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                    मास्टर रामरूप शरण बड़े ही 
                    उद्विग्न अवस्था में स्कूल से घर लौटे। छात्रों को नागरिक 
                    मताधिकार पढ़ाते-पढ़ाते आज उन्हें अचानक एक गंभीर चिंता से 
                    वास्ता पड़ गया। वे अन्यमनस्क हो उठे। घर आते ही उन्होंने अपने 
                    बड़े लड़के राजदेव को बुलाया और हड़बड़ाते हुए से कहा, ''जल्दी 
                    से जाकर मुखियाजी, प्रोफेसर साहब, वकील साहब, इंद्रनाथ सिंह और 
                    बृजकिशोर पांडेय को बुलाकर ले आओ। कहना कि मैं तुरंत बुला रहा 
                    हूँ....एक बहुत जरूरी काम आ गया है।'' 
                    राजदेव चला गया। मास्टर साहब 
                    अनमने से दालान की ओर जाने लगे तो पत्नी को उनकी चिंतित मुद्रा 
                    देखकर जिज्ञासा हो उठी, ''क्यों जी, क्या हुआ? आप इतना परेशान 
                    क्यों हैं? चाय-वाय भी नहीं पी और तुरंत बुलावा भेज दिया?'' ''तुम नहीं समझोगी, ज़रा चाय 
                    बनाकर रखो, वे लोग आ रहे हैं।'' पत्नी चिढ़ गई, ''हाँ, आपकी 
                    तो कोई बात मेरे समझने के लायक होती ही नहीं।''''ओ...बहुत समझती हो तो लो 
                    समझो - उनसे नागरिक मताधिकार के सही एवं सटीक उपयोग के बारे 
                    में विमर्श करना है...समझीं?'' रामरूप जी ने खीजकर कहा।
 ''हाँ समझी...और संसकिरित में बोलिए तो खूब समझूँगी। जाइए, मैं 
                    चाय बनाती हूँ।''
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