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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
भारत से
सूर्यबाला की कहानी- 'हीरो'


उसने बाज़ी मार ली थी।
क्यों कि वह हवाई जहाज़ से पहुँचा था।
आसपास के शहरों और कस्बों से अवश्य कई रिश्तेदार ट्रेनों से, बसों से या एकाध अपनी गाड़ी से भी आ चुके थे।
ट्रेनों से आने वाले, भारी, दबे, गले से बता रहे थे किस तरह बिना आरक्षण के, भीड़ भरे डिब्बों में ठुँस कर पहुँच पाए वे क़्योंकि पहुँचना तो था ही।

दूसरों ने बताया कि ख़बर मिलते ही, बस के इंतज़ार में समय न गँवा कर शेयर्ड टैक्सी लेकर आना उन्होंने ज़्यादा ठीक समझा।
लेकिन उसे कुछ भी कहने या बताने की ज़रूरत नहीं थी। वह, काफ़ी दूर होने के बावजूद हवाई जहाज़ से पहुँच गया था और पहुँचने के साथ ही, पूरी मुस्तैदी से अंतिम-संस्कार की तैयारियों में शामिल हो गया था।
दिवंगत बुजुर्ग नि:संतान थे औ़र क़रीब-क़रीब सारे रिश्तेदार दूर-दराज़ के ही थे।

कौन कितने आगे बढ़े, कितनी छूट ले, इसका पसोपेश भी। लोग अकेली बची गृहस्वामिनी से संवेदना प्रकट करते और भीड़ में शामिल हो जाते। तभी उसने आसपास खड़े लोगों के बीच अपनी निश्चयात्मक आवाज़ में घोषणा-सी कर दी कि 'दाग' वही देगा।

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