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साहित्यिक निबंध

 

 

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यूनाइटेड किंगडम का हिन्दी कथा साहित्य
- तेजेन्द्र शर्मा


उषा राजे सक्सेना द्वारा संपादित कहानी संग्रह "मिट्टी की सुगंध" यूनाइटेड किंगडम के कथा साहित्य के लिये एक महत्त्वपूर्ण घटना है। वर्ष १९९९ में प्रकाशित इस कथा संग्रह में १७ लेखकों की कहानियाँ संकलित हैं। यानि कि यूनाइटेड किंगडम में कम से कम १७ साहित्यकार रह रहे हैं जो कि कथा साहित्य से जुड़े हैं। किंतु जब इन लेखकों का परिचय पढ़ते हैं तो पता चलता है कि एक दो अपवादों को छोड़ कर किसी भी लेखक का अपना कहानी संग्रह तब तक प्रकाशित नहीं हुआ था, जबकि अधिकतर के एक से अधिक कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके थे। यह कहा जाता है कि हिन्दी भाषा के साहित्यकार केवल पार्ट टाइम साहित्य सृजन करते हैं, क्यों कि दाल रोटी के जुगाड़ के लिये उन्हें कोई और काम करना होता है।

मुंबई में मेरे मित्र विजय कुमार गुप्त हमेशा कहा करते हैं कि कविता लिखने के लिये प्रतिभा की आवश्यकता होती है। मैं उसके उत्तर में सदा यही कहता रहा हूँ कि कथा साहित्य लिखने के लिये प्रतिभा के साथ साथ मेहनत व एकाग्रता
की भी आवश्यकता होती है। अन्यथा क्या कारण है कि युनाइटेड किंगडम में डा सत्येन्द्र श्रीवास्तव, डा रूपर्ट स्नैल, डा गौतम सचदेव, ओंकारनाथ श्रीवास्तव, दिव्या माथुर, उषा राजे, सोहन राही, प्राण शर्मा, डा कृष्ण कुमार, मोहन राणा, उषा वर्मा जैसे साहित्यकारों ने कविता के क्षेत्र में तो अपनी उपस्थिति धाकड़ ढंग से दर्ज करवाई है, वहीं कथा साहित्य के मामले में उनका लेखन छुटपुट रूप में ही दिखाई देता है।

युनाइटेड किंगडम में भारतीय मूल के अनिवासियों के साहित्य प्रयासों को देखा जाये तो हम पाएँगे कि जहाँ तक कथा साहित्य का प्रश्न है तो उस क्षेत्र में गुजराती, पंजाबी, और उर्दू (पाकिस्तानी साहित्यकारों सहित) भाषा के लेखक हिन्दी से कहीं आगे हैं। इन भाषाओं में निरंतर स्तरीय कहानियाँ एवं उपन्यास लिखे गये हैं। किंतु हिन्दी में कथा साहित्य दिखाई नहीं देता, उसे ढूँढना पड़ता है।

जिस प्रकार निर्मल वर्मा चेकोस्लोवाकिया में निवास के दौरान उपन्यास लिख कर वहाँ के लेखक नहीं बन गये ठीक उसी प्रकार महेन्द्र भल्ला भी युनाइटेड किंगडम के हिन्दी साहित्य का हिस्सा नहीं बन सकते। फिर भी युनाइटेड किंगडम में हिन्दी कथा साहित्य का सबसे उत्कृष्ट नमूना महेन्द्र भल्ला द्वारा रचित उपन्यास "दूसरी तरफ" में देखने को मिलता है। आठवें दशक में प्रकाशित यह उपन्यास पूरी शिद्दत के साथ युनाइटेड किंगडम में बसे भारतीयों की समस्याओं का चित्रण करता है। महेन्द्र भल्ला ने अपने उपन्यास में अनिवासी भारतीयों की मानसिकता, युनाइटेड किंगडम में मौजूद रंग भेद की नीतियाँ और भारतीय मूल के लोगों के प्रति अमानवीय व्यवहार का बहुत खूबसूरत चित्रण किया है। उपन्यास बिना कि
सी अति के दर्शाता है कि ब्रितानवी पुलिस, आम श्वेत नागरिक या आधिकारी का व्यवहार एक आम भारतीय के प्रति कितना क्रूर हो सकता है। उपन्यास के नायक के एक श्वेत महिला के साथ शारीरिक संबंध भी उसे एक विचित्र प्रकार की हीनता से भर देते हैं। इस उपन्यास की त्रासदी यह रही कि वह महेन्द्र भल्ला के ही दूसरे उपन्यास "एक पति के नोट्स" की लोकप्रियता के नीचे दब कर रह गया। वैसे भी मारीशस के अभिमन्यु अनत के अतिरिक्त किसी भी अन्य अनिवासी हिन्दी लेखक के साहित्य का सही मूल्यांकन हो ही कहाँ पाया है।

