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                     मास्टर जी 
                    गहरी चिंता में डूब गए - देश क्या इन्हीं शोहदों, उचक्कों और 
                    नालायकों के बूते चलेगा? क्या ऐसे ही छंटे हुए लोग जनतंत्र के 
                    प्रहरी बनेंगे? बहुत चिंतन-मनन के बाद उन्होंने तय किया कि 
                    डाकू रह चुका उम्मीदवार मोरन सिंह ही इन चारों में थोड़ा अच्छा 
                    है। पढ़ा-लिखा है...परिस्थितियों ने उसे डाकू बना दिया होगा। 
                    लेकिन अब लगता है उसका हृदय परिवर्तित हो चुका है। हो सकता है 
                    व्यक्ति और समाज की मौजूदा चुनौतियों और भावनाओं को समझकर वह 
                    अच्छा काम कर जाए। इस तरह एक कठोर विश्लेषण के 
                    आधार पर उन्होंने एक निष्पक्ष नतीजा निकाला और उससे अपने 
                    परिवार और गाँववालों को अवगत कराते हुए कहा कि हमें वोट देना 
                    है तो मोरन सिंह को ही देना है। उनका कहा सबको एक मज़ाक जैसा 
                    लगा...लगता है मास्टर सनक गया है और बेकार की बातों में 
                    माथा-पच्ची करने लगा है। इसके पूर्व तो वह इन चक्करों में नहीं 
                    पड़ा करता था। गाँववाले तो मास्टर के रवैए 
                    से चुटकी लेने के मूड में ही थे, घरवाले भी परेशान थे कि आखिर 
                    इन्हें हो क्या गया? मास्टर जी अपनी स्थापना रखते तो उन्हें 
                    चुप कराते हुए वे अपनी राय देने लगते कि हमें वोट देना है तो 
                    सिर्फ़ हरप्रताप को देना है। वे जान-पहचान के हैं...उनसे अपना 
                    कुछ काम भी निकाला जा सकता है। मास्टर जी उद्विग्न हो 
                    उठते...कैसे समझायें इन्हें? अरे बददिमाग, तुम तो अपना काम 
                    निकाल लोगे लेकिन देश और समाज का क्या होगा, ऐसे नकारा आदमी से 
                    उनका तो कुछ भी भला नहीं हो सकता। मास्टर जी ने इस विषय पर 
                    लगातार तकरार होते रहने से कई दिनों तक घर में खाना नहीं खाया। 
                    उन्हें लगने लगा था कि वे एकदम अकेले हो गए हैं। पत्नी और 
                    बच्चे तक उसके साथ नहीं हैं। उन्होंने फिर भी अपने बूते भर 
                    लोगों को समझाने का प्रयास जारी रखा कि वे सिर्फ़ और सिर्फ़ 
                    वोट मोरन सिंह को ही दें...इसी में हम सबका भला है। हरप्रताप 
                    जब यहाँ चुनाव प्रचार करने आया तो उसने मास्टर और उनकी पत्नी 
                    से विशेष तौर पर मुलाकात की। अपना पूरा अनुनय-विनय उनके सामने 
                    बिछा दिया कि वह उनका रिश्तेदार है तो उनके वोट पर तो उसका हक 
                    है ही, उनके वोट भी उसके खाते में आने चाहिए जो उनके पड़ोसी और 
                    गाँववाले परिचय और संपर्क के दायरे में हैं। अंदर ही अंदर चिढ़ 
                    रहे मास्टर तो एक करारा जवाब उसके मुँह पर ही दे मारना चाहते 
                    थे, ''हाँ हाँ क्यों नहीं, पाँच खून और सैकड़ों बलात्कार का 
                    अपूर्व अनुभव है तुम्हारे पास तो भला वोट और किसे दिया जा सकता 
                    है!'' लेकिन सबका लगाव देखकर मन मसोसकर रह गए। हरप्रताप ने 
                    पूरे गाँव-जवार में घूम-घूम कर इस रिश्ते को खूब भंजाया। जीजा 
                    और जीजी संबोधन को सरेआम करके उसने अपने पक्ष में मानो एक 
                    हवा-सी बना दी।जिस रोज़ मतदान था, मास्टर जी को ठीक से नींद नहीं आई। एक 
                    उत्सुकता और कौतूहल ठक-ठक करके उनके दिमाग़ में बजता रहा। वे 
                    बहुत तड़के ही नहा-धोकर तैयार हो गए। ज्योंही आठ बजा अपने साथी 
                    मुखिया, वकील, प्रोफेसर आदि की तलब करने लगे कि साथ ही चलकर 
