गुरमीत एकाएक ठहाका लगाकर
हँसा। घर के सभी सदस्य चौंक पड़े। गुरमीत तो लगभग दो वर्ष से
दु:ख के उस गहरे समुद्र में डूब चुका था, जहाँ से उसे खींचकर
निकाल पाना शायद कठिन ही नहीं असंभव-सा भी लग रहा था। फिर वही
गुरमीत, एकाएक बच्चों की-सी प्रसन्नता के साथ हँसने और नाचने
लगा था।
'कर दी सालों की ढिबरी टाइट, खा गया सालों को, उनकी तो
माँ...!'
सभी अवाक गुरमीत को देखे जा
रहे थे। 'कहीं इतने दिनों की चुप्पी से पागल तो नहीं हो गया?'
पर अभी-अभी तो ठीक-ठाक था। हाँ, शायद आजकल गुरमीत का चुप रहना
ही ठीक लगता है। वो पुराना ज़िंदादिल गुरमीत तो न जाने कहाँ खो
गया है। आज जैसे उस पुराने गुरमीत की राख में से ही तो, गुरमीत
की हँसी निकल कर आई है। यह गुरमीत है या कोई फ़िनिक्स?
घर के सभी लोग टेलीविजन के
सामने बैठे थे। वही परिचित-सी राष्ट्रीय कार्यक्रम की धुन बजी
थी और फिर समाचार की। तब तक तो गुरमीत के चेहरे पर चुप्पी
मनहूसियत की तरह चिपकी हुई थी। फिर समाचार वाचक ने समाचार
पढ़ा, 'आज ईराकी फ़ौज ने अचानक कुवैत पर हमला कर के उसे अपने
कब्ज़े में ले लिया है' और उससे आगे का समाचार न तो गुरमीत को
सुनना था और ना ही घर का कोई अन्य सदस्य सुन पाया।
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