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सुबह से तीन
बार रपट चुकी थीं वे।
एक बार, किचेन में टँगी जाली की आलमारी से खीर के लिए इलायची
की डिब्बी निकालते हुए। दूसरी बार, पूजा वाले ताख से भभूति
उतारते हुए। और तीसरी बार -- बाथरूम में गीला तौलिया टाँगते
हुए।
न, कुछ खास नहीं, बस जरा-सी कूल्हे में चिलक, थोड़ी छिली,
रक्ताभ कोहनी और कनपटी पर आलमारी के कोने की खरोंच लेकिन चोट
के दंश और घाव की पीड़ा सहलाने का होश और फुरसत कहाँ?
पति पर इस समय ' पिता' हावी है। उनकी चोट से ज्यादा,
एयरपोर्ट पहुँचने में होती देर से चिंतित। चिंताकुल ' पिता' ने
घड़ी देखते हुए, और हड़बड़ाई उन्होंने एक हल्की कराह के साथ
मुस्कुराकर खड़ी होते हुए, एक ही वाक्य दुहराया है --
"पौने आठ तक एयरपोर्ट पहुँच जाना है।"
उसने लिखा तो
बार-बार है कि आप लोगों को एयरपोर्ट आने की बिल्कुल जरूरत
नहीं। मेरे साथ कुछ और लोग भी हैं। आराम से पहुँच जाऊँगा। पर
यह भी कोई बात हुई कि अपनी धरती पर उसके पैर पड़ने के बाद भी
पूरे पौने दो घंटे वे दोनों बिना उसे देखे रह जाएँ! |