आपको पता है अनुरिक्ता फैशन डिज़ाइनर है? उसके
रहन-सहन से- घर के बनाव-सिंगार से नहीं लगता आपको? विवेक भी इसी लाइन का आदमी है।
वो एक एड-एजेंसी चलाता है। एक ही लाईन में होने पर रिश्तों में प्रगाढ़ता आ जाने की
संभावनाएँ कई गुना बढ़ जाती हैं। लेकिन कई दफ़ा रिश्तों की कलई खुल जाने में भी
वक्त नहीं लगता, ये अलग बात है। शुरुआती दोस्ती के बाद दोनों के बीच गहरे आत्मीय
रिश्ते बन गए थे। दोनों ने भावना की आग में शरीरों को तापना शुरू कर दिया था। तपे
हुए शरीरों पर कब कोई ओस की बूँद टिकी है? ओस का मतलब तो एक अनछुई, नाजुक, निर्मल
हँसी है और कुछ नहीं। छू दिया, मानो सब ख़त्म। प्यार भी देह की दहक के सामने यों ही
उड़ता है। तब शुरू होती हैं- अपेक्षाएँ। हर वक्त मेरे ही साथ रहो, मेरे ही बारे में
सोचो, मुझसे ही बातें करो। हर रात मेरे ही साथ सोओ। किससे बातें कर रही थी? किसके
साथ घूम रही थी? क्या दादागिरी है भई?
अनुरिक्ता इन सब रोका टोकी की अभ्यस्त नहीं है। वो
अपने घरवालों की ही नहीं सुनती तो विवेक क्या चीज़ है? ऐसे में वो बहुत जल्दी उखड़
जाती है। आज रात भी ऐसा ही कुछ हुआ। घड़ी देख रहे हैं आप? अभी रात का एक बज रहा है।
तब शायद दस बजे का वक्त रहा होगा। टीवी देखने के बाद दोनों इस कमरे में आए। बग़ैर
एक मिनट का भी समय गँवाए दोनों ने अपने आपको वस्त्रों और अंतर्वस्त्रों के बंधन से
मुक्त किया और धधकती देहों को वासना की भट्टी में झोंक दिया। उसी के निशानात हैं,
ये बिखरे हुए अंतर्वस्त्र और सिमटी हुई बेडशीट। दूर-दूर पड़े तकिए भी?
नहीं। ये कुछ और दास्ताँ कह रहे हैं। चलिए पूरा
किस्सा सुनाते हैं आपको। जैसा अक्सर होता है आज रात भी वो और विवेक बिस्तर पर साथ
थे। एक दूसरे की बाँहों में पड़े बतिया रहे थे। विवेक ने सिगरेट जला ली थी और
अनुरिक्ता पिछले हफ्ते की गढ़ मुक्तेश्वर आऊटिंग की तस्वीरें देख रही थी लेटी-लेटी।
अचानक विवेक ने धुएँ का छल्ला उछालते हुए पूछा "कल रात तुम कहाँ थी?" "रमोला के
साथ एक फैशन गैलेरी गई थी।" उसने तस्वीरें देखते हुए लापरवाही से जवाब दिया।
"कौन-सी फैशन गैलेरी?" विवेक का अगला प्रश्न। "डिज़ायर।" अनु पूर्ववत थी।
"तुम्हारा फ़ोन स्विच ऑफ बता रहा था रात भर।" "नहीं तो। स्विच ऑफ़ तो मैं कभी
रखती ही नहीं।" "स्विच ऑफ ही था। तुम रमोला के साथ भी नहीं थी।" इस बार विवेक ने
ज़रा ज़ोर देकर कहा। "वॉट डू यू मीन?" अनुरिक्ता पलंग की टेक लगा कर बैठ गई।
"आई मीन दैट यू वर नॉट विद रमोला लास्ट नाईट।" "तुम कहना क्या चाहते हो?"
