| बहुत पहले 
                    मैं एक लड़की को जानता था। वह दिन-भर पार्क में खेलती थी। उस 
                    पार्क में बहुत-से पेड़ थे, जिनमें मैं बहुत कम को पहचानता था। 
                    मैं सारा दिन लायब्रेरी में रहता था और जब शाम को लौटता था, तो 
                    वह उन पेड़ों के बीच दिखाई देती थी। बहुत दिनों तक हम एक-दूसरे 
                    से नहीं बोले। मैं लंदन के उस इलाके में सिर्फ कुछ दिनों के 
                    लिए ठहरा था। उन दिनों मैं एक जगह से दूसरी जगह बदलता रहता था, 
                    सस्ती जगह की तलाश में।  वे काफ़ी 
                    गऱीबी के दिन थे।वह लड़की भी काफ़ी गऱीब रही होगी, यह मैं आज सोचता हूँ। वह एक 
                    आधा-उघड़ा स्वेटर पहने रहती, सिर पर कत्थई रंग का टोप, जिसके 
                    दोनों तरफ़ उसके बाल निकले रहते। कान हमेशा लाल रहते और नाक का 
                    ऊपरी सिरा भी - क्योंकि वे अक्तूबर के अंतिम दिन थे - सर्दियाँ 
                    शुरू होने से पहले दिन और ये शुरू के दिन कभी-कभी असली 
                    सर्दियों से भी ज़्यादा क्रूर होते थे।
 सच कहूँ तो 
                    ठंड से बचने के लिए ही मैं लायब्ररी आता था। उन दिनों मेरा 
                    कमरा बर्फ हो जाता था। रात को सोने से पहले मैं अपने सब स्वेटर 
                    और जुराबें पहन लेता था, रजाई पर अपने कोट और ओवरकोट जमा कर 
                    लेता था - लेकिन ठंड फिर भी नहीं जाती थी। यह नहीं कि कमरे में 
                    हीटर नहीं था, किंतु उसे जलाने के लिए उसके भीतर एक शिलिंग 
                    डालना पड़ता था। 
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