| गाड़ी में बैठ कर दीपांकर ने पास 
                    बैठी ममता को एक नज़र देखा। उदास ममता सूनी आँखों से दूर कहीं देख रही थी शून्य में। 
                    दीपांकर का मन हुआ उसको अपने सीने में भींच ले लेकिन वह जानता 
                    है ऐसे में वह फफक पड़ेगी। कुछ पल यों ही देखता रहा। हौले से 
                    कंधे को थपथपा दिया। गर्दन घुमा उसने दीपांकर को डबडबायी आँखों 
                    से देखा जिनमें कई प्रश्न आतुरता से जवाब के लिए तैर रहे थे।
 
                    ''कोशिश करेंगे डॉक्टर'' यही कह 
                    पाया। वह खुद नहीं समझ पाया कि उन शब्दों में क्या है सूचना, 
                    सांत्वना या आशा? लेकिन ममता जानती है कि ये केवल सूचना है 
                    उसके जीवन में शनै: शनै: प्रवेश करते अंधकार के और निकट आने 
                    की। गाड़ी अपनी गति से चली जा रही थी। निस्तब्धता ने अपना 
                    अधिकार जमाये रखा।  क्या बात करे? अब बातों के 
                    सिरे भी न जाने कहाँ छूटते जा रहे थे। ढूँढने पर भी कोई सहज-सी 
                    बात का सिरा नहीं मिलता। घंटों खतम न होने वाली बातें न जाने 
                    इन सालों में कैसे चुक-सी गई है। लेकिन ममता ये सब नहीं सोचती। 
                    उसके पास सोचने को बहुत कुछ है बल्कि अब लग रहा है कि सोचना ही 
                    शेष है करना तो जैसे अब खतम ही हो जाएगा। अगले कुछ सालों में 
                    उसके पास शायद ऐसा कुछ भी नहीं रहेगा जिसके लिए वह कुछ करे! |