दीर्घायु प्रदान करने वाले पौष्टिक-भोजन
जिन्हें नित्य खाना चाहिये(संकलित)
३- घी, तेल
और मक्खन
घी, तेल और
मक्खन हमारे भोजन के प्रमुख अंग हैं। इससे न सिर्फ रोग दूर
होते हैं, बल्कि हमारी त्वचा भी मुलायम और स्वस्थ रहती है।
शरीर के जोड़ों संचालन, उनके दर्द, मांसपेशियों के दर्द,
रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी इनका महत्वपूर्ण सहयोग होता
है। इनको खाने और शरीरे में लगाने दोनो प्रकार से उपयोग
में लाया जाता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि एक वयस्क को जिसकी आयु ४० वर्ष
से कम है, प्रतिदिन १५ से २० मिली लीटर तेल का प्रयोग करना
चाहिये जो लगभग ३-४ चाय के चम्मच के बराबर है, जबकि ४०
वर्ष से अधिक आयु के लोगों को प्रतिदिन अधिकतम २० से २५
एमएल तेल प्रयोग करना चाहिए। इसमें छौंक, अचार से लेकर
किसी भी रूप में खाया जानेवाला तेल शामिल है। ४० वर्ष की
आयु के बाद मानव शरीर में नमी की कमी और सूखापन देखने को
मिलता है। अगर किसी स्वास्थ्य के कारण से घी तेल कम खाने
की सलाह दी जाती है तो आवश्यकतानुसार त्वचा और जोड़ों पर
तेल की मालिश भी की जा सकती है। यह तेल भोजन में शामिल
नहीं होता है।
शुद्ध सरसों, मूँगफली, तिल या नारियल का तेल भारत के उन
सभी प्रांतों के लिये सर्वोत्तम है जहाँ इन्हें सामान्य
रूप से खाया जाता है। सरसों के तेल में मौजूद विटामिन जैसे
थियामाइन, फोलेट व नियासिन शरीर के मेटाबाल्जिम को बढ़ाते
हैं जिससे वजन घटाने में मदद मिलती है। सरसों में पर्याप्त
मात्रा में मैग्नीशियम पाया जाता है, जो दमे के मरीजों के
लिए विशेष रूप से लाभदायक है। सर्दी हो जाने पर भी इसका
प्रयोग किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त जैतून का तेल भी
आजकल बाजार में है जिसमें हृदय-स्वस्थ मोनोअनसैचुरेटेड वसा
की भारी उपस्थिति और पॉलीफेनोल्स नामक शक्तिशाली
एंटीऑक्सिडेंट होता है जो अल्जाइमर रोग की शुरुआत और
प्रगति को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
तेल या घी कोई भी हो इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिये कि
वह धुआँ निकलने तक न पकाया जाय। इस बिंदु तक पहुँच जाने पर
उसके पौष्टिक गुण नष्ट हो जाते हैं। यही कारण है कि भारतीय
भोजन में सलाद में कच्चा तेल और रोटी पर बिना पका घी लगाकर
खाने की परंपरा है। कुल मिलाकर यह कि पका हुआ घी या तेल कम
से कम खाना चाहिये पर एक चम्मच कच्चा तेल या घी भोजन में
शामिल करना अधिक लाभ पहुँचा सकता है। इसे दैनिक भोजन मे
अवश्य शामिल किया जाना चाहिये।
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