उस पहली जनवरी को जितनी ज़ोरदार
बर्फ़ गिरी थी, कोई सौ बरस से वैसी बर्फ़ उस इलाके में न गिरी
होगी। यों समाचारों में था कि बर्फ़ीला तूफ़ान आएगा। पर तूफ़ान
की सूरत इस क़दर हैरतनाक होगी, इसका अंदाज़ किसी को न था।
इसीसे जब हवन का न्यौता मिला तो किसी ने यह सवाल भी नहीं उठाया
कि कार्यक्रम में कुछ बदलाव किया जाए। यों भी आजकल बर्फ़ तो आए
रोज़ गिरती ही थी। आख़िर सर्दी का मौसम था।
सुबह जब सब अपने घर से चले तो
आसमान भरा-भरा-सा तो था, लगता था कि कुछ होगा। पर इस तरह के
भयंकर हालात का अंदेशा सचमुच किसी को न हुआ था। अब तो बाहर यह
हाल था कि तेज़ सरसराती हवाएँ और बर्फ़ की दनादन बारिश रुकने
का नाम ही नहीं ले रही थी। चारों ओर सफ़ेदी के अलावा कोई रंग
ही नहीं रह गया था। सड़कें, मकान, पेड़-पौधे, धरती का हर
हिस्सा बर्फ़ से पुता था। सारे माहौल में तूफ़ानी भयावनापन था
तो श्वेतता की सात्विकता उस डरावनेपन में एक निराला-सा सौंदर्य
घोले दे रही थी।
गुड्डो ने हमेशा की तरह इस
पहली जनवरी को भी अपने घर पर हवन किया था। सारा परिवार इकठ्ठा
हुआ था। घर की खुली-सी बैठक में हवन का इंतज़ाम था। यह
अपार्टमेंट की बैठक नहीं थी। शहर से कुछ दूर हरियाले-से हिस्से
में घर लिया था।
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