कई
बार फोन करने पर एक आध बार जब वह पकड़ में आया भी तो
गिड़गिड़ाने लगा कि छ: महीने की मोहलत और दे दो। छह
महीने पूरे होते ही वह मकान खाली कर देगा। सारे
पेमेंट भी कर देगा और किसी भी तरह की शिकायत का मौका नहीं
देगा।
लंदन में बैठे हुए महेश के पास इसके अलावा और कोई उपाय भी नहीं
था क्योंकि इस बीच उसका एजेंट भी अपनी दुकान बंद करके वहाँ से
गायब हो चुका था और किरायेदार से कम से कम सात महीने का किराया
भी ले जा चुका था। ये वही एजेंट था जो महेश के लंदन जाते समय
आधी रात को अपनी वैन ले कर आया था और उसका सारा सामान लाद कर
एयरपोर्ट ले गया था। महेश को विदा करते समय वह महेश के गले लग
कर फूट-फूट कर रो रहा था और टेसुए बहा रहा था कि आप जैसा खरा
और जिंदादिल इंसान मैंने जिंदगी में नहीं देखा। और यही एजेंट
अपना बोरिया-बिस्तर समेट कर चंपत हो चुका था।
महेश बता रहा है कि लंदन से चलने से पहले उसने किरायेदार को
दसियों बार फोन करके अपने आने की सूचना दे दी थी कि वह सिर्फ
मकान खाली कराने के मकसद से ही आ रहा है और उसका यहाँ और कोई
काम नहीं है। इसलिए वह जैसे भी हो, मकान खाली रखे ताकि उसे
यहाँ बेकार में रूकना न पड़े। किरायेदार के ही कहने पर महेश ने
यहाँ आने की तारीख दो बार बदली। जब भी महेश ने उसे बताया कि
मैं आ रहा हूँ, किरायेदार ने कोई न कोई बहाना बना कर थोड़ा समय
और माँगा। एक बार दो महीने का और एक बार एक महीने का। दो बार
किरायेदार के कारण और एक बार खुद की छुट्टी मंजूर न होने के
कारण महेश का आना तीन बार टला और आखिर वह आ ही गया है।
महेश के यहाँ पहुँचते ही हम दोनों ने सुबह-सुबह ही किरायेदार
के घर पर हमला बोल दिया है। यही वक्त है जब उसे घर पर घेरा जा
सकता है। हम दोनों को सुबह छ: बजे ही अपने दरवाजे पर देख कर
पहले तो किरायेदार हैरान हुआ, फिर किसी तरह संभल कर बोला -
अच्छा हुआ, आप आ गये। मैंने अपने लिए दूसरे मकान का इंतजाम कर
लिया है, कल बारह बजे मुझे चाबी मिल जायेगी। कल शाम तक आपका
मकान आपको खाली मिल जायेगा। इससे आगे उसने संवाद की गुंजाइश ही
नहीं छोड़ी।
महेश घर में कदम रखते ही परेशान हो गया है। किरायेदार ने घर
बहुत ही बुरी हालत में रख छोड़ा है। हम दोनों ही हैरान हो गये
हैं कि क्या ये महेश का वही घर है जिसे वह इतनी सफाई से और
इतने जतन से साफ-सुथरा रखता था। लग ही नहीं रहा है कि इस घर
में कोई दो साल से लगातार रह रहा है। चारों तरफ मकड़ी के जाले
लगे हुए हैं। कागजों के ढेर, कचरा और ढेरों फटे पुराने जूते
ड्राइंगरूम की शोभा बढ़ा रहे हैं। रसोई का तो और भी बुरा हाल
है। जैसे वहाँ दो साल से कचरा ही न बुहारा गया हो। एक अजीब-सी
बदबू पूरे घर में फैली हुई है। जैसे अरसे से कई चूहे मरे पड़े
हों घर में और उन्हें बाहर निकाला ही न गया हो।
उसने एक और बदमाशी की है उसने कि ड्राइंगरूम में ही दीवार पर
एक बहुत बड़ा-सा लकड़ी का मंदिर ठोक दिया है। महेश जब यहाँ
रहता था तो उसने कभी ड्राइंगरूम में एक कील तक नहीं ठोंकी थी
और अब।
इस समय उससे कुछ कहने का मतलब ही नहीं है। बस एक दिन की ही तो
बात है। हम खाली हाथ वापिस लौट आये हैं।
.
