इस
सप्ताह
समकालीन कहानी के अंतर्गत
भारत से पवन कुमार की कहानी
वह एक शाम
यही
दिन था न वो, तेरे चकित कर देने वाले निमंत्रण का। मेरी याददाश्त चाहे कितनी भी कमज़ोर हो जाए मगर
मैं वह दिन नहीं भूलूँगी, कभी नहीं। उससे पहली वाली रात को,
देर रात को जब तेरा फ़ोन आया तो मैं चौंक गई थी, किसी अनिष्ट
की आशंका से आशंकित। और जब तूने कहा, 'क्या कल मेरे साथ डिनर
पर चल सकती हो?' तो मैं सोच में पड़ गई थी। फिर साथ में तुमने
ये भी जोड़ा था, 'सिर्फ़ हम दोनों।'
मुझे 'हाँ' तो कहना ही था पर मैंने सोचने के लिए काफ़ी समय ले
लिया। और अगले दिन,
यानि बारह मार्च दो हज़ार सात। मैं सुबह से ही रोमांचित थी,
इसी कारण से रात को ठीक से सो भी नहीं पाई थी। मुझमें बदलाव देखकर
नौकरानी भी अचंभे में थी कि मुझे आखिर हुआ क्या था।
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सप्ताह का विचार
भोग में रोग का, उच्च-कुल में पतन
का, धन में राजा का, मान में अपमान का, बल में शत्रु का, रूप में
बुढ़ापे का और शास्त्र में विवाद का डर है। भय रहित तो केवल
वैराग्य ही है। -भगवान महावीर |
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राजेंद्र त्यागी का व्यंग्य
इंसान के दुश्मन वैज्ञानिक
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नाटक चर्चा में अजित राय का आलेख
मंच पर कहानी की उपस्थिति
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क्या
आप जानते हैं?
नीदरलैंड के लोग दुनिया में सबसे ऊँचे होते हैं। यहाँ पुरुषों
की औसत ऊँचाई पाँच फ़ुट साढ़े ग्यारह इंच है, लेकिन
दक्षिणी नीदरलैंड में यह औसत एक इंच कम है।
--अमित
प्रभाकर |
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बेजी जयसन का
संस्मरण
बाबूजी
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स्वास्थ्य की पड़ताल में
पिज़ा की पौष्टिकता
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अनुभूति में-
श्याम सुंदर दुबे,
राजेंद्र पासवान घायल,
धूमिल,
रश्मि बड़थ्वाल और
डॉ. कृष्ण कन्हैया की रचनाएँ |
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कलम
गही नहिं हाथ
"रोटी तो रोटी है
चाहे चपाती कहो या फुलका क्या फ़र्क पढ़ता है?" लेकिन मेरे इस विचार
से हरिराम जी सहमत नहीं थे। वे हमारे नए खानसामा थे। उनका कहना था, कम से कम
रोज़ खाई जाने वाली चीज़ों के बारे में
सबको सही जानकारी होनी चाहिए। पहली बार उनसे जाना कि चपाती और फुलके
में अंतर है। चपाती होती है ढीले आटे की। बेलते समय ध्यान रखा
जाता है कि रोटी सिर्फ़ एक ही तरफ़ से बेली जाए,
ताकि फूलने के बाद इसकी एक परत बिलकुल बारीक हो जैसे छिक्कल फिर आग पर
बस एक पल रखा जाय फूलने तक। इस रोटी को चबाने की ज़रूरत नहीं। मुँह में
रखेंगे तो ऐसे ही घुल जाएगी। फुलका चूल्हे से खाने वाले की थाली में
पहुँचने तक फूला ही रहना चाहिए। इसका आटा माड़ते हैं कड़क और
बेलते हैं दोनों तरफ़ से, ताकि फूलने बाद दोनों परतों की
मोटाई बराबर रहे। फिर आग पर पलट-पलट कर दोनों तरफ़ अच्छी तरह चित्तियाँ
डालते हैं जिससे हल्का कुरकुरापन आता है। है ना ज्ञान की बात? तो
क्या ज्ञान प्राप्त होने के बाद इस बात से कुछ अंतर पड़ता है कि आज
घर में चपातियाँ बन रही हैं या फुलके?
-पूर्णिमा वर्मन (टीम अभिव्यक्ति)
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