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डाक टिकटों पर बबूल
के चित्र
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पूर्णिमा वर्मन
भारतीय उप
महाद्वीप से लेकर अफ्रीका तक के विस्तृत भूभाग में
अपनी उपस्थिति दर्ज करने वाले बबूल के वृक्ष को अनेक देशों के डाक
टिकटों पर महत्वपूर्ण स्थान मिला है। भिन्न-भिन्न देशों में
बबूल की प्रजातियों के अलग-अलग नाम है। भारतीय बबूल का वानस्पतिक
नाम वचेलिया नीलोटिका या एकेशिया नीलोटिका है। बबूल की कुछ
प्रजातियों को
एकेशिया टोरटिलिस नाम भी दिया गया है। इसकी अनेक उप प्रजातियाँ भी
हैं।
दक्षिण अफ्रीका के पूर्वी किनारे
पर इस्वातिनी नाम का एक देश है जिसे स्वाजीलैंड के नाम से जाना
जाता है। २३ जनवरी २००७ को स्वाजीलैड पोस्ट एंड
टेलीकौम्युनिकेशन विभाग ने देशज वृक्षों आधारित १३ टिकटों के एक सेट
का प्रकाशन किया था। इसमें बबूल को भी स्थान मिला था। (चित्र
सबसे ऊपर)
अटलांटिक महासागर मे अफ्रीका के पश्चिमी तट से दूर
मैकरोनेशिया पारिस्थितिक क्षेत्र में अनेक द्वीपों से मिलकर
बना एक देश है
जिसे केप वर्दे कहते हैं। पंद्रहवी शताब्दी से पहले यह निर्जन
द्वीप था। पंद्रहवी शताब्दी में पुर्तगालियों ने इसकी खोज की
और यहाँ पुर्तगाली बस्तियाँ बसाईं। १९७५ में यह देश स्वतंत्र
हो गया और विकासशील देशों में इसकी गिनती होने लगी। २५ जनवरी
२००४ को इस देश ने देशज वृक्षों वाली चार टिकटों की एक शृंखला
प्रकाशित की थी जिसमें एक स्थान बबूल को भी
मिला था।
इस शृंखला के अन्य टिकटों पर स्थानीय खजूर, सेमर और अफ्रीकी महोगनी को स्थान
मिला था।
दक्षिण अफ्रीका में एक देश है बोत्सवाना।
१ नवंबर १९७६ को
क्रिसमस के
अवसर पर इस देश ने
पाँच टिकटों का एक सेट जारी किया था जिसमें से एक पर
बबूल के तने का चित्र था। इसका मूल्य था २५ बोत्सवाना थेबे।
टिकट पर दाहिनी ओर एम.एफ. ब्रायन का नाम छपा है। यह उस कलाकार
का नाम है जिसने इस सेट के चित्र बनाए थे। बाद में उन्होंने बोत्सवाना
के बहुत से डाकटिकटों के डिजाइन तैयार
किये। इन्हीं कलाकार की सज्जा में १९८० में क्रिसमस के
अवसर पर बोत्सवाना ने एकेशिया प्रजाति के चार वृक्षों के चित्र
के साथ चार टिकटों का एक सेट जारी किया था। इसमें से एक टिकट
पर एकेशिया नीलोटिका का चित्र था। इसका मूल्य था १० बोत्सवाना
थेबे।
१९८३ में
१७ मार्च को वृक्ष दिवस के अवसर पर अलजीरिया ने एक
टिकट का प्रकाशन किया था जिस पर बबूल का चित्र था। इस बहुरंगी
टिकट का मूल्य था २.८० अलजीरियन दीनार। चित्र पर लिखा है
एकेशिया राडियाना। यह बबूल की एक उप प्रजाति है जो अफ्रीका में
पाई जाती है। इस प्रजाति के पेड़ सामान्य बबूल से छोटे होते
हैं और उनकी ऊँचाई केवल १ से ३ मीटर तक ही होती हैं।
बोफुथान्सवाना का इतिहास बहुत विलक्षण है। इसे बांटूस्तान
भी कहा गया। बांटूस्थान उन क्षेत्रों को कहा जाता था जहाँ रंगभेद नीति के
अंतर्गत दक्षिण अफ़्रीका और पश्चिम दक्षिण अफ्रीका की
गोरी तानाशाही सरकार ने कृत्रिम रूप से कुछ तथाकथित
देशों की स्थापना कर दी थी। ये कई खंडों में टूटे छोटे-छोटे
देश थे। दक्षिण अफ़्रीका के सिवाय विश्व के किसी भी अन्य देश ने
इन्हें मान्यता नहीं दी और इनकी स्थापना को कालों पर हो रहे
अत्याचार का ही भाग ठहराया।
१९९४ में जब दक्षिण अफ़्रीका में
रंगभेद से मुक्ति हुई तो नये संविधान में इन बांटूस्तानों का
तुरंत अंत कर दिया गया। इनके क्षेत्रों को दक्षिण अफ़्रीका के
पुनर्गठित प्रान्तों में विलय कर दिया गया। इन्हीं देशों में