मित्रवर जगदीश कौशल द्वारा संपादित समाचारपत्र अमरदीप के पुराने अंक देखने से पता चलता है कि स्वर्गीय विजया मायर ने भी हिन्दी में उपन्यास व कहानियाँ लिखी हैं। किंतु उन रचनाओं को पुस्तकाकार में देखने का अवसर नहीं मिला है। अमरदीप में १९९४-९५ में उनका उपन्यास 'रिश्तों का बंधन' अड़तालीस किश्तों में प्रकाशित हुआ था। उसके पश्चात १९९९ में प्रतिभा डावर का भारी भरकम उपन्यास 'यह मेरा चाँद' राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया। उपन्यास की भाषा सरल और सादी है और यह उपन्यास कोई साहित्यिक कृति होने का दावा करता नहीं दिखाई देता किंतु यह उपन्यास एक प्रश्न हमारे दिमाग में अवश्य उठाता है कि यू.के. में रचे जा रहे हिन्दी साहित्य को हम किस नाम से पुकारें। क्या यह यू.के. में रचा जा रहा भारतीय साहित्य है या फिर यू.के. में रचा जा रहा हिन्दी साहित्य है जो कि स्थानीय कहला सकता है या फिर अनिवासी भारतीयों द्वारा अपने अतीत को नॉस्टेलजिक होकर याद करना मात्र है?

दि भारत में रचा जा रहा हिन्दी, अंग्रेज़ी, तमिल, बंगला, उड़िया, कन्नड़ या मलयालम साहित्य भारतीय साहित्य कहला सकता है तो फिर इंगलैंड में रचा जा रहा हिंदी साहित्य ब्रितानवी साहित्य का अंग क्यों नहीं बन सकता। मुझे लगता है कि इंगलैंड में बसा हिन्दी साहित्यकार जब भी कलम उठाता है तो भावनाओं की कश्ती पर सवार हो कर अपने अतीत में पहुँच जाता है और उसके लेखन के विषय वही बन जाते हैं जो कि भारत में बसे लेखकों के होते हैं। यह खासी विचित्र बात है कि एक आध अपवाद को छोड़ कर यू.के. में बसे हिन्दी साहित्यकारों के लेखन में वो जद्दोजहद नहीं दिखाई देती जो कि अनिवासी भारतीयों ने इस देश में बसने की प्रक्रिया में की है। गोरे अंग्रेज़ के जीवन में हिन्दी लेखक भूल कर भी नहीं झाँकते। उनके साथ आपसी रिश्तों की बात किसी कवि या कथाकार की लेखनी में दिखाई नहीं देती। कभी कभी तो यह विचार भी मन में आने लगता है कि क्या इन हिन्दी लेखकों ने कभी किसी अंग्रेज़ का घर भीतर से देखा होगा। यह लेखक अपने इर्द गिर्द एक लक्ष्मण रेखा खींच कर चलते हैं जिसमें अंग्रेज़ के प्रवेश पर रोक लगी है। पूरब और पश्चिम फ़िल्म की तरह हर भारतीय मूल्य महान है तो पश्चिमी सभ्यता के संस्कार गलत हैं।

दिव्या माथुर कविता और कहानी में निरंतर और समान रूप से सक्रिय है। एक ही वर्ष में 'ख्याल तेरा' (कविता संग्रह) 'और आक्रोश' (कहानी संग्रह) का प्रकाशन इस बात का प्रमाण है कि दिव्या माथुर एक क्रियाशील एवं प्रतिबद्ध लेखिका हैं। 'फिर कभी सही' व 'साँप सीढ़ी' दिव्या माथुर की सशक्त कहानियों में गिनी जा सकती हैं। दिव्या माथुर के पास जीवन को देखने की दृष्टि है, उसे समझने की परिपक्वता है और उसे शब्द देने के लिये भाषा भी है। डॉ रूपर्ट स्नैल के अनुसार ``दिव्या जी के लेखन में संतुलन और समन्वय की कोई कमी नहीं है, और जब वे पुरूषों की गतिविधियों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से टिप्पणी करती हैं तो उनके मन में समझदारी और सहिष्णुता है, बदला लेने की भावना नहीं। अ़गर आप अकेले बैठ कर ये कहानियाँ पढ़ना शुरू करेंगे तो आपका अकेलापन जल्दी ही मिट जायेगा क्यों कि इनमें जो चरित्र वर्णित हैं वे जल्दी ही आपका साथ देने लगेंगे। आपको ऐसा प्रतीत होगा कि आप एक वास्तविक दुनियाँ में प्रवेश कर रहे हैं, बल्कि आपको मजबूर होकर उस दुनिया में खींचा जा रहा है।''