और आज सात दिन बीत जाने के बाद भी हम महेश का मकान खाली नहीं
करवा पाये हैं। हर बार एक नया बहाना। हर बार थोड़ी और मोहलत के
लिए गिड़गिड़ाना और नये सिरे से वायदे करना ही चलता रहा है इस
दौरान।
जब हम अगले दिन वहाँ गये तो पता चला, किरायेदार घर पर नहीं है,
रात को देर से आयेगा। घर को देखते हुए ऐसा कोई संकेत नहीं मिल
रहा था कि घर खाली करने की कोई तैयारी ही की गयी होगी। जबकि
किरायेदार के मुताबिक तो हमें इस वक्त खाली घर की चाबी लेने
आना था।
हम अगले दिन सुबह-सुबह ही जा धमके हैं वहाँ। एक बार फिर निराशा
हाथ लगी है। पता चला है कि रात को जनाब घर वापिस ही नहीं आये।
आउटडोर शूटिंग के सिलसिले में बाहर गये हुए हैं। आज शाम तक आने
की उम्मीद है।
दरवाजा एक खूबसूरत और जवान लड़की ने खोला है। उसके पीछे एक और
लड़का खड़ा है जिसके बारे में लड़की ने ही बताया है कि वह अंकल
का ड्राइवर है। लड़की का परिचय पूछने पर उसने बताया है कि वह
गोपालन की भतीजी है और यहाँ कुछ दिनों के लिए एक प्रोजेक्ट के
सिलसिले में आयी हुई है। ये बात हमारे गले से नीचे नहीं उतर
रहीं क्योंकि एक तो वह लड़की किसी भी नज़रिये से मलयाली नहीं
लग रही और नीचे आने पर हमें वाचमैन ने भी यही बताया कि ये
लड़की तो अकसर यहाँ आती रहती है। एक और बात हमें परेशान करने
लगी है कि बेशक किरायेदार ने महेश को बताया था कि वह मॉडल
कोऑर्डिनेटर है लेकिन वॉचमैन और सोसायटी के दूसरे लोगों ने जो
कुछ बताया है उसके अनुसार वहाँ रात-बेरात जिस तरह की लड़कियों
का आना-जाना है, उनमें से ज्यादातर मॉडल तो क्या, सड़क किनारे
खड़ी नज़र आने वाली पतुरिया से ज्यादा नहीं लगती। जैसा
कोऑर्डिनेटर, वैसी ही मॉडल।
फिलहाल ये हमारा मुद्दा नहीं है कि किरायेदार क्या करता और
क्या कराता है। फिलहाल हमारी चिंता महेश का मकान वापिस पा लेने
की है जो हमारे सामने होते हुए भी वापिस नहीं मिल रहा।
लड़की ने जब दरवाजा खोला था तो हम सीधे अंदर तक चले आये थे।
महेश का खून वैसे ही खौल रहा था। आज उसे आये चार दिन हो गये थे
और किरायेदार था कि लुका-छिपी का खेल खेल रहा था। लड़की हमें
इस तरह अंदर आते देख कर घबरा गयी लेकिन जब महेश ने उसे बताया
कि वह मकान मालिक है और पिछले चार दिन से गोपालन के पीछे चक्कर
काट काट कर परेशान हो गया है वो लड़की ने जैसे सरंडर ही कर
दिया - आप चाहें तो अभी के अभी मकान खाली करा सकते हैं। मैं
अपना सामान ले कर होटल चली जाऊँगी लेकिन क्या ये बेहतर नहीं
होगा कि जहाँ आपने इतने दिन इंतज़ार किया, एक दिन और सही।
लड़की ने जिस तरह से पूरी बात की और सहयोग देने का आश्वासन
दिया, हम चाह कर भी उसे खड़े-खड़े बाहर नहीं निकाल पाये। वैसे
भी किरायेदार की गैर हाजिरी में मकान खाली कराना न केवल गलत था
बल्कि इससे अनधिकृत और जबरन प्रवेश का मामला भी बन सकता था।
भले ही वह बेईमान था लेकिन था तो किरायेदार ही।
अलबत्ता, हमने इतना जोखिम जरूर लिया कि वॉचमैन की मदद से
ड्राइंगरूम में से मंदिर उखड़वा दिया है। मंदिर के पीछे इतने
काक्रोच निकले कि वह लड़की तो डर ही गयी। हमारा मूड तो खराब
हुआ ही।
हम रात के वक्त के फिर वहाँ गये हैं और इस बार चार-पांच आदमी
गये हैं और ये तय करके गये हैं कि कैसे भी आज मकान खाली करा ही
लेना है। लेकिन वहाँ एक और ही सदमा हमारा इंतजार कर रहा है। घर
