सात बातें जिनके लिये झिझक नहीं होनी चाहिये
कुछ उपयोगी सुझाव (संकलित)
३- नहीं कहने में-
सबसे ज्यादा दुख और अपराध बोध तब होता है जब कोई कहे कि
आपने तो यह काम के लिये कहा था पर किया नहीं, या हम तो
आपके भरोसे बैठे थे और आपने यह काम नहीं किया, या झूठा
वादा क्यों किया अगर काम कर नहीं सकती थीं। आप जाहें जिस
भी परिस्थिति में हों, चाहें जिससे भी बात कर रही हों इस
बात को समझकर चलें कि जिस चीज के लिये आप हाँ कहना पसंद
नहीं करतीं उसके लिये मना करने में झिझक नहीं होनी चाहिये।
आप अतिमानवी नहीं, परी या देवदूत नहीं, मशीन नहीं कि आपसे
जो कुछ भी कहा जाएगा आप कर देंगी। आप साधारण मानवी हैं,
आपको भी अपने और अपने प्रिय जनों के लिये समय चाहिये, आपकी
शक्ति, समय, आर्थिक स्थिति की सीमाएँ है, इसलिये आप हर
समय, हर किसी की सहायता नहीं कर सकती हैं। परिस्थिति के
अनुसार विनम्रता पूर्वक या दृढ़ता पूर्वक नहीं कहना सीख
लेना अच्छा है। नहीं कहने से आप बहुत सी कठिनाइयों से तो
बच ही जाएँगी, अकारण दूसरों की बुरी बनने से भी बच जाएँगी।
इसलिये न कहने में झिझक नहीं होनी चाहिये। (अगले अंक
में एक और सुझाव)
१२ मई १९१४
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