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हमारे
दुष्कर्म, बदलता वातावरण और गर्माती धरती: शहरीकरण,
औद्यागीकरण
तथा प्रकृति से दिनरात हो रही हमारी छेड़छाड़ शैने:शैने
अपना कुप्रभाव बढ़ते प्रदूषण
के रूप में तो दिखा ही रही है, परंतु इन सबका सबसे गंभीर कुप्रभाव
धरती के क्रमश: बढ़ते तापक्रम के रूप में सामने आ रहा है। गर्माती
धरती के बारे में चर्चा एवं चिंतन तो पिछले कई वर्षों से चल रहा
है, परंतु पर्याप्त एवं सुनिश्चित सबूतों के अभाव में अब तक इस
अवधारणा के प्रति संशय तथा अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई थी।
वर्ष
2003 में स्थिति बदल गई है। सैटेलाइट्स से संप्रेषित आकड़ों,
रिमोट
सेंसिंग तथा अन्य अत्याधुनिक उपकरणों के बल तथा विभिन्न
प्रयोगों द्वारा वैज्ञानिकों तथा अनुसंधानकताओं ने
ग्लोबल वार्मिंग के कुप्रभावों यथा पिघलती बर्फ, सूखा,
पेड़पौधों की घटती उत्पादन क्षमता तथा जीवजंतुओं के व्यवहार
में हो रहे परिवर्तनों के संबंध में सुनिश्चित जानकारी एकत्र करने
में सफलता पाई है।
AAAS ने
इन उपलब्धियों को भी वर्ष 2003 की दस सबसे महत्वपूर्ण
उपलब्धियों में स्थान दिया है।
छोटेछोटे धागों के टुकड़ों के जलवे: जी? मैं यहाँ सिलाई
के उपयोग में आने वाले धागे की बात कतई नहीं कर रहा हूँ। मैं तो
जीवन के मूल आधार डीएनए से उत्पन्न जीवन को चलाने वाले
दूतों अर्थात् आरएनए की बात कर रहा हूँ। वास्तव में इन
आरएनए का उत्पादन कोशिकाओं के केंद्रक में स्थित क्रोमोज़ोम्स
में पाए जाने वाले डीएनए द्वारा होता है। जीवन के मूल नियामक
अणुओं प्रोटीन्स के निर्माण का रहस्य डीएनए में रसायनिक
कूट भाषा के रूप
में छिपा होता है। इन धागों के अलगअलग हिस्सों
से छोटेछोटे टुकड़ों में कई प्रकार के आरएनएज़ का निर्माण
होता है। इनमें से कुछ
(rRNA) तो राइबोज़ोम्स
( प्रोटीन संश्लेषण
की साइट) के निर्माण में प्रयुक्त होते हैं,कुछ
(tRNA) कोशिका
में इधरउधर भटकते एमीनो एसिड्स ( प्रोटीन के अणुओं के मुख्य
घटक) को पकड़पकड़ कर राइबोज़ोम्स तक लाने का काम करते हैं, तो
कुछ (mRNA) में यह संदेश छिपा रहता है कि पकड़ कर लाए गए एमीनो
एसिड्स को किस क्रम में जोड़ना है ताकि एक प्रोटीनविशेष के
अणुओं का निर्माण हो सके। ये प्रोटीन्स ही कोशिका की संरचना तथा
इनमें हो रही विभिन्न प्रकार की रसायनिक प्रक्रियाओं के संचालन
में सहायक होते हैं।
वर्ष 1993 में अन्य प्रकार के अति सूक्ष्म आरएनएज के अस्तित्व के
बारे में पता चला जो मुश्किल से 75 से 400 न्युक्लियोटाइड्स
से मिल कर बने होते हैं। उस समय तो इन्हें मात्र जैविक अपवाद के रूप
में देखा गया। परंतु पिछले दोतीन वर्षों के अनुसंधान कार्य ने
इनके वास्तविक महत्व को दर्शाया है। वास्तव में ऐसे कई प्रकार के छोटे आरएनएज़ का पता
चला है, जिनका निर्माण डीएनए के उन अंशों से होता है जिन्हें
पहले निष्क्रिय या बेकार समझा जाता था। प्रोटीन संश्लेषण की प्रक्रिया से इनका सीधा नाता तो नहीं है परंतु इस
प्रक्रिया में ये
इधरउधर अपनी टाँग जरूर अड़ाते हैं। ये किसी भी जीन या जीन्स के
समूह या फिर क्रोमोज़ोम्स के किसी अंशविशेष को कभी भी सक्रिय अथवा
निष्क्रिय करने की क्षमता रखते हैं। इस प्रकार ये कोशिका के
प्रारंभिक विकास से ले कर समयसमय पर होने वाले
जीनअभिव्यक्ति की प्रक्रिया को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं।
वर्ष 2003 में इस संदर्भ में किए गए अनुसंधानों को
AAAS
ने
महत्वपूर्ण स्थान दिया है। भविष्य में इन छोटे आरएनएज़ की
