"माँ,ये है मीतू -- मैत्रेयी।"
ध्रुव ने परिचय करवाया तो देखती ही रह गई। कटे बाल के नीचे
एक छोटा-सा चेहरा - वह भी आधा गॉगल्स से ढँका हुआ। नेवी
ब्ल्यू रंग की जीन्स के ऊपर चटख पीले रंग का पुलोवर। उस पर
बने हुए केबल्स इतने प्यारे कि कोई और होता तो पास बिठाकर
पहले डिजाइन उतार लेती - बाकी बातें बाद में होतीं।
''पर ये मीतू थी -- मैत्रेयी।''
अपनी सारी प्रतिक्रिया मन ही
में समेटकर मैंने सहज स्वर में कहा, " ड्राइंगरूम में चलकर
बैठो तुम लोग, मैं पापा को बुला लाऊँ?"
बच्चों के पापा हस्बेमामूल बगिया में ईजी चेयर में लेटे
अखबार पढ़ रहे थे। चार पन्नों का अखबार है, लेकिन पढ़ने में
सुबह से शाम कर देंगे। अपनी सारी खीज उन पर उँडेलते हुए
मैंने कहा, "बहूरानी आई हैं, चलकर मुआयना कर लीजिए।"
"बहूरानी!" उन्होंने चौंककर पूछा, फिर चश्मा उतारकर मुझे
सीधे देखते हुए बोले, "बहूरानी आई है तो तुम्हारा स्वर इतना
तल्ख क्यों हैं?"
एक-दो नहीं, साथ रहते पूरे
अठ्ठाईस साल हो गए हैं। मेरे स्वर का एक-एक उतार-चढ़ाव
उन्हें कंठस्थ हो गया है। फिर भी मैंने कोई जवाब नहीं दिया
और चाय बनाने के बहाने रसोई में चली गई। |