समकालीन कहानियों में
इस माह
प्रस्तुत है- भारत
से
मृदुला सिन्हा की
कहानी एक दिये की दिवाली
गणेश
किसी से हार मानने वाला नहीं था। मधुबनी के छोटे से गाँव के
कोने में बसी दस झोपड़ियों में से एक झोपड़ी उसकी थी। उसका
जीजा उसे शहर उठा लाया था। उमर होगी पन्द्रह-सोलह की। यह तो
हमारा अनुमान था जब उसकी माँ को ही बेटे के जन्म की न तिथि, न
महीना, न साल याद थे तो बेटे को क्या पड़ी थी अपना जन्मदिन याद
रखने की। उसे कौन सा अपना जन्मदिन मनाना था और हर जन्मदिन पर
मोमबत्ती की एक संख्या बढ़ानी थी
"गणेश तुम कितने साल के हो?" मेरे बेटे ने पूछा था।
"हम हम दस साल के हैं।"
"चल हट मूछ निकल आई और दस साल का है, झूठा कहीं का।"
वह रोनी सूरत बनाकर मेरे पास आ गया-
"मम्मी मैं दस साल...
...आगे-
***