उसके मन की बात कह दी।
''देखता हूँ।'' प्रत्यक्षत: उसने कहा।
बूढ़ा सिर हिलाता हुआ चला गया।

और कुछ देर बाद वो आई जिसे देखने के लिए, उससे बात करने के लिए वह मन ही मन बहुत बेचैन था। ठिगने कद की दुबली पतली, साँवली लड़की, तीखे नयन नक्श। उसने सफ़ेद नीले चैक वाली सूती साड़ी पहने थी और बाल पीछे की ओर कसकर बाँधे हुए थे। सत्यम सिंह चौहान, दिल्ली का एक चोर, पश्चिम बंगाल की उस साँवली लड़की पर फौरन मोहित हो गया।
लड़की ने नमस्ते कहा और उसी स्टूल पर बैठ गई जिस पर पहले बूढ़ा बैठा था।
''आप बोन्धू है वरुण के?'' लड़की ने पूछा। उसका बंगला मिश्रित स्वर उसके कानों में अमृत जैसा पड़ा।
''हाँ।'' उसके मुँह से धीरे से निकला।
''आपकी कभी चर्चा नहीं की उसने।''
''हम दिल्ली में एक ही इलाके में रहते हैं और साथ काम करते हैं।''
''चोरी का।'' लड़की ने उसकी आँखों में झाँका।
''क्या?''
''आप दोनों साथ-साथ चोरियाँ करते हो न?'' लड़की का स्वर आत्मविश्वास से भरा था।
''आपको मालूम है?'' उसने हैरानी से पूछा।
''ओमी शोब जानी।'' उसने आँखें फैलाई, ''मैं ये भी जानती हूँ कि आजकल वह दिल्ली में नहीं है।'' लड़की के चेहरे के भाव उसकी आवाज़ की तरह ही दृढ़ थे। वह उठी और बिना उसकी ओर दृष्टिपात किए मुड़ गई।

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