पर केवल ड्राइवर है। वह लड़की वहाँ से शिफ्ट कर चुकी है।
ड्राइवर ने जो कुछ बताया है उसे सुन कर हमें हँसी भी आ रही है
और खून भी खौल रहा है। अगर ड्राइवर पर भरोसा किया जाये तो
गोपालन शाम की फ्लाइट से केरल में अपने गाँव गया है, शादी
करने। हमें गुस्सा इस बात पर आ रहा है कि गोपालन एक बार फिर
गच्चा दे गया और हँसी इस बात पर आ रही है कि बदमाश के पास रहने
के लिए छत नहीं है, जो है उसे खाली कराने के लिए हम कब से उसे
तलाशते फिर रहे हैं और जनाब पचपन साल की उम्र में फिर से ब्याह
रचाने गाँव गये हुए हैं।
.
बहुत मुश्किल से ड्राइवर गोपालन के गाँव का फोन नम्बर तलाश कर
पाया है। उसे तो वह भी न मिलता। एक तरह से हमने ही उसके गाँव
का नम्बर तलाशा। हुआ ये कि वहाँ हमें पड़े ढेरों कागजों में
एसटीडी बूथ से की गयी एसटीडी कॉलों की कई रसीदें मिलीं। उनमें
से सबसे ज्यादा बार जिस नम्बर पर फोन किये गये थे, उन रसीदों
पर दिये गये एसटीडी कोड के जरिये ही नम्बर का अंदाजा लगा पाये।
इसी नम्बर के जरिये हमने उसके गाँव के नाम का पता लगाया और फिर
ड्राइवर से भी गाँव का नाम कन्फर्म किया, संयोग से वहाँ कुछ
पत्र हमें रखे मिल गये जिन पर गाँव का नाम लिखा हुआ था। आखिर
जायेगा कहाँ बच्चू। शादी करने गया हो या अपने धंधे के लिए नयी
मॉडल तलाशने, आखिर वापिस तो यहीं आयेगा। कब तक बचता बचाता
फिरेगा।
संयोग से गोपालन घर पर मिल गया है और महेश ने इस बात की परवाह
किये बिना कि गाँव में शादी कराने गया हुआ है, फोन पर ही उसकी
जो लानत-मलामत की है, गोपालन जिंदगी भर याद रखेगा। लगभग पंद्रह
मिनट तक महेश उसे फोन पर ही धोता रहा और जब उसे ये धमकी दी गयी
कि आज ही उसका सारा सामान उसकी गैर-मौजूदगी में सड़क पर डाल
दिया जायेगा पुलिस केस बनता है तो बने, तो उसने एक बार फिर
गिड़गिड़ा कर सिर्फ तीन दिन की मोहलत माँगी है और कहा है कि वह
कैसे भी करके आते ही घर खाली कर देगा।
महेश मकान को ले कर बहुत परेशान हो रहा है। वह जानता है कि
किरायेदार उसके लंदन में होने का पूरा फायदा उठा रहा है।
गोपालन को पता है कि महेश हमेशा के लिए तो छुट्टी ले कर उसके
पीछे चक्कर काटने से रहा इसलिए वह लगातार कोशिश करके सामने आने
से ही बच रहा है।
हम पुलिस चौकी गये हैं कि इस बारे में क्या वहाँ से कोई मदद
मिल सकती है तो पुलिस ने साफ जवाब दे दिया है कि वे इस तरह के
मामलों में कुछ नहीं कर सकते। जब महेश ने उन्हें गोपालन के
हस्ताक्षर वाला बिना तारीख का मकान खाली करके देने वाला कागज
दिखाया तो पुलिस का यही कहना है कि आप बेशक जोर-जबरदस्ती से
मकान खाली करवा लीजिये, वे बीच में नहीं आयेंगे।
महेश ने लंदन जाने से पहले यहीं और इसी इलाके में कम से कम
पंद्रह बरस गुजारे हैं और वह यहाँ के कायदे कानूनों से और काम
करने के तौर तरीकों से अच्छी तरह से वाकिफ है फिर भी लगातार
सबको गालियाँ दे रहा है कि ये सब लंदन में होता तो ये हो जाता
और वो हो जाता। फिलहाल स्थिति यही है कि वह तीन बार अपने वापिस
जाने की तारीख आगे खसका चुका है। वहाँ उसके काम का हर्जा हो
रहा है वो अलग। लेकिन किया भी क्या जाये। इस देश में मकान
किराये पर देने वालों की यही नियति होती है। अपना मकान वापिस
पाने के लिए क्या-क्या पापड़ नहीं बेलने पड़ते।
.