से एक देश था बोफुथान्सवाना। इस देश ने १९९२ में ९० सेंट का एक
टिकट जारी किया था, जिस पर बबूल का चित्र था। इसमें बबूल
के पेड़
का एक पेंसिल स्केच था जबकि एक रंगीन डाल बड़े आकार में फूल
पत्ती और काँटों के साथ दिखाई गयी थी।
२७ नवंबर २००५ को संयुक्त अरब इमारात ने
३७५ फिल का एक टिकट
जारी किया जिसमें बबूल के पेड़ का चित्र था। यह टिकट यूएई के
मरुस्थल में उपजने वाले छह वृक्षों की टिकट-शृंखला में से एक
था। हरे नीले और सफेद रंगों वाले इन टिकटों के बायीं ओर एक हरी
पट्टी पर कुछ पत्तियाँ कलात्मक रूप से रेखांकित की गयी थीं। इन
टिकटों का प्रकाशन फ्रांस में हुआ था।
५ सितंबर
१९७८ को अफ्रीका के एक देश सोमालिया ने वन संरक्षण
को समर्पित चार टिकटों की एक शृंखला का प्रकाशन किया था,
जिसमें ४० सोमाली शिलिंग के एक टिकट पर बबूल को स्थान मिला था।
अन्य चार टिकटों पर ५० सोमाली शिलिंग के टिकट पर अंजीर, २.९०
सोमाली शिलिंग के टिकट पर बाओबाब तथा ७५ सोमाली शिलिंग
के टिकट
पर जंगली बदाम को स्थान मिला था।
२० जून १९९१ को मध्यपूर्व एशिया में स्थित कतर नामक देश
द्वारा ५० कतरी दिरहम का एक टिकट जारी किया गया जिसमें बबूल की
एक डाली के साथ –साथ उसके एक फूल और एक फली को बड़े आकार में
अलग से दिखाया गया था। कहना न होगा कि मध्यपूर्व और अफ्रीकी
देशों में बबूल के वृक्ष का महत्व बहुत अधिक है, इसीलिये इन
देशों के टिकटों में इसे महत्वपूर्ण स्थान मिला है।
१९६७ में दक्षिण पश्चिम अफ्रीका के देश रिपब्लिक ऑफ साउथ
अफ्रीका के एक टिकट पर बबूल के पेड़ को अंकित किया गया था। इस
पर इस देश के एक राजनयिक का नाम अंकित है डॉ. एच.एफ. वरवर्ड।
डॉ हैंडरिक १९५८ से १९६६ तक दक्षिण अफ्रीका के प्रधानमंत्री
रहे। वे अफ्रीका की नेशनल पार्टी के नेता थे। ६ सितंबर १९६६ को
केप टाउन में उनकी हत्या कर दी गयी थी। वे व्यावहारिक
मनोविज्ञान, समाजविज्ञान के विद्वान, प्रोफेसर और पत्रकार थे।
उनका जन्म नीदरलैंड में हुआ और वे इस देश के अकेले ऐसे
प्रधानमंत्री हुए हैं जिनका जन्म विदेश में हुआ। इस टिकट पर
उनका नाम प्रकाशित कर के उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गयी थी।
डाक टिकटों से हमें देश विदेश के इतिहास, भूगोल, उनकी मुद्रा,
भोजन, पर्व और संस्कृति की अनेर रोचक कथाओं का पता चलता है।
बबूल के चित्रों वाले डाकटिकटों को भी देखकर पता चलता है कि ये
सभी गर्म देशों के टिकटों पर चित्रित किये गए हैं। कहना न होगा
कि मरुस्थल की प्रकृति को सहजता से अपना लेने के कारण बबूल
मध्यपूर्व और अफ्रीका के गर्म देशों में लोगों के लिये बहुत
उपयोगी बन गया।
४ सितंबर १९९८ को दक्षिण अफ्रीका ने बबूल के चित्र वाला एक
डाक टिकट जारी किया। यह टिकट राष्ट्रीय वृक्ष सप्ताह के अवसर
पर प्रकाशित चार टिकटों वाली शृंखला में से एक था। इस टिकट पर
बबूल का पेड़ उसकी फूलों से भरी एक डाली और उसकी फलियों को
दिखाया गया है। इस शृंखला में जिन अन्य वृक्षों को स्थान मिला
वे थे बाओबाब, शेफर्ड वृक्ष और करी वृक्ष।
फरवरी
२००८ में दिल्ली में डाकटिकटों की एक विशेष प्रदर्शनी
का आयोजन किया गया था।
इस प्रदर्शनी का नाम था डाकियाना-२००८,
यह प्रदर्शनी एशिया के फूल फल और सब्जियों के चित्रों वाले
एशियाई देशों के डाकटिकटों पर आधारित थी। इस अवसर पर भारत ने
एक विशेष प्रथम दिवस आवरण का प्रकाशन किया गया था। दिल्ली के
वृक्ष नामक से इस आवरण पर बबूल की एक डाली की प्रकाशन किया गया
था। इसे ८ फरवरी २००८ को जारी किया गया था। |