क्यों कि यू.के. का कथा साहित्य पुस्तक रूप में अधिक उपलब्ध नहीं है, इसलिये हमें पत्रिकाओं में प्रकाशित कहानियों पर ही बातचीत केंद्रित रखनी होगी। 'सर्द रात का सन्नाटा' जैसी बेहतरीन कहानी लिखने वाली तोषी अमृता यू.के. के
हिन्दी जगत में अपनी शृंगार रस की कविताओं या फिर प्रेम गीतों के लिये जानी जाती हैं। दो बहनों नेहा और तनु व उनके प्रेमी परेश की यह कहानी संकेत करती है कि तोषी अमृता में कहानी लिखने का धैर्य भी है और पकड़ भी। नेहा के चरित्र में आते बदलाव को लेखिका ने बहुत खूबसूरती से चित्रित किया है।

ओंकारनाथ श्रीवास्तव तो लंदन में बी. बी. सी. में कार्यरत होने के पहले ही भारत में कहानी और कविता में जाना पहचाना नाम बन चुके थे। किन्तु उन्होंने भी इंगलैंड में बसने के पश्चात कहानी विधा से अपना नाता लगभग तोड़ ही लिया। रेडियो पत्रकारिता ने जैसे उनके भीतर के कहानीकार को कहीं दबा ही दिया।

वरिष्ठ शिक्षाविद कवि एवं आलोचक डा गौतम सचदेव ने भी अपना ध्यान कविता और लेख लिखने पर अधिक केंद्रित रखा है। छुटपुट कहानियाँ वे लिखते भी रहे हैं और वे पत्रिकाओं में प्रकाशित भी होती रही हैं, किन्तु उनके कथा लेखन में भी निरंतरता का सर्वथा अभाव है। 'आदमीखोर' एवं 'अनुष्ठान' जैसी सशक्त रचनाएँ रचने वाले कथाकार का एक भी कहानी संग्रह या उपन्यास का न प्रकाशित होना सभी के लिये अचम्भे की बात है। उनकी कहानियाँ एक मँझे हुए कथाकार की परिपक्व रचनाओं का आभास देती हैं।

अचला शर्मा की कहानियाँ और नाटक समय-समय पर हंस और अन्य पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। बेघर जैसी
मार्मिक कहानियाँ गवाह हैं कि अचला शर्मा यू.के. की एक महत्वपूर्ण कथाकार हैं। किन्तु कहानी लेखन के लिये जिस समर्पण और प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है वह शायद समयाभाव के कारण अचला शर्मा दिखा नहीं पाती हैं। इसे यू.के. के हिन्दी साहित्य का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि इतनी सशक्त कहानीकार इस विधा के लिये समय नहीं निकाल पाती।

लंदन की एक मात्र साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिका पुरवाई के संपादन से जुड़ी उषा राजे सक्सेना स्वयं एक अच्छी कहानीकार भी हैं। कमलेश्वर, रामदरशमिश्र, एवं डा लक्ष्मीमल सिंघवी जैसे वरिष्ठ साहित्यकारों ने समय समय पर उनके लेखन की सराहना की है। एक मुलाकात नामक उनका स्तंभ स्थाई रूप से पुरवाई में प्रकाशित हो रहा है। यह स्तंभ कहानी शैली में लिखा जाता है। आम आदमी का दर्द, रिश्तों की विसंगतियाँ, भावनाओं की गहराई जैसे मानवीय पक्ष उषा राजे की कहानियों की विशेषताएं हैं।

'घर का ठूँठ' और 'कनुप्रिया' जैसी कहानियों की लेखिका शैल अग्रवाल बरमिंघम निवासी हैं। भावनाओं, चरित्र चित्रण और भाषा पर शैल अग्रवाल की गहरी पकड़ है। आवश्यकता है तो केवल इतनी कि उन्हें अपने लेखन में निरंतरता लानी होगी। एक अच्छे कहानीकार की सभी खूबियाँ उनके लेखन में दिखाई देती हैं। लेखन में परिपक्वता लाने के लिये निरंतरता एक आवश्यक शर्त है। उनकी कुछ एक कहानियों में उपन्यास की झलक भी दिखाई देती है। बूढ़ी दादी चाची और ठूँठ का प्र
तीक उनकी कहानी 'घर का ठूँठ' में एक खूबसूरत प्रभाव उत्पन्न करता है। यू.के. के हिन्दी कथा साहित्य को शैल अग्रवाल से बहुत सी अपेक्षाएँ हैं।