                    मतदान कर आएँगे। पता चला कोई अपने घर में नहीं हैं...सभी 
                    अपने-अपने धंधे में मसरुफ़ हो गए हैं। मास्टर जी को बहुत 
                    झल्लाहट हुई...आज के दिन भी अति जागरूक माने जानेवाले ए लोग एक 
                    महत्त्वपूर्ण एवं बहुमूल्य अधिकार के उपयोग के लिए ज़रा-सा 
                    चिंतित नहीं हैं। जाएँ भाड़ में मूर्खाधिराज सब, वे अकेले ही 
                    जाकर इस राष्ट्रीय दायित्व का निर्वाह कर आएँगे। वे शनै: शनै: 
                    मतदान केन्द्र की ओर बढ़ गए।
 केन्द्र पर पहुँचे तो काफी 
                    चहल-पहल नज़र आई। गाँव के कुछ छंटे हुए शोहदे किस्म के लड़के 
                    बहुत सक्रिय नज़र आए। मास्टर साहब को वे ज़रा घूरते और नापते 
                    हुए से दिखे। मास्टर साहब ने इनकी बिना परवाह किए अपना गंतव्य 
                    ढूँढ़ लिया। अपनी क्रम संख्या और भाग संख्या की जानकारी 
                    उन्होंने पहले ही जुटा ली थी। मतदान अधिकारी ने उनकी पर्ची 
                    देखकर वोटर लिस्ट में उनका नाम ढूँढ़ा तो वहाँ पहले से ही टिक 
                    का निशान लगा हुआ था। उसने उनका मुँह देखा और तरस खाने तथा 
                    कोसने के मिले जुले भाव लाकर बताने लगा कि आपका वोट पोल हो 
                    चुका है। वे सन्न रह गए...ऐसा कैसे हो सकता है...एक नागरिक के 
                    सबसे बड़े अधिकार के साथ ऐसा क्रूर मज़ाक करने की छूट किसी को 
                    मिल कैसे जाती है? यह तो सरासर अपमान है किसी के अस्तित्व का। 
                    गुस्से से तलफलाकर वे मतदान अधिकारी का मुँह नोच लेना चाहते 
                    थे, तभी उनकी अकिंचन और ठिसुयायी हालत देखकर लाइन से बैठे 
                    पार्टी के एजेंट बने छोकरे खिलखिलाकर हँस पड़े। इनमें अधिकांश 
                    उन्हीं के विद्यालय के पूर्व विद्यार्थी थे। बेहद लुटी-पिटी सी 
                    मुद्रा लेकर वे केन्द्र से बाहर निकल गए। उन्हें लगा कि हर 
                    आदमी उन्हें ही घूरकर उनकी इस स्थिति का मज़ा ले रहा है। कोई 
                    उन्हें अगर टोक देता तो वे शर्तिया फूट-फूट कर रो पड़ते। घर आकर वे बिस्तर पर निढाल 
                    पसर गए। कुछ ही देर में उन्हें तेज़ बुखार हो आया। पत्नी उनकी 
                    स्थिति से अवगत होकर उन्हें समझाने लगी, ''इस तरह दुनिया-जहान 
                    के मुद्दे पर आप बीमार और दुबले होने लगेंगे तो जीना दुश्वार 
                    हो जाएगा। आपने अपना फर्ज़ निभाया, व्यवस्था ने साथ नहीं दिया 
                    तो जाएँ जहन्नुम में।'' मास्टर जी ने मन ही मन तय किया कि अब वे कक्षा में नागरिक 
                    शास्त्र नहीं पढ़ायेंगे, विशेषकर नागरिक मताधिकार तो बिल्कुल 
                    ही नहीं।
 मतदान के तीसरे दिन सर्वत्र परिणाम की बेसब्री से प्रतीक्षा 
                    होने लगी। मास्टर जी का ध्यान भी उधर ही टँगा हुआ था। उन्हें 
                    अपने फैसले के सच होने का अब भी बहुत भरोसा था। अपनी पत्नी से 
                    उन्होंने कहा, ''ज़्यादातर मामलों में सत्य और शिव की ही जीत 
                    होती आई है...चूँकि आज भी दुनिया में सत्य-बल है, तभी यह धरती 
                    टिकी है। मुझे उम्मीद है, मोरन सिंह ज़रूर जीतेगा।''
 मास्टरनी सहमत नहीं थी, फिर 
                    भी उनकी अधीरता का खयाल करके दबे स्वर में कहा, ''अब तो कुछ ही 
                    मिनट-घंटे की बात है। हालाँकि सबके सब हरप्रताप भाई का ही नाम 
                    ले रहे हैं।''मास्टर जी ने उसके तात्पर्य को टटोलते हुए ज़रा थाहने की मंशा 
                    से पूछ लिया, ''राजदेव की माँ ! एक बात पूछूँ, कसम लो कि सच-सच 
                    बोलोगी, तुमने वोट हरप्रताप को ही दिया है न?''
