|  | दीदी को अन्दर आते देख मैं 
                      चौंक गया। आज तक वह ऐसे बिना ख़बर दिये नहीं आई थीं। वह बहुत 
                      पहले से ही ख़बर देती थीं, ताकि उनके रहने का हम पूरा 
                      प्रबन्ध कर रखें। जिन सुविधाओं की उन्हें आदत थीं, उनका हमें 
                      प्रबन्ध करना ही पड़ता था, फिर भी उनका आना हमेशा उल्लासमय 
                      वातावरण की सृष्टि करता था। चाय का प्याला लिए हुए मैं उठ 
                      खड़ा हुआ। ''एकाएक कैसे दीदी? ख़बर भी नहीं दी? मेरे स्वर में हर्ष, 
                      विस्मय दोनों थे। चारू ने झट से उनके पैर छुए और उनके हमेशा 
                      के आशीर्वाद की प्रतीक्षा में खड़ी हो गई। उसका चेहरा खिल 
                      उठा था। मैंने नन्ही और नीतू को आवाज़ दी, ''बच्चों, चलो 
                      तुम्हारे खिलौने आ गए।''
 ''नन्दू रुको, उन्हें यह कह कर मत बुलाओ। इस बार उनके खिलौने 
                      लाना भूल गई हूँ और हाँ, तुम्हारे रसगुल्ले भी नहीं लाई 
                      हूँ।'' वह कुछ खोई-खोई आवाज़ में बोलीं।
 ''दीदी, अब मैं मान गया कि तुम बूढ़ी हो गई हो। इतने सालों 
                      में पहली बार मेरे रसगुल्ले लाना भूली हो।'' मैं हँस कर बोला 
                      और उनकी ओर से किसी स्नेह भरे मज़ेदार उत्तर की प्रतीक्षा 
                      करने लगा, लेकिन देखा उनकी आँखें गीली हो गई है। गले में कुछ 
                      अटक-सा गया हो ऐसी आवाज़ में वह बोली, ''बूढ़ा होना अपराध तो 
                      नहीं है नन्दू।''
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