जैवरसायनिक प्रक्रियायों मे हस्तक्षेप करने की क्षमता का उपयोग
एड्स तथा हिपेटाइटिस जैसे रोगों से लड़ने में किया जा सकता है।
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अकेले
अणुओं की पहचान और उनके कारनामों को समझनेबूझने की
कोशिश: तरल
पदार्थों में अकेले अणुओं की खोज और उनके पहचान की विधि 1976
में ही सामने आ गई थी। परंतु हाल के वर्षों में जीव
विज्ञानियों तथा भौतिक शास्त्रियों के साझा प्रयास का परिणाम है
कि अब हम कोशिकाओं में भी किसी अकेले अणुविशेष की न केवल
पहचान कर सकते है बल्कि उनकी गतिविधियों पर भी नज़र रख सकते हैं।
ऐसा लेज़र इंड्यूज्ड स्पेक्ट्रोस्कोपी
तथा मैग्नेटिक रिज़ोनेंस जैसी तकनीकि के उपयोग से ही
संभव हो पाया है।
जीव विज्ञान के क्षेत्र में इस तकनीकि के उपयोग की अपार संभावनाएँ
हैं। यथाकोशिकाओं में उपस्थित किसी भी पदार्थ की अति सूक्ष्म मात्रा
की खोज तथा उसके अणुओं की सुनिश्चित संख्या का ज्ञान,
रसायनिक प्रतिक्रियाओं के दौरान किसी भी अणु की संरचना में हो
रहे परिवर्तनों पर नज़र रखना या फिर डीएनए संश्लेषण अथवा उससे
भी जटिल एवं अति तीव्रगामी प्रक्रिया को सही परिपेक्ष्य समझने का
प्रयास आदि।
पिछले वर्ष के अनुसंधानों ने आणविक मोटर्स, सेल रिसेप्टर्स से
जोड़े गए रंगीन
नैनोक्रिस्टल टैग तथा डीएनए को पचाने वाले अकेले एंज़ाइम
जैसे अति सूक्ष्म अणुओं को देखने तथा इनकी क्रियाविधि को
समझने का अवसर प्रदान किया है।
AAAS
ने
इन प्रयासों को भी महत्वपूर्ण स्थान दिया है।
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विस्फोटित
होते तारों और गामा किरणों का रिश्तानाता: सुपरनोवा
की चर्चा इस लेख के प्रारंभ में भी की गई है। सुपरनोवा बड़े एवं
विशालकाय तारों के विस्फोट का परिणाम होते है। पूरे ब्रहमाण्ड में
गामा किरणों के विस्फोट को सबसे शक्तिशाली ऊर्जाविस्फोट के रूप
देखा जाता है। पिछले वर्ष खगोलशास्त्रियों ने चमकीले गामा
किरणों के विस्फोट की विभा में सुपरनोवा के अवशेषों की
दुविधारहित पहचान की है। इस अवलोकन ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि
गामा किरणों का विस्फोट तथा सुपरनोवा एकदूसरे से संबंधित हैं।
इस खोज को भी
AAAS
ने अन्य
खोजों के बराबर का महत्व दिया है। इस वर्ष के मध्य में
नासा द्वारा प्रक्षेपित किए जाने वाले स्विफ्ट सैटेलाइट से हमें इस
बारे में और भी स्पष्ट जानकारी मिलने की संभावना है।
इनके
अतिरिक्त निम्न खोजों को भी महत्वपूर्ण
खोजों की श्रेणी में रखा गया है
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किस्सा
स्टेम कोशिकाओं से अंडाणु की पैदाइश का: कुछ
समय पहले तक यह माना जाता रहा है कि उच्च श्रेणी के जीवों शुक्राणु
(sperm)
या
अंडज
(ovum)
जैसी कोशिकाओं का उत्पादन नर या मादा शरीर के प्रजनन अंगों
विषण
(testes) या
अंडाशय
(ovaries)
में
ही संभव है, क्यों कि इन्हीं अंगों में अर्धसूत्री कोशिका विभाजन
(meiosis)
की
व्यवस्था होती है। स्तनधारियों के भ्रूण से प्राप्त स्टेम कोशिओं को
कृत्रिम पोषण माध्यम में विशेष रसायनों की सहायता से
समसूत्रीय कोशिका विभाजन
(mitosis)
के
फलस्वरूप उत्पन्न होने वाले मांसपेशीय, स्नायुतंत्रीय आदि जैसे
कई प्रकार के ऊतकीय कोशिकाओं के उत्पादन में वैज्ञानिक पहले
ही सफलता प्राप्त कर चुके थे परंतु इन कोशिकाओं द्वारा अंडज या शुक्राणु जैसी युग्मज
(gametes)
के
उत्पादन के क्षेत्र मे कुछ समय पूर्व तक असफलता ही हाथ लग रही थी। अत:
वैज्ञानिकों का मानना था कि ऐसी अर्धसूत्री कोशिकाओं का विकास
