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1. 1. 2007

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हास्य व्यंग्य

इस सप्ताह: नव वर्ष विशेषांक में

समकालीन कहानियों में राजकुमार राकेश की कहानी
शिमला क्लब की एक शाम

शिमला क्लब की वह एक यादगार शाम थी। शराब बाँटे जाने का सिलसिला अभी शुरू नहीं हुआ था। तय यह किया गया था कि जब दीवार पर टँगी घड़ी की सुइयाँ डंके की चोट पर बारह बजा देंगी, पीने-पिलाने का काम तभी शुरू होगा। चाय-कॉफी के दौर खूब चल रहे थे। इसी बीच इस क्लब के अनुभवी व महत्वपूर्ण व्यक्तियों के भाषण तकरीबन आठ बजे से ही शुरू हो गए थे। मंच-संचालन करने वाले व्यक्ति ने आरंभ में ही यह घोषणा कर दी थी, कि आज का यह समय किसी एक सदी के अवसान का ही नहीं, बल्कि नई सहस्राब्दी के उदय का भी समय है। इसलिए यह स्वाभाविक ही था कि इतने महत्वपूर्ण समय में तमाम सदस्य गण ख़ासे उत्तेजित और उत्साहित हों।

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हास्य व्यंग्य में अमृत राय कह रहे हैं
नया साल मुबारक

कहने की ज़रूरत नहीं। नया साल मुबारक, पुराने का मुँह काला। यही दुनिया का कायदा है।और कैसे न हो। ज़रा मिलाकर देखो दोनों को।यह देखो नया साल, गुलाबी-गुलाबी, और वह रहा तुम्हारा पुराना साल, चीकट, मटमैला।नया साल झबरे-झबरे बालों वाला ऊँची नसल का नन्हा-मुन्ना प्यारा-सा पपी है जिसे बरबस, गोद में उठा लेने को जी चाहता है, ऊन के गोले जैसा गरम, गुदगुदा। और वह पुराना साल खुजली का मारा, लीबर बहाता, मरियल, बूढ़ा, लावारिस कुत्ता जो हर घर से दुरदुराया जाता है। नया साल हरी-भरी दूब की वीथी है जिस पर अगल-बगल, रंग-बिरंगे सुगंधित फूलों की लताओं ने मंडप-सा तान रखा है, और पुराना साल कीचड़ और काई से ढंका हुआ वह ऊबड-ख़ाबड़ कंकरीला रास्ता जिसे अब पीछे मुड़कर ताकते डर लगता है।

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साहित्यिक निबंध में डा‌‌‍‍ जगदीश व्योम की पड़ताल
हिंदी कविता में नया साल
नव वर्ष के उपलक्ष्य में पिछले पचास सालों में जो कविताएँ लिखी गई हैं उनमें समकालीन परिवेश और परिस्थतियों का सुंदर प्रयोग देखने को मिलता है। यही नहीं वे आधुनिक विचारों और मनःस्थितियों का भी सुंदर प्रतिनिधित्व करती हैं। आज की नववर्ष रचनाएँ 1 जनवरी से शुरू होने वाले ईस्वी संवत के लिए हैं न कि होली पर शुरू होने वाले विक्रम संवत या दीवाली पर शुरू होने वाले शक संवत के विषय में। ईस्वी नव वर्ष के विषय में लिखे जाने के कारण विशेष अंतर यह है कि इसमें ऋतु या उत्सव का शृंगार नहीं बल्कि दैनिक जीवन का आचरण दिखाई देता है। अधिकांश कविताओं का स्वर मंगल कामनाओं के पारंपरिक स्वरूप जैसा है तो भी आधुनिक युग की सच्चाई दिखाने वाली प्रवृत्तियाँ साफ़ नज़र आती हैं।

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धारावाहिक में डॉ अशोक चक्रधर के विदेश यात्रा-संस्मरण
ये शब्द मुँह से मत निकालिए!
नौ जून उन्नीस सौ सतासी को इतने सताए गए कि उस दिन दो जून का भोजन तक नसीब नहीं हुआ। जामिआ से दूरदर्शन, दूरदर्शन से सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, सूचना मंत्रालय से विदेश मंत्रालय, विदेश मंत्रालय से पासपोर्ट कार्यालय, फिर दूरदर्शन...फिर मंत्रालय...फिर दूसरे मंत्रालय...फिर दूरदर्शन। मैं अपनी फिएट को इस कार्यालय से उस कार्यालय तक दौड़ा रहा था। पसीना-पसीना हो रहा था और भरपूर गर्मी के कारण कार भी निरंतर भाप छोड़ रही थी। कार जहाँ चाहती थी रुक जाती थी। मैं अपनी मिल्टन की बोतल का ठंडा पानी रेडिएटर में डाल कर उसका मिजाज ठंडा करता था। मेरा कुसूर इतना था कि मैंने दस महीने पहले ही पासपोर्ट बनवा लिया था। जिनके पास पासपोर्ट नहीं था उनके मज़े थे।

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पर्व परिचय में साल भर के पर्वों की जानकारी
पर्व पंचांग-२००७


सप्ताह का विचार
जैसे रात्रि के बाद भोर का आना या दुख के बाद सुख का आना जीवन चक्र का हिस्सा है वैसे ही प्राचीनता से नवीनता का सफ़र भी निश्चित है। — भावना कुँअर

 

अनुभूति के जन्मदिन
और
नव वर्ष के अवसर
पर
विशेष रचनाएँ

ताज़ा हिंदी चिट्ठों के सारांश
नारद से

-पिछले अंकों से-
कहानियों में
पिंजरे में बंद तोते
-विपिन जैन
सही पते पर- सूरज प्रकाश
इच्छामृत्यु- नरेन्द्र मौर्य
काला लिबास-सुषम बेदी
मानिला की योगिनी- महेश चंद्र द्विवेदी
बबलू- बच्चन सिंह
तार- डॉ प्रतिभा सक्सेना
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हास्य व्यंग्य में
नेता जी की नरक यात्रा- गिरीश पंकज
मैं कुत्ता और इंटरनेट- गुरमीत बेदी
झूठ के नामकरण-डॉ अखिलेश बार्चे
गोलगप्पे में शराब-मनोहर पुरी
बुद्धिजीवी बनाम . . . - राजेन्द्र त्यागी
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पर्व परिचय में
सरोज मित्तल से मजेदार जानकारी
देश विदेश में क्रिसमस

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विज्ञान वार्ता में
डा गुरुदयाल प्रदीप की पुकार
हाय रे दर्द

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साहित्य समाचार में
विश्व के हर कोने से इस माह के
नये समाचार

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साक्षात्कार में
एक मुलाकात भाषा सेतु के भगीरथ
जगदीप डांगी से

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संस्मरण में
दिवंगत रचनाकार को श्रद्धांजलि
जनकवि कैलाश गौतम
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ललित निबंध में
उमाशंकर चतुर्वेदी का आलेख
रस आए रस जाए
*
महानगर की कहानियों में
हरिवल्लभ कुमार की रचना
बुश्शर्ट
*
घर परिवार में
पालतू पशुः भावना कुंअर के सुझाव
छोटा-सा पप्पू
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रसोईघर में
गरमा गरम पक कर तैयार है
सब सब्ज़ी पुलाव

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©  सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

   

 

 
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