इस बीच हम लगातार महेश के इस्टेट एजेंट की तलाश करते फिर रहे
हैं। कोई बताता है कि वह मीरा रोड की तरफ चला गया है तो कोई
बताता है कि अब उसने ये काम ही छोड़ दिया है और चिंचपोकली के
पास कम्प्यूटर सेंटर खोल कर वहाँ नया धंधा कर रहा है। जितने
मुँह उतनी ही बातें और सारी की सारी भ्रामक। हम कई जगह भटकते
रहे उसकी तलाश में लेकिन वह किसी के भी बताये पते पर नहीं
मिला।
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आखिर गोपालन वापिस लौट आया है। हम जानते हैं कि ये गलत है कि
वह आज ही गाँव से शादी करके आया है और अपने साथ नयी ब्याहता
दुल्हन ले कर आया है और हम इस तरह से सुबह सुबह ही तकादा करने
वालों की तरह जा धमकें। आखिर उसकी शादी हुई है और हम उसे ठीक
ठीक तरीके से बधाई देने जाएँ लेकिन महेश का कहना है कि इस तरह
जाने से वह मानसिक रूप से दबाव में आयेगा। यही बात हमारे पक्ष
में जायेगी। और हम सचमुच उसे बधाई देने के बजाये उसे घर खाली
करने के लिए धमकाने चले आये हैं।
लेकिन मानना पड़ेगा गोपालन को भी। इस बार भी उसके पास एक और
रेडिमेड बहाना है कि जिस आदमी के घर उसे शिफ्ट करना है उसका
जीजा मर गया है। कम से कम चौथे दिन के संस्कार तक के लिए इसे
मोहलत दी जाये। उसके चेहरे पर एक शिकन तक नहीं है कि वह एक
हफ्ते से हमें इस तरह लटकाये हुए हैं। महेश चाह कर भी इस बीच
अपनी अकेली और विधवा माँ से मिलने मुरादाबाद नहीं जा पाया है।
इस तरफ से कुछ तय हो तो ही वह कुछ और करने की सोचे।
महेश का सिर एकदम गर्म हो गया है। वह कुछ सुनने के लिए तैयार
नहीं है। बात ठीक भी है। ये आदमी महेश को कब से बेवकूफ बना रहा
है और लगातार तनाव में रखे हुए हैं। खुद उसे अपनी जिम्मेदारी
का ज़रा सा भी ख्याल नहीं है। अगर किसी ने मेहरबानी करके आपको
किराये पर मकान दे दिया तो उसका ये मतलब तो नहीं कि आप उसे
मकान खाली कराने के लिए रूला डालें। गोपालन यही कर रहा है
पिछले कई दिनों से।
महेश ने उसे आखिरी चेतावनी दे दी है - मैं आपको कल शाम तक का
समय दे रहा हूँ और ये आखिरी वार्निंग है। अगर इसके बाद भी आप
मकान खाली नहीं करते तो मैं बाहर से ताला लगा दूँगा। मैं ये भी
नहीं देखूँगा कि आप घर के अंदर हैं या आपकी बीबी बाथरूम में
बंद रह गयी है।
हम ये धमकी दे कर आ तो गये हैं लेकिन नहीं जानते कि कल क्या
होनेवाला है।
इस बीच गोपालन ने दो तीन फीलर्स भिजवाये हैं कि किसी तरह से
उसे थोड़ा-सा समय और मिल जाये लेकिन महेश ने किसी भी संदेश
देने वाले से बात करने से ही मना कर दिया है। हम जानते हैं कि
हर बार गोपालन ने मोहलत माँगी है और हर बार वह मुकर गया है।
.