शरीर के बाहर स्टेम कोशिकाओं द्वारा संभव नहीं है।
मई 2003 में पेंसिल्वेनिया युनिवर्सिटी के अनुसंधानकताओं
ने इस धारणा को गलत साबित कर दिया। इन लोगों ने चूहे की
भ्रूणीय स्टेम कोशिकाओं की काफी बड़ी संख्या को किसी पोषक कोशिका
अथवा वृद्धि कारक रसायन के
बिना ही पेट्रीडिश में रखा। लगभग 12 दिनों बाद ये कोशिकाएँ
छोटेछोटे समूहों में व्यवस्थित होने लगीं। थोड़े समय बाद ही
इन कोशिकाओं के समूह से अकेली कोशिकाएँ अलग होने लगीं। ये
अलग हुई विशेष कोशिकाएँ धीरेधीरे अपने चारों तरफ कोशिकाओं
की एक तह जमा करने लगी
(यह
प्रक्रिया कुछकुछ अंडाशय में डिंब उत्पादन के समय फॉल्किल निर्माण
के समान थी)।
छब्बीसवें
दिन अंडाशय में होने वाले अंडोत्सर्ग
(ovulation)
के समान इन कोशिकाओं के समूह से अंडक
(oocyte)
का
उत्पादन हुआ। आश्चर्य की बात तो यह थी कि लगभग छियालिस दिन बाद
बिना निषेचन
(fertilization) इनसे
भ्रूण का विकास भी प्रारंभ हो गया।
इन
खोजों के बल भविष्य में हम संभवत: अर्धसूत्रीय विभाजन तथा उससे
उत्पन्न होने वाले युग्मज कोशिकाओं से जुड़ी जटिलताओं को अच्छी तरह
समझ पाएँगे, साथ ही मानवभ्रूणीय स्टेम कोशिकाओं का कृत्रिम रूप
से उत्पादन भी कर पाएँगें।
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इंसान
तो इंसान उच्च तकनीकि से बनाए गए कुछ पदार्थ भी लबड़हत्थे होते हैं:
अब
तक तो यही सुना ओर देखा था कि कुछ इंसान बाएं हाथ से काम करने के
अभ्यस्त होते हैं अर्थात् लबड़हत्थे होते हैं। लेकिन नहीं, दो वर्षों
की बहस के बाद वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि उच्च तकनीकि
से निर्मित कुछ इलेक्ट्रोमैग्नेटिक मेटामैटिरियल, साधारण पदार्थों
के विपरीत, प्रकाश तथा अन्य इलेक्ट्रोमैग्नेटिक विकिरण को उल्टी दिशा
में मोड़ सकते हैं। वैज्ञानिक ऐसे पदार्थों का उपयोग
प्रतिलोम डॉप्लर प्रभाव
( inverse doppler’s effect)
के उत्पादन में कर रहे हैं तथा ऐसे पदार्थों का उपयोग कर बेहतर
गुणवता वाले लेंस का विकास करने में लगे हुए हैं।
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वाई
क्रोमोज़ोम और एकला चलो का नारा वाह रे मर्दानगी!: मर्दों
की तथाकथित मर्दानगी का अधिकतर दारोमदार इसी क्रोमोज़ोम पर होता
है। मर्द, मर्द इसी क्रोमोज़ोम के कारण रहता है। वर्ष 2003 में इस
क्रोमोज़ोम की जेनेटिक क्रमबद्धता के बाद यह रहस्य खुला कि इस क्रोमोज़ोम को आखिर साथी
क्रोमोज़ोम की आवश्यकता क्यों नहीं
होती है। वास्तव में इस क्रोमोज़ोम पर स्थित सभी जीन्स के प्रतिरूप
इसी क्रोमोज़ोम पर शीशे में दिखने वाले प्रतिबिंब के रूप में
उल्टेसीधे एक जैसे पढ़े जाने वाले शब्दों के समान व्यस्थित रहते
हैं। म्यूटेशन की स्थिति में म्यूटेटेड जीन की कॉपी
स्वत: तैयार रहती है; जब कि अन्य
क्रोमोज़ोम्स को म्यूटेटेड जीन की अभिव्यक्ति के लिए एक दूसरे
साथी क्रोमोज़ोम की आवश्यता पड़ती है।
ऐसी
तमाम सफलताओं के साथसाथ इन अनुसंधानों के परिणाम,
असफलताओं और कभीकभी तो भयानक हादसों के रूप में भी देखने को
मिलते हैं। स्पेस शटल कोलंबिया के साथ घटी दुर्घटना को आसानी
से नहीं भुलाया जा सकता। लेकिन इन असफलताओं से हम कुछ ज्यादा ही
सीखते हैं।
भविष्य
के गर्भ में क्या है यह तो कोई नहीं जानता, फिर भी 2004 की धमाकेदार
शुरूआत मंगल ग्रह पर स्पिरिट नामक रोवर अंतरिक्षयान भेजने तथा
वहाँ की धरती के चित्रों के संप्रेषण के रूप में हो चुकी है।.. . . .
.आगेआगे देखिए होता है क्या।
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