कलम गही नहिं हाथ
बना
रहे संवाद
पिछले दो सालों से यह स्तंभ कुछ व्यस्तताओं के चलते रुक
गया था।
यों तो रचनाओं पर टिप्पणी करने के लिये
अभिव्यक्ति अनुभूति फेसबुक समूह है और कई रचनाओं (विशेष
रूप से कहानियों) के नीचे भी जगह होती है पाठकों की राय के लिये लेकिन
इस स्तंभ का अपना एक संवाद था। नये साल में आशा है यह संवाद बना रहेगा।
नये साल के पहले अंक के साथ कुछ नये स्तंभ शुरू हो रहे
हैं। कहानियों पर विशेष दृष्टि रख रहे हैं नवोदित रचनाकार राहुल देव
समीक्षायण में और
आज के
दिन शीर्षक से मुखपृष्ठ के बाएँ स्तंभ में है कुछ रोचक जानकारी।
नये पुराने चुटकुलों के लिये
हास्य-व्यंग्य फिर से शुरू हो रहा है। नई नई व्यंजन विधियों को
लेकर वेब की प्रसिद्ध व्यंजन विशेषज्ञ शुचि हर सप्ताह हमारे
रसोईघर में पिछले साल से ही
रौनक बनाए हुए हैं। ये सब स्तंभ कैसे लग रहे हैं और इसके अतिरिक्त क्या
कुछ जोड़ा जा सकता है, क्या पढ़ना पसंद करेंगे उसे नीचे दिये गए
टिप्पणी बक्से में अवश्य लिखें ताकि संवाद बना रहे।
इस वर्ष से पाठकों के लिये
कहानियों की समीक्षा की एक नई प्रतियोगिता भी शुरू की गई है, जो
मासिक है। इस प्रतियोगिता की पहली कहानी थी दीपक शर्मा की रचना
बाप वाली।
अधिकतर पाठकों ने कथानक के सिवा कहानी के दूसरे अंगों पर ध्यान नहीं
दिया है। लेकिन धीरे धीरे हम सब मिलकर कहानी में चरित्र चित्रण,
देश-काल, भाषा शैली और संरचना आदि पर भी ध्यान देना सीखेंगे।
एक नई प्रतियोगिता फेसबुक के अभिव्यक्ति समूह के
रचनाकारों के लिये भी है। जिसमें हर सोमवार हास्य व्यंग्य, हर मंगल
छंदमुक्त, हर बुध गजल, हर गुरु गीत-नवगीत और हर शुक्र छोटे छंदों में
से सर्वश्रेष्ठ का चुनाव होता है। आशा है हमारे रचनाकार इसमें भाग
लेंगे और उन्हें यह रोचक लगेगा। जो रचनाकार बहुत समय से सक्रिय नहीं
हैं वे इस पर ध्यान दें, और जो किसी कारण से यह समूह छोड़ चुके हैं वे
जुड़ना चाहें तो सदस्यता के लिये अनुरोध भेज सकते हैं। यह समूह बंद है
और केवल अभिव्यक्ति अनुभूति के रचनाकारों को ही दिखाई दे सकता है।
इसके अतिरिक्त फेसबुक पर ही
नवगीत
की पाठशाला का भी एक समूह है जिसमें नवगीत सीखने वाले अपनी रचनाएँ
प्रकाशित कर सकते हैं। चुनी हुई रचनाएँ नवगीत की पाठशाला नामक ब्लाग पर
प्रकाशित होती हैं। और उसमें से भी चुनकर रचनाएँ अनुभूति में प्रकाशित
की जाती हैं। नवगीत में रुचि रखने वाले कोई भी नये या प्रतिष्ठित
रचनाकार इसके सदस्य बन सकते हैं।
इस वर्ष पहली जनवरी को अनुभूति अपने जीवन के तेरह साल
पूरे कर के चौदहवें में प्रवेश कर चुकी है। आप सब के सहयोग और स्नेह के
लिये हार्दिक आभार जिसके कारण हमारी टीम इसे निरंतर जारी रखने की
प्रेरणा और उत्साह प्राप्त करती रहती है। आगामी पंद्रह अगस्त को
अभिव्यक्ति अपने जीवन के चौदह वर्ष पूरे कर के पंद्रहवें में कदम
रखेगी। इस साल अभिव्यक्ति की शीर्षक इमेज और पृष्ठभूमि भी नयी है, आशा
है पसंद आएगी।
वर्ष २००९ में हमने फेसबुक पर अभिव्यक्ति का
एक पृष्ठ
यहाँ बनाया था। इस पर नवीनतम अंकों की जानकारी तथा अन्य सूचनाएँ (जो
हम अभिव्यक्ति में देते हैं) प्रकाशित होती रहती हैं। जिन पाठकों को
फ़ेसबुक पसंद है वे इसके प्रशंसक बन सकते हैं और इसको अपनी पसंद सूची
में शामिल कर सकते हैं। नया साल मंगलमय हो, भारतीय साहित्य, संस्कृति,
और भाषा के नव प्रयत्न सार्थक हों, तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्र में
हमारी भाषा समर्थ बने और सफल हो इसी मंगल कामना के साथ
पूर्णिमा वर्मन
६ जनवरी २०१४
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