इधर यार्क की उषा वर्मा, कावेंट्री के प्राण शर्मा, इरा सक्सेना और पुरवाई के संपादक युवा कवि पद्मेश गुप्त की कहानियाँ भी गगनांचल एवं अन्य पत्रिकाओं में दिखाई दे रही हैं। इनका लेखन भी कथा साहित्य के लिये संभावनाएँ जगाता है। वहीं दूसरी ओर भारतेन्दु विमल और अरूण अस्थाना द्वारा रचित उपन्यासों की भी प्रतीक्षा की जा रही है।

'काला सागर', ' ढिबरी टाईट' एवं ' देह की कीमत' के लेखक डा तेजेन्द्र शर्मा के लेखन पर डा धर्मवीर भारती से लेकर धीरेन्द्र अस्थाना तक ने अपने विचार प्रकट किये हैं। डा धर्मवीर भारती के अनुसार `तेजेन्द्र के पास समस्याओं को उठाने का साहस है, पात्र निर्माण करने की शक्ति है, कथानक का निर्वाह है।' वरिष्ठ साहित्यकार नरेंद्र कोहली के अनुसार ``जब हिन्दी कहानी का इतिहास लिखा जाएगा तो यह बात अवश्य कही जाएगी कि हिन्दी में विमान जगत से जुड़ी कहानियों की शुरूआत करने का श्रेय तेजेन्द्र शर्मा को जाता है।'' जगदम्बा प्रसाद दीक्षित के अनुसार, ``निश्चय ही तेजेन्द्र के पास एक ऐसा अनुभव संसार है जो दूसरे लेखकों को सहज उपलब्ध नहीं है। अपने अनुभव संसार से उन्होंने ऐसे प्रसंगों को चुना है जो कहीं न कहीं पाठकों को झकझोर जाते हैं।' ढिबरी टाइट' का कथ्य इसका अच्छा उदाहरण है।'' कमलेश्वर, सुभाष पंत, धीरेन्द्र अस्थाना, हिमांशु जोशी, अशोक चक्रधर, चंद्रकांत बांदिवडेकर, चित्रा मुदगल, जितेन्द्र भाटिया, सूरज प्र
काश, रतिलाल शाहीन व विश्वनाथ सचदेव ने भी समय समय पर तेजेन्द्र शर्मा के कथा साहित्य पर सार्थक टिप्पणियाँ दी हैं।

युनाइटेड किंगडम में बसे साहित्यकारों की संस्था कथा ने वर्ष १९९९ से कथा गोष्ठियों का आयोजन आरम्भ किया है। इन गोष्ठियों में अब तक भारतेंदु विमल (उपन्यास अंश), दिव्या माथुर, गौतम सचदेव, शैल अग्रवाल, अरूण अस्थाना, उषा राजे पद्मेश गुप्त, उर्दू के वरिष्ठ कथाकार कैसर तमक़ीन व कथा के सचिव तेजेन्द्र शर्मा स्वयं कहानी पाठ कर चुके हैं। इन कथा गोष्ठियों में उपस्थित श्रोता कहानी सुनने के पश्चात तुरंत ही कथाकार को अपनी प्रतिक्रिया बता देते हैं। यह गोष्ठियाँ अब तक लंदन एवं बरमिंघम में आयोजित हो चुकी हैं। कथा की योजना है कि भविष्य में पंजाबी एवं उर्दू के अन्य कथाकारों को भी इन गोष्ठियों में कथा पाठ के लिये आमंत्रित किया जाये।

कथा ने नयी शताब्दी में इंदु शर्मा कथा सम्मान को अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान किया है। वर्ष २००० के लिये प्रख्यात कथाकार चित्रा मुदगल को उनके उपन्यास आवां के लिये नेहरू सेन्टर में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में सम्मानित किया गया। साथ ही साथ कथा ने स्थानीय लेखकों के साहित्य का आकलन करने का भी बीड़ा उठाया है और उसके लिये पद्मानंद साहित्य सम्मान की भी शुरूआत की है। प्रथम पद्मानंद साहित्य सम्मान केंब्रिज विश्वविद्यालय के डा. सत्येन्द्र श्रीवास्तव को उनकी रचना टेम्स में बहती गंगा की धार के लिये प्रदान किया गया। कथा के इन प्रयासों से युनाइटेड किंगडम में कथा साहित्य को अवश्य ही प्रोत्साहन मिलेगा।

कुल मिला कर यह कहना न्यायोचित होगा कि युनाइटेड किंगडम में कथा साहित्य अभी केवल संभावनाएँ दिखा रहा है जिन्हें उपलब्धि की अभी प्रतीक्षा है।

२० फरवरी २००१

 
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