''क्या आपके यहाँ मेहमानों का
इसी प्रकार से स्वागत किया जाता है?'' अगले दृश्य जगत में
पहुँचते ही प्रोफ़ेसर यासीन जीवित व्यक्तियों को देखकर ज़ोर से
चीखे। उन्होंने अपना मास्क पहले ही उतार लिया था।
देखने में वह स्थान किसी न्यायालय के समान ही प्रतीत हो रहा
था। सामने एक ऊँची कुर्सी पर जज, अगल–बगल वकील, पीछे दर्शक और
मुल्जिम के कटघरे में खड़े स्वयं प्रोफ़ेसर यासीन। यह देखकर
स्वयं प्रोफ़ेसर भी हैरान थे कि वहाँ मौजूद सभी व्यक्ति धूप की
तरह पीली चमड़ी वाले थे। उनके बाल भूरे तथा आँखें नीली थीं। यह
बदलाव शायद वातावरणीय परिवर्तन का ही परिणाम था।
''कौन मेहमान? किसका मेहमान प्रोफ़ेसर यासीन?'' कहते हुए वकील
व्यंग्यपूर्वक मुस्कराया।
वकील को अपना नाम लेता देखकर प्रोफ़ेसर हैरान रह गए। वे अपने
मनोभावों को नियंत्रित करते हुए बोले, ''मैं और कौन?''
''आप?'' वकील का हँसना बदस्तूर जारी था।
वकील की हँसी सुनकर प्रोफ़ेसर
चिड़चिड़ा गए, ''मैं आपके पूर्वज की हैसियत से सन 1900 से आप
लोगों के लिए दोस्ती का पैगाम लाया हूँ। तो क्या मैं आप लोगों
का मेहमान नहीं हुआ?''
''पीठ पर छुरा भोंकने वाले लोग दोस्त नहीं कहलाते।'' वकील गरज
उठा, ''आप लोगों ने तो अपने वंशजों के लिए जीतेजी कब्र तैयार
कर दी।. . .आज हम लोग उन्हीं कब्रों में जीने के लिए अभिशप्त
हैं। क्या यही है आपकी दोस्ती का तोहफ़ा?''
''मैं कुछ समझा नहीं।'' प्रोफ़ेसर के चेहरे पर आश्चर्य के भाव
उग आए।
''इस समय आप जिस अदालत में खड़े हैं, वह ज़मीन से दस फिट नीचे की
सतह पर बनी हुई है।'' वकील ने कहना शुरू किया, ''प्रदूषण,
आक्सीजन की कमी और सूर्य की अल्ट्रावायलेट रेज़ से बचने के लिए
इसके सिवा हमारे पास कोई चारा नहीं था। आज पृथ्वी पर वृक्षों
का नामोनिशान मिट चुका है, ओज़ोन की छतरी विलीन हो चुकी है,
समुद्रों का जल स्तर बेतहाशा बढ़ गया है और आँधी तूफ़ान तो धरती
की ऊपरी सतह पर दैनिक कर्म बन गया है।''
प्रोफ़ेसर यासीन यंत्रवत खड़े
थे और वकील बोले जा रहा था, ''ये सब पर्यावरण छेड़छाड़ और
वृक्षों के विनाश का परिणाम है। आज हम लोग न ज़्यादा हँस सकते
हैं और न ज़्यादा बोल सकते हैं। कृत्रिम आक्सीजन के सहारे हम
ज़िंदा तो हैं, पर एक मशीन बन कर रह गए हैं।. . .और हमारी इस
ज़िंदगी के ज़िम्मेदार आप हैं, आपके समकालीन लोग हैं। आप लोगों
ने अपने क्षुद्र स्वार्थ के लिए पेड़ों का नाश कर दिया, धरती को
नंगा कर दिया। आप अपराधी हैं अपराधी। ऐसे अपराधी, जिसने समस्त
मानवता का खून किया है। आपको सज़ा मिलनी ही चाहिए, सख़्त से
सख़्त सज़ा मिलनी चाहिए।''
कहते–कहते वकील का चेहरा क्रोध से लाल पड़ गया। वह बुरी तरह से
हाँफने लगा। अवश्य ही यह ऑक्सीजन की कमी का परिणाम था। यह
देखकर स्वयं प्रोफ़ेसर यासीन भी आश्चर्यचकित हुए बिना न रह
सके।
''मानवीय अधिकारों की रक्षक यह अदालत मुल्ज़िम को अपराधी मानते
हुए उसके लिए सजाए मौत का हुक्म सुनाती है।'' जज की गंभीर
आवाज़ हॉल में गूँज उठी।
प्रोफ़ेसर कोई प्रतिवाद न कर सके। जैसे कि उनके बोलने की
क्षमता ही समाप्त हो गई हो। उनका मस्तिष्क संज्ञाशून्य हो गया
और मन अपराधबोध की सरिता में डूबता चला गया।
जल्लाद रूपी रोबो के शरीर से
निकली लाल किरणों ने प्रोफ़ेसर को अंतिम बार ट्रांसमिट किया।
जब उन्हें होश आया, तो उन्होंने स्वयं को ब्लैकहोल की संवृत्त
कक्षा में घूमते हुए पाया, जिसकी परिधि धीरे–धीरे कम होते हुए
उसके केंद्र की ओर जाती थी।
शरीर को अणुओं–परमाणुओं के रूप में विघटित कर देने वाले भावी
विस्फोट के बारे में सोचकर ही प्रोफ़ेसर के मुँह से भय मिश्रित
चीख निकल गई। डर के कारण उनकी आँखें अपने आप ही बंद हो गयी
थीं।
लेकिन जब उनकी आँख खुली, तो न ही वहाँ अंतरिक्ष था और न ही
ब्लैकहोल। वे अपनी प्रयोगशाला में आराम कुर्सी पर बैठे थे। उसी
कुर्सी पर बैठे–बैठे ही वे स्वप्न देख रहे थे। पास में ही
समय-यान खड़ा था, जो कि अपने आरंभिक चरण में था।
''सर, समयचक्र की रूपरेखा तैयार हो गई है आप आकर चेक कर
लीजिए।'' ये आवाज़ उनके सहायक विजय की थी।
''नहीं विजय, अभी हमें समयचक्र नहीं, बल्कि अपने समय को देखना
है। अन्यथा सारा संसार जीते-जी कब्र में दफन हो जाएगा और फिर
सावन के अंधे को भी हरियाली नसीब नहीं हो पाएगी।'' कहते हुए
प्रोफ़ेसर यासीन दरवाज़े की तरफ़ बढ़ गए।
प्रोफ़ेसर का सहायक विजय
आश्चर्यपूर्वक उन्हें जाते हुए देख रहा था। क्यों कि अन्य लोगों
की तरह उसे भी वास्तविक ज़रूरत का एहसास नहीं हो पा रहा था।
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