और गोपालन ने इस बार भी मकान खाली नहीं किया है। सोसायटी के
कहने पर महेश ने दरवाजे पर ताला तो नहीं लगाया है लेकिन गोपालन
को और कोई मौका न देने का फैसला कर लिया है।
हम बहुत परेशान हो चुके हैं। वह हमारे धैर्य की इतनी परीक्षाएँ
ले चुका है कि अब तो पानी कब का गले से ऊपर आ चुका है। हम
परेशान हाल यूँ ही बाज़ार में घूम रहे हैं कि सामने एक इस्टेट
एजेंट का बोर्ड नज़र आया है। हम दोनों बिना किसी खास मकसद के
भीतर चले गये हैं कि शायद यहाँ से कोई मदद मिल जाये।
.
- आइये साहब जी। भीतर एसी ऑफिस में बैठा आदमी हमारा स्वागत
करता है।
महेश बताता है उसे - नमस्कार! जी मेरा नाम महेश है और मैं लंदन
से आया हूँ।
- कहिये, आपकी क्या सेवा की जाये जी।
- जी बात दरअसल यह है कि मैं एक अजीब सी मुसीबत में फँस गया
हूँ और आपकी दुकान का बोर्ड देख कर सिर्फ इस उम्मीद में भीतर आ
गया हूँ कि शायद आप मेरी मदद कर सके।
- ये वो जी आपकी पूरी बात सुनने के बाद ही पता चल पायेगा साहब
जी कि हम आपके किस काम आ सकते हैं।
ये आदमी जिस तरह से बात कर रहा है, अपने धंधे का पूरा घाघ
मालूम होता है।
महेश उसे बता रहा है - दरअसल बात ये है कि मेरा एक घर था, मेरा
मतलब है कि मेरा एक घर है यारी रोड पर। मैं लगभग दो साल पहले
लंदन बसने के इरादेसे यहाँ से गया था तो चार बंगला के एक
इस्टेट एजेंट की मार्फत अपना फ्लैट किराये पर दे गया था। वही
लीव एँड लाइसेंस वाला चक्कर।
- ठीक, तो आगे
- आगे हुआ ये जी कि जब मैंने ग्यारह महीने बाद फ्लैट खाली
कराने के लिए किरायेदार को लंदन से खत भेजने शुरू किये तो उसने
एक का भी जवाब नहीं दिया और न ही किराया ही मेरे खाते में जमा
ही कराया न एजेंट को ही दिया।
- ठीक
- जब मैंने उसे लंदन से फोन किये तो उसने गिड़गिड़ाना शुरू कर
दिया कि वह कुछ तकलीफों में हैं और उसे छ: महीनों के लिए और
रहने की मोहलत दे दी जाये। अब मैं लंदन में बैठ कर मोहलत देने
के अलावा कर भी क्या सकता था। जब मैंने उससे पिछले किराये की
बात की तो उसने बताया कि वह किराया चंद्रकांत भाई को लगातार
देता रहा है, पचास हजार उसने एडवांस के दिये थे।
- ठीक
- वो जी मैंने तब चंद्रकांत भाई को फोन किया तो उसका फोन एक
बार भी नहीं मिला। बाद में मेरे दोस्तों ने बताया कि इस पते और
फोन नम्बर पर कोई इस्टेट एजेंट नहीं है। तब मैंने लंदन से अपने
किरायेदार को कई बार फोन करके बताया कि मैं फलां तारीख को बंबई
मकान खाली कराने आ रहा हूँ तो हर बार उसने यही कहा कि आपके आने
से दो दिन पहले मैं मकान खाली कर दूँगा और आपके आते ही आपको
चाबी थमा दूँगा।
- फिर
- फिर जी, आज मुझे बंबई आये हुए आठ दिन हो गये हैं। वह मकान
खाली करने को तैयार ही नहीं है। मैंने कई जगह पूछ के देख लिया
कि शायद कहीं से बदमाश चंद्रकांत भाई का पता चल जाये लेकिन वह
कहीं नहीं मिल रहा है।
- ठीक
- अब मुसीबत ये है कि मैं तीन बार अपनी टिकट कैंसिल करवा चुका
हूँ, उधर लंदन में मेरे काम का हर्जा हो रहा है और ये कम्बख्त
किरायेदार मकान खाली करने को तैयार ही नहीं है।
- क्या कहता है।
- पहले तो वह मेरे आने वाले दिन बड़े प्यार से मिला और कहने
लगा, परसों सुबह आप चाबी लेने आ जाएँ। घर आपको खाली मिलेगा। जब
मैं दो दिन बाद पहुँचा तो दो दिन वो घर ही नहीं आया। फिर पता
चला जनाब केरल निकल गये हैं अपने होम टाउन शादी करने।
- आपको कैसे पता चला?
