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१०. १. २०११

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
उमाशंकर तिवारी, नीरज गोस्वामी, अशोक भाटिया, शेखर सेन और रामाज्ञाराय शशिधर की रचनाएँ।

- घर परिवार में

सप्ताह का व्यंजन- मारिशस की सुप्रसिद्ध पाक विशेषज्ञ मधु गजाधर की स्वास्थ्यवर्धक रसोई से- अंकुरित दाल के शोरबेदार कोफ्ते

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से- नवजात शिशु का दूसरा सप्ताह

स्वास्थ्य सुझाव- भारत में आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग में शोधरत अलका मिश्रा के औषधालय से- सरसों का तेल केवल पाँच दिन

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- १ जनवरी से १५ जनवरी २०११ का भविष्य फल।

- रचना और मनोरंजन में

कंप्यूटर की कक्षा में- टॉप लेवल डोमेन- किसी जालस्थल के नाम का वह अंतिम भाग है, जो किसी नामांकन संस्था के अधिकार में होता है...

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला १३ के लिये विषय की घोषणा हो चुकी है। इस बार का विषय है- "सड़क पर"... आगे पढ़ें...

वर्ग पहेली- ०११
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

शुक्रवार चौपाल- इस बार साहित्य सत्र में मोहन राकेश की कहानी पढ़ी गई - मिस पाल। स्वरचित रचनाओं का पाठ हुआ और... आगे पढ़ें

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य और संस्कृति में-

1
समकालीन कहानियों में भारत से
सुधा अरोड़ा की कहानी पीले पत्ते

टक्......टक्.......और एक पीला पत्ता टूटा। फिर एक और। फिर एक और।
जनवरी महीने की उस सुबह में उगते सूरज की लाली थी। हरे भरे दरख्तों और अपने कद के हरे पौधों के बीच उनकी उँगलियाँ बड़े एहतियात से सूखे हुए पीले पत्ते ढूँढ लेतीं और उन पत्तों को बड़े प्यार से समेट कर अपने बाएँ हाथ में फँसी थैली में डाल देतीं। पिछले एक साल से मैं उन्हें लगभग रोज देख रही थी। सफेद स्याह रंग के बेतरतीब से बिखरे बालों के बीच लुनाई लिए चेहरे पर खोयी खोयी सी आँखें जैसे ढूँढ कुछ और रही हों और अचानक पीले पत्तों पर अटक गई हों। उन्हें जरा सा ठिठक कर मैं देखती, मुस्कुराती और आगे बढ़ लेती। बगीचे के गेट पर खड़ा वाचमैन अपनी कनपटी पर दाहिनी हथेली की तर्जनी गोल गोल घुमाकर अजीब तरह से होंठों को सिकोड़ता हुआ मुझे इशारे से बताना चाहता कि बुढ़िया का दिमाग खराब है, उनके लिए रुककर अपना समय बर्बाद न करें। पूरी कहानी पढ़ें...

*

आकुल की लघुकथा-
एक करोड़ का सवाल
*

साल भर के भारतीय पर्वों की
जानकारी के लिये- पर्व पंचांग

*

प्रौद्योगिकी में रश्मि आशीष से जानें
खोज युक्तियों का प्रयोग

*

पुनर्पाठ में प्रकृति एवं पर्यावरण के अंतर्गत
एन.डी तिवारी का आलेख- चिर सखा है बाँस

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पिछले सप्ताह-

1
हास्य व्यंग्य में शरद तैलंग की रचना
शुभकामनाएँ नए साल की

*

सुभाष राय का ललित निबंध
अनंत काल में एक वर्ष का अर्थ

*

डॉ. हरिकृष्ण देवसरे और डॉ. मनोहर भंडारी
के शब्दों में कैलेंडर शब्द की उत्पत्ति

*

पिछले वर्षों के नववर्ष विशेषांकों का संग्रह
नववर्ष विशेषांक समग्र

*

समकालीन कहानियों में भारत से
शुभदा मिश्रा की कहानी नव वर्ष शुभ हो

फोन करने जाना था बेटा... परेशानी में डूबे बाबू जी तीसरी बार कह चुके थे। नीलू स्वयं बहुत परेशानी में पड़ गई थी। फोन तो रखा था बगल के कमरे में। दरवाजा खोलो तो रखा है फोन। लेकिन दरवाजा थोड़े ही खोला जा सकता है। दरवाजा तो उस तरफ से बंद है। और उस तरफ है आफिस। एक बहुराष्ट्रीय कंपनी का जोनल आफिस। सारे दिन काम चलता रहता है वहाँ। बैठा रहता है वहाँ सारे दिन नया मैनेजर। नो नानसेंस टाइप का कड़ियल आदमी। सारे दिन इस नए बास की सधी हुई फरमाबदार आवाज गूँजती रहती है आफिस में। आफिस के बाद वाले कमरे में ही तो रहते हैं नीलू लोग। सारे दिन आफिस की एक एक बात सुनाई पड़ती है नीलू लोगों को। जरूर नीलू लोगों की बातें भी उधर सुनाई देती होंगी ही। यह आफिस देखकर ही बिदके थे नीलू और नितिन। जब यह मकान देखने आए थे। पूरी कहानी पढ़ें...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

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