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व्यक्तित्व

अभिव्यक्ति में डॉ रांगेय राघव की
रचनाएँ

गौरव गाथा के अंतर्गत कहानी
गदल

 

 

रांगेय राघव

जन्म :
१७ जनवरी १९२३, आगरा। मूल नाम टी.एन.बी.आचार्य (तिरूमल्लै नंबकम् वीरराघव आचार्य)।

शिक्षा :
आगरा में। सेंट जॉन्स कालेज से १९४४ में स्नातकोत्तर और १९४९ में आगरा विश्वविद्यालय से गुरू गोरखनाथ पर पी-एच.डी.। हिन्दी, अंग्रेजी, ब्रज और संस्कृत पर असाधारण अधिकार।

कार्यक्षेत्र :
१३ वर्ष की आयु में लिखना शुरू किया। १९४२ में अकालग्रस्त बंगाल की यात्रा के बाद एक रिपोर्ताज लिखा- तूफानों के बीच। यह रिपोर्ताज हिंदी में चर्चा का विषय बना। साहित्य के अतिरिक्त चित्रकला, संगीत और पुरातत्व में विशेष रूचि। मात्र ३९ वर्ष की आयु में कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, रिपोर्ताज के अतिरिक्त आलोचना, संस्कृति और सभ्यता पर कुल मिलाकर १५० से अधिक पुस्तकें लिखीं। रांगेय राघव के कहानी-लेखन का मुख्य दौर भारतीय इतिहास की दृष्टि से बहुत हलचल-भरा विरल कालखंड है। कम मौकों पर भारतीय जनता ने इतने स्वप्न और दु:स्वप्न एक साथ देखे थे - आशा और हताशा ऐसे अड़ोस-पड़ोस में खड़ी देखी थी। और रांगेय राघव की कहानियों की विशेषता यह है कि इस पूरे समय की शायद ही कोई घटना हो जिसकी गूँजें-अनुगूँजे उनमें न सुनी जा सकें।

सच तो यह है कि रांगेय राघव ने हिंदी कहानी को भारतीय समाज के उन धूल-काँटों भरे रास्तों, आवारे-लफंडरों-परजीवियों की फक्कड़ जिंदगी, भारतीय गाँवों की कच्ची और कीचड़-भरी पगडंडियों की गश्त करवाई, जिनसे वह भले ही अब तक पूर्णत: अपरिचित न रही हो पर इस तरह हिली-मिली भी नहीं थी और इन 'दुनियाओं' में से जीवन से लबलबाते ऐसे-ऐसे कद्दावर चरित्र प्रकट किए जिन्हें हम विस्मृत नहीं कर सकेंगे। 'गदल' भी एक ऐसा ही चरित्र है।

सम्मान व पुरस्कार
हिंदुस्तानी अकादमी पुरस्कार (१९४७), डालमिया पुरस्कार (१९५४), उत्तरप्रदेश शासन पुरस्कार (१९५७ तथा १९५९), राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार (१९६१) और मरणोपरांत महात्मा गाँधी पुरस्कार (१९६६) से सम्मानित। अनेक रचनाओं का हिंदीतर भारतीय और विदेशी भाषाओं में अनुवाद।

लंबी बीमारी के बाद १२ सितंबर १९६२ को बंबई में देहांत।

 
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