- उस घर में, मेरा मतलब है मेरे घर में एक जवान लड़की और उस
किरायेदार का ड्राइवर रह रहे थे। लड़की ने बताया कि आप बेशक घर
खाली करा ले लेकिन अंकल दो दिन बाद वापिस आ रहे हैं सिर्फ दो
दिन रूक जाएँ। मैं रूक गया तो ड्राइवर से पता चला कि वो तो
शादी करने गया है। किसी तरह से हमने उससे केरल का नम्बर लेकर
फोन किया और उसे याद दिलाया कि उसे इस तरह से बिना घर खाली
किये नहीं जाना चाहिये था। उसने फिर वायदा किया कि वह तीसरे
दिन कैसे भी करके वापिस आ कर घर खाली कर देगा।
- फिर
- अब वह वापिस आ गया है शादी करके और अब तक उसने रहने का कोई
इंतजाम नहीं किया है।
- करता क्या है
- उस पर विश्वास किया जाये तो वह अपने आपको मॉडल कोऑर्डिनेटर
बताता है।
- और आपको क्या लगता है कि वह क्या है
- मुझे तो जी वह लड़कियों का दलाल ही लगता है। बिल्डिंग वाले
भी बताते हैं कि उस घर में रात-बेरात तरह तरह की लड़कियों का
आना जाना था।
- उम्र कितनी होगी उसकी
- यही कोई पचपन के आस पास
- और आप बता रहे हैं कि वह कल ही शादी करके आया है।
- मुझे तो जी उसकी शादी भी ड्रामा ही लग रही है।
- बिल्डिंग की सोसायटी, मेरा मतलब सेक्रेटरी वगैरह को आपने
विश्वास में लिया था क्या।
- वैसे तो सेक्रेटरी भला आदमी है और मेरी तरफ से पूरी कोशिश भी
कर रहा है कि मेरा मकान मुझे वापिस मिल जाये लेकिन दिक्कत यही
है कि जो भी उसे दो पैग पिला दे और फिश फ्राइ खिला दे, वह उसी
की तरफ हो जाता है।
- और कोई बात
- देखिये मैं अपने मकान को लेकर पिछले कई दिनों से इतना परेशान
हूँ कि क्या बताऊँ। कुछ समझ में नहीं आ रहा कि यहाँ कब तक मैं
कैंप डाले पड़ा रहूँगा और उस बदतमीज किरायेदार की लंतरानियाँ
सुनता रहूँगा। उस कम्बख्त ने छ: महीने से न बिजली का बिल जमा
कराया है और न ही टेलिफोन बिल ही। और तो और उस साले ने, गाली
देने को जी चाहता है, साल भर से मेरी डाक तक दबा कर रखी हुई
थी। आज सुबह उसने मुझे कोई सौ चिठि्ठयों का बंडल पकड़ा दिया कि
ये डाक है आपकी। दिल तो किया मेरा कि उसका वहीं खड़े खड़े गला
घोंट दूँ। |