 वह बुरी तरह सकपका गई...एक मोटा असमंजस उतर आया चेहरे पर। कहा, 
                    ''कसम न देते तो सच की भनक तक मैं लगने न देती। हरप्रताप को 
                    वोट न देती तो क्या उस मुए मोरन सिंह को देती, जिसकी सूरत तक 
                    मैंने नहीं देखी। मुझे माफ़ कर दीजिए कि बहुत चाहकर भी मैंने 
                    आपका कहा नहीं माना।''
 मास्टर एकदम रूआँसा हो गए और उनकी आवाज़ भर्रा गई, ''धर्मपत्नी 
                    हो...अर्द्धांगिनी हो...यही है तुमसे मेरा रिश्ता कि मैं इतना 
                    कुछ झेल गया और उसका तुम पर रत्ती भर असर नहीं हुआ। ठीक कहा है 
                    किसी ने कि दुनिया के सब रिश्ते-नाते झूठे हैं...कोई किसी का 
                    कुछ नहीं लगता...।''
 मास्टर जी का दुख किसी पके 
                    घाव की तरह रिस रहा था तभी घर के बाहर की गली से हरप्रताप के 
                    नाम से जिंदाबाद के नारे सुनाई पड़ने लगे। आवाज इतने पास से और 
                    इतनी तीव्रता से आ रही थी जैसे मास्टर जीको जान-बूझकर सुनाया-चिढ़ाया 
                    जा रहा हो। उनका चेहरा बुझ गया और आवाज़ गहरी उदासियों में डूब 
                    गई, ''हे भगवान! अब तो इस मुल्क का तुम्हीं माई-बाप हो। लो, 
                    जीत गए तुम्हारे आदरणीय और कर्मठ भाई। देख क्या रही 
                    हो...दौड़ो...जाओ, खुशियाँ मनाओ...नारे लगाओ...उन्हें बधाई दो। 
                    मेरा मुँह चिढ़ाओ...मुझ पर हँसो...थूको...ताने मारो।'' उनकी आँखों में आँसू छलछला 
                    आए। मास्टरनी को उनकी कातरता ने एक अपराध बोध से भर दिया। इसी 
                    बीच पास के बरामदे से समग्र संवादों को आत्मसात कर रहे उनके 
                    बेटे राजदेव ने आकर हस्तक्षेप किया, ''पिता जी, आपने मुझे 
                    क्यों नहीं पूछा कि मैंने वोट किसे दिया?''''अब भी पूछने की क्या कोई ज़रूरत है? तुम्हारे सुर तो हमेशा 
                    माँ के साथ ही मिलते हैं। तुम लोगों के लिए अपना स्वार्थ के 
                    आगे कुछ भी महत्त्व का नहीं है। मताधिकार तो महज़ ख़रीद-फरोख्त 
                    होनेवाली एक मामूली-सी औपचारिकता है। देश के बनने-बिगड़ने से 
                    इसका कोई लेना-देना नहीं। क्रिकेट की तरह का यह एक बस खेल है, 
                    जिसे चुनावी मौसम में खेलने लगते हैं तमाम धंधेबाज, तमाम 
                    जुआरी, तमाम खिलाड़ी, तमाम बाहुबली, तमाम निठल्ले लोग...।''
 ''पिता जी, आप यकीन मानिए...भगवान साक्षी है...मैंने अपना वोट 
                    मोरन सिंह को दिया है, आपके आकलन पर मैंने अपनी सहमति की मुहर 
                    लगायी है और हरप्रताप मामा को वोट मैंने नहीं दिया।''
 ''क्या?'' मास्टर जी के चेहरे 
                    पर जैसे हजार वाट का बल्ब जल उठा। वे इतने खुश हो गए गोया उनकी 
                    बहुत बड़ी मुराद पूरी हो गई। उन्होंने लपककर राजदेव को अपने 
                    सीने से लगा लिया। आह्लादित होकर कहने लगे, ''तूने मुझे टूटने 
                    से बचा लिया बेटे...मेरे विश्वास की तूने रक्षा कर ली। सच 
                    मानो, अब मेरा दुख बहुत कम हो गया है। कोई तो है जिसने मेरी 
                    खब्त को समझने की कोशिश की। अब मैं यह मान सकता हूँ कि मेरी 
                    कोशिश बेकार नहीं गई...मेरी चिंता को एक वारिस मिल गया है 
                    जिसके मेरे बाद भी कायम रहने की उम्मीद है। देखो राजदेव की 
                    माँ, अगर न्याय हो तो तुम्हारा हरप्रताप इस घर से ही पराजित हो 
                    रहा है और मोरन सिंह विजयी हो रहा है। उसके पक्ष में तुम्हारा 
                    अकेला वोट और मोरन सिंह के पक्ष में दो वोट।''मास्टर के चेहरे पर खुशी का एक ज्वार उमड़ आया। उनके उमगते कंठ 
                    से निकल पड़ा, ''मोरन सिंह...।''
 राजदेव कह उठा, ''ज़िंदाबाद...।''
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