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१३. ५. २१३

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
जयोति खरे, प्राण शर्मा, डॉ. सुनीता, डॉ. बाबूलाल शर्मा और रंजना सोनी की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं गर्मी के मौसम में लौकी के व्यंजनों की विशेष शृंखला। इस अंक में प्रस्तुत है- लौकी के थेपले

रूप-पुराना-रंग नया- शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें रूप बदलकर- कायाकल्प पुरानी सैंडिल का

सुनो कहानी- छोटे बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में इस बार प्रस्तुत है कहानी- चित्रकला

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला- २७ मैं पेड़ नीम का छायावाला विषय पर नवगीतों का प्रकाशन शुरू हो रहा है। टिप्पणियों के लिये कृपया यहाँ जाएँ।

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें।

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- ९ फरवरी २००३ को प्रकाशित रवीन्द्रनाथ ठाकुर की बांग्ला कहानी का हिंदी रूपांतर जीवित या मृत

वर्ग पहेली-१३३
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों में भारत से राजनारायण बोहरे
की कहानी
आदत

स्टेट हाइवे नं. एक सौ पन्द्रह के किलोमीटर क्रमांक १ से ३० तक की चकाचक सड़क देखकर नेशनल हाइवे वाले भी लज्जा खाते हैं। यह सड़क मेरे कस्बे को महानगर से जोड़ती हुई आगे निकल जाती है।
लीला का ढाबा इसी रोड पर छठवें किलोमीटर पर है और वनस्पति घी की फैक्ट्री भी इसी मार्ग में ग्यारहवें किलोमीटर पर बनी है। पुरानी गुफाएँ और पहली शताब्दी में बने प्राचीन जैन मन्दिर भी इसी रोड पर हैं। आज मैं बहुत फुर्सत में हूँ, जनाब। चलिये कोई किस्सा हो जाये। लीला के ढाबे का ठीक रहेगा ...न-न, आज वह नहीं और वनस्पति घी की कहानी भी नहीं। वह फिर किसी दिन सही। जैन मन्दिर से जुड़ी कहानी जरूर सुन सकते हैं। लेकिन मेरी दिली इच्छा है, कि आज इनमें से कोई कहानी न सुनें। मैं आप को कुछ और सुनाना चाहता हूँ। आज आप को यादव साहब की कहानी सुनाने को जी चाह रहा है। सुनेंग आप? शायद यादव सरनेम से आप समझे नहीं हैं, अरे वही मेरे पड़ोसी यादव साहब जिनके दरवाजे पर टाइम कीपर से लेकर असिस्टेण्ट इंजीनियर तक गाड़ी लिये खड़े नजर आते हैं। नाक पर मोटा चश्मा और बदन पर ढीले-ढाले सूट को किसी तरह उलझाए ...आगे-

*

आनंद पाठक का व्यंग्य
सखेद सधन्यवाद
*

शंपा शाह का दृष्टिकोण
घूरे के दिन
*

शैलेन्द्र चौहान की कलम से
शमशेर की कविताई
*

पुनर्पाठ में गुरमीत बेदी का आलेख
चंबा की घाटी

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पिछले सप्ताह-


रघुविन्द्र यादव की लघुकथा
संस्कार
*

नचिकेता का रचना प्रसंग
गीत के विकास में बिहार का योगदान
*

सतीश जायसवाल का यात्रा संस्मरण
मायावी कामरूप का रूप
*

पुनर्पाठ में तेजेन्द्र शर्मा का आलेख का
यूनाइटेड किंगडम का हिन्दी कथा साहित्य
*

वरिष्ठ कथाकारों की प्रसिद्ध कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा में मृदुला गर्ग की कहानी बेनाम रिश्ता

चित्राजी निमंत्रण-पत्र के साथ हाथ से लिखे मनुहार पत्र के हर अक्षर को अपनी नजरों से आँकती उनमें अंतर्निहित भावों को सहलाने लगीं। कई बार पढ़े पत्र। सोचा विवाह में इकट्ठे लोग पूछेंगे—मैं कौन हूँ? क्या रिश्ता है शालिग्रामजी से मेरा? क्या जवाब दूँगी मैं? क्या जवाब देंगे शालिग्रामजी? दोनों के बीच बने संबंध को मैंने कभी मानस पर उतारा भी नहीं। नाम देना तो दूर की बात थी। बार-बार फटकारने के बाद भी वह अनजान, अबोल और बेनाम रिश्ता चित्राजी को जाना-पहचाना और बेहद आत्मीय लगने लगा था। कभी-कभी उसके बड़े भोलेपन से भयभीत अवश्य हो जाती थीं और तब उस रिश्ते के नामकरण के लिए मानो अपने शब्द भंडार में इकट्ठे हजारों शब्दों को खंगाल जातीं। नहीं मिला था नाम। और जब नाम ही नहीं मिला तो पुकारें कैसे? सलिए सच तो यही था कि उन्होंने कभी उस रिश्ते को आवाज नहीं दी। रिश्ते के जन्म और अपनी जिंदगी के रुक जाने के समय पर भी नहीं। जिंदगी के पुनःचालित होकर उसकी भाग-दौड़ में भी नहीं। शालिग्रामजी को कभी स्मरण नहीं किया। आगे-

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : कल्पना रामानी

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