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                    धुंध के कारण उन्हें दूर से कुछ 
                    दिखाई नहीं दे रहा था। ऐनक के शीशों पर भी धुंध फैल गई थी। 
                    उन्होंने उतारकर शीशे साफ़ किए लेकिन धुँधलापन गया नहीं। यों 
                    भी मोतिया उतरना शुरू हो गया है जो आँखों में चुभता रहता है। 
                    वह थोड़ी देर सड़क के किनारे खड़े रहे। 
                     अभी लोगों का आना–जाना शुरू 
                    नहीं हुआ था। थोड़ी देर में तो यह सड़क लोगों और यातायात से 
                    ऐसे भर जाएगी जैसे मिष्ठान पर चींटियों की सेना टूट पड़ती है। 
                    बहुत दिन से उनकी इच्छा हो रही थी कि वह सुबह की हवा में 
                    उन्मुक्त घूमने जाएँ, लेकिन जा नहीं पाते थे। न चाहते हुए भी 
                    रात देर तक जागना पड़ता है। सुबह उठने में अब विलंब हो जाता 
                    है। उसके बाद की दिनचर्या ऐसी है कि पता ही नहीं चलता। कब 
                    सूर्य देवता का अश्व घूमता हुआ विलीन हो जाता है। यह सोचकर 
                    उन्हें सांत्वना रहती कि यहाँ अंधेरा हो जाने के बाद ये सुनहरी 
                    किरणें उनके अपने घर पर अपनी आभा बिखेरती होंगी। सर्दी के 
                    दिनों में घर की मुँडेर पर उतरती धूप उन्हें घर और सावित्री की 
                    याद दिला गई।  छोटे–से कस्बे में उनका तीन 
                    कमरों का वह घर जिसे उन्होंने घर के खर्चे और बच्चों को अच्छी 
                    शिक्षा दिलाने के बाद थोड़ी–थोड़ी बचत करके तीन–चार किश्तों 
                    में पूरा करवाया था। जब भी काम शुरू करवाते, पैसा आड़े आ जाता।
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