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लेखकों से
१. ६. २०२०

इस माह-

अनुभूति में-
कोरोना समय में राजनीतिक आर्थिक सामाजिक संवेदनाओं को समेटे विभिन्न रचनाकारों की अनेक रचनाएँ।

-- घर परिवार में

रसोईघर में- इस लॉक-डाउन में मिठाइयों को तरसते मन के लिये हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं- आम की चुस्की।

स्वास्थ्य के अंतर्गत- दिल की आवाज सुनो- बारह उपाय जो रखें आपके दिल की सेहत को दुरुस्त- ६- फाइबर से दोस्ती।

बागबानी- आयुर्वेद की दृष्टि से उपयोगी बारह पौधे जो हर घर में उगाए जा सकते हैं। इस अंक में प्रस्तुत है- ६- घृतकुमारी का पौधा

बचपन की आहट- शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से- नवजात शिशु- इक्कीस से चौबीस सप्ताह तक

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- इस माह (जून) की विभिन्न तिथियों में) कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...विस्तार से

संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है- शिव कुमार अर्चन की  कलम  से  सीमा  हरि  शर्मा  के  नवगीत संग्रह- गीत अँजुरी का परिचय। 

वर्ग पहेली- ३२६
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति के अंतर्गत- लॉकडाउन में-

वतन से दूर में आस्ट्रेलिया से
रेखा राजवंशी की कहानी- अनन्त यात्रा

अपने जीवन के नब्बे सालों में जितेंद्र नाथ जी ने सोचा भी नहीं था कि कभी ऐसा दिन भी आएगा। इससे पहले भी अपने इकलौते बेटे के पास कई बार सिडनी आ चुके थे। जब भी वे पहुँचते तो बेटा-बहू बड़े उत्साह से उन्हें लेने एयरपोर्ट आते। घर पहुँचने पर उनके आराम का पूरा ख्याल रखा जाता। पोता-पोती दोनों दादू-दादू करते आगे पीछे घूमते रहते। सिडनी में बेटे के घर में सारी सुख सुविधाएँ थीं। घर में क्लीनर आता, गार्डनर आता, कुक भी आती थी, पर उनकी रोटियाँ उनकी मॉडर्न बहू ही बनाती थी। तीन महीने में वे बेटे के परिवार के साथ रहने की सारी हसरत पूरी कर लेते थे । बेटा कभी-कभी व्हील चेयर में बिठा शॉपिंग मॉल ले जाता, जहाँ वे अपने पसंद के सब्ज़ी, फल खरीद लेते। फिर कॉफी शॉप में बैठ कॉफी और मफिन भी खा लेते। इस तरह से उनका मन भी बहल जाता। कभी पोती ज़िद करके उन्हें बीच पर आइसक्रीम खिलाने ले जाती, कभी पोता उन्हें ड्राइव पर ले जाता। बहू-बेटे उन्हें नई से नई फिल्में दिखा लाते थे। इस बार भी समय बहुत अच्छा बीत रहा था, हँसी खुशी में वक्त कट रहा था। आगे...
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मंजुल भटनागर की
लघुकथा- तथास्तु
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सामयिकी में-
जैव आतंकवाद की वैश्विक चुनौती
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संजय खाती का आलेख
खेल कोरोना का
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पुनर्पाठ में डॉ. गुरुदयाल प्रदीप से
विज्ञान वार्ता- जैविक और रासायनिक हथियार

सुषम बेदी की स्मृति में---

विगत १९ मार्च अभिव्यक्ति के साथ सहयोग करने वाले सबसे पहले रचनाकारों में से एक सुषम बेदी हमारे बीच नहीं रहीं। उनकी सहयोगी सविता बाला नायक के एक अंतरंग संस्मरण के साथ हमारी भावभीवी श्रद्धांजलि- बहुमुखी प्रतिभा की धनी- सुषम बेदी

त्रिलोचना की लघुकथा
मन्नत के धागे
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प्रकृति और पर्यावरण में
जानकारी- पेड़ बबूल का
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रामदरश मिश्र की कलम से
ललित निबंध- बबूल और कैक्टस
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पूर्णिमा वर्मन का आलेख
डाकटिककटों पर बबूल के चित्र

साहित्य संगम में लोचन बख्शी की पंजाबी कहानी का-रूपांतर-धूल-तेरे-चरणों-की-रूपांतरकार-हैं-महीप-सिंह

मिले ताँ मस्तक लाइए, धूल तेरे चरणाँ दी।' साधु-संगत पढ़ रही थी और पाकिस्तान-स्पेशल यात्रियों के इस जत्थे को लिए हुए छकाछक उड़ी जा रही थी। बाहर दूर तक रेगिस्तान फैला हुआ था। कभी-कभी बाजरे के खेत दिखाई दे जाते या फिर कहीं-कहीं पीले फूलों से लदे हुए बबूल के काँटेदार पेड़ दीख पड़ते। इनसे हटकर सारा दृश्य हरियाली से शून्य, वीरान और सुनसान था। पालासिंह खिड़की के बाहर देख रहा था। उसकी खुली हुई दाढ़ी धूल से अटी हुई थी। रेतीले मैदान से एक बगूला उठा और हवा के कन्धों पर सवार गाड़ी के अन्दर आ गया... आगे...

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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