माँ के
पास एक बड़ा लकड़ी का बोर्ड है। माँ उस पर चित्र बनाती है
और चित्रों से बहुत सी
बातें समझाती है- "देखो यह
आसमान है। आसमान नीला होता है।
"और
यह देखो यह घास है। घास के कारण धरती हरी दिखती है। धरती
पर जो दूर खड़े हुए हैं वे पेड़ हैं। पेड़ हमें स्वस्थ हवा
देते हैं।
"ऊपर देखो आसमान में... जो सफेद
टुकड़े हैं वे बादल हैं। बादल ही वर्षा मैं जल बरसाते हैं।
वो जो दूर पर रंगीन सा दिख रहा है न?
वह इंद्रधनुष है। इंद्रधनुष में सात रंग होते हैं।"
गीतू को
भी चित्रकला पसंद है। वह छोटे चित्र बनाती है। एक कापी
में। कभी कभी छोटे छोटे कागजों पर...
एक दिन
गीतू ने पूछा,--"माँ,
क्या मैं भी आपके बोर्ड पर बड़ा सा चित्र बना सकती हूँ?"
"हाँ,
क्यों नहीं..." माँ ने कहा
"पर मैं इतनी छोटी हूँ कि मेरा हाथ आपकी तरह ऊपर
नहीं पहुँचता।" गीतू ने थोड़ा
उदास होते हुए कहा।
"अरे, उसमें उदासी की कोई बात नहीं, मैं तुम्हें
तिपाई पर खड़ा कर दूँगी। तुम ऊँची हो जाओगी।"
अगले दिन
गीतू तिपाई पर चढ़कर बड़े बोर्ड पर चित्रकारी करती रही।
माँ और मीतू उसे दूर से देखते रहे।
- पूर्णिमा वर्मन |