"यही कि कल रात तुम होटल सी व्यू में थी। ओरिजन ग्रुप के जी. एम. प्रभात सीकरी के
साथ और रात भर तुम एक साथ थे। एक ही कमरे में। बोलो थे कि नहीं?" विवेक भड़क उठा।
"हाऊ डेअर यू? तुम मेरी जासूसी करते हो। हाँ थी। बोलो?" अनुरिक्ता खुल कर आ गई थी।
"डू यू थिंक, हाऊ मच इट हर्टस मी?" "तुम अपने आप को समझते क्या हो? मेरा पति? आई
एंजॉय द थिंग्स अकॉर्डिंग टू माई विशेज़। तुम सोचते हो तुम मुझे 'यूज' करते हो। यह
तुम्हारी भूल है। 'यूज' तो तुमको मैं करती हूँ। इस वक्त तुम मेरे बेडरूम में हो ना
कि मैं तुम्हारे बेडरूम में। तुमने क्या सोचा कि मैं तुम्हारे साथ सो ली तो
तुम्हारी जागीर हो गई? अब किसी और के साथ मेरा कोई लेना देना नहीं हो सकता? क्यों?
क्या मैं कभी तुमसे ऐसा एक्स्पेक्ट करती हूँ?" अनुरिक्ता एकाएक उत्तेजित हो गई।
"फिर हमारे बीच का रिश्ता किस आधार पर टिका है?" विवेक ने तर्क़ की बात की।
"म्युच्युअल फुलफिलमेंट ऑफ नीडस के आधार पर, जिसमें ना मैं तुम पर कोई अहसान करती
हूँ ना तुम मुझ पर। हम दोनों एक दूसरे के अकेलेपन की प्यास को बुझाने के साधन मात्र
हैं। बस। ना इससे ज़्यादा ना इससे कम। इससे आगे तो बिल्कुल नहीं। समझे?" "तब फिर
क्यों अपने आप को 'वरजिन' दिखाने का ढोंग करती फिरती हो?" "इटस माई स्टाईल।" वो
मुस्कुरा दी इस दफ़ा। विवेक तिलमिला कर रह गया। मानो किसी ने उसके मुँह पर एक
ज़ोरदार झापड़ मार दिया हो। "यू बिच।" बौखलाहट में वो बस इतना ही कह पाया और
उसने अपना तकिया उठा कर अनुरिक्ता के सिर पर दे मारा। बदले में अनुरिक्ता ने भी उस
पर तकिया उछाल दिया।
विवेक के 'कार्यकाल' का आँकडा दिनों से बढ़कर
महिनों में क्या तब्दील हुआ वो अपने आप को अनुरिक्ता का परमानेंट ब्वॉय फ्रैंड ही
समझने लगा। मूर्ख कहीं का। ये भी नहीं जानता कि नए 'बाँके जवान' की अनुपलब्धता के
कारण उसका स्टे एकस्टेंड हो रहा है ब़स। वरना अनुरिक्ता जैसी लड़की कितने दिनों तक
एक ही खिलौने से खेलती रह सकती है भला? ऐसे में विवेक का ये समझ लेना कि वो सिर्फ़
उसी की जागीर है। उसी के साथ रहने-खाने-सोने के लिए बनी है। तो बताओ क्या होगा? यही
ना कि तकिए उठा-उठा कर फेंके जाएँगे। हवा में हाथ हिला-हिला कर चिल्लाया जाएगा।
सिगरेट पीते-पीते बीच ही में ऐश-ट्रे में रख दी जाएगी और लेटेस्ट फ़ोटो जो कि
दिखाने के लिए लाई गई थी, चिंदी-चिंदी करके हवा में उछाल दी जाएगी। आनन-फानन में तब
पैंट चढ़ाकर, शर्ट के बटन बंद करता हुआ वो चला जाएगा। बड़बड़ाता हुआ. . .
पीछे-पीछे ही जल्दबाज़ी में अनुरिक्ता भी नाईटी
हटाकर स्कर्ट-टॉप डालेगी। नीचे गिरी नाईटी को उठाकर बैड पर फेंकेगी और विवेक के
पीछे-पीछे धड-धड करती सीढ़ियाँ उतर जाएगी।
चलो, घर देख लिया आपने? अच्छा हुआ। घर और घर में
रहने वाली के बारे में काफ़ी कुछ जान गए आप, पहली ही विज़िट में। ये भी जान गए कि
आजकल वो अकेली है और विवेक से उसकी खटपट चल रही है। 'वेकेन्सी' कन्फर्म है। आप
जाएँगे अब? ओके गुड नाईट। ओ! सॉरी। गुड मॉर्निंग। सी.यू.। एक्सक्यूज़-मी, मेरा
परिचय जानना चाहेंगे आप? आप कहेंगे- 'बिलकुल, क्यों नहीं?' मैं कहूँगी- 'मैं
हूँ -अनुरिक्ता'।
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