हिंदी भाषा का
महाकुंभ अर्थात आठवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन आज अपने पूरे क्लाईमैक्स पर आकर
'फिर मिलेंगे' हो गया। आज की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि निम्न
कार्यक्रमों को सबकी सम्मति प्राप्त हो गई है।
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हिंदी को संयुक्त
राष्ट्र संघ की भाषा के रूप में स्वीकृति प्राप्त करवा दी गई है। आने
वाले समय में राष्ट्र संघ के सभी कार्यक्रम हिंदी में हुआ करेंगे।
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संसार के
प्रत्येक विश्वविद्यालय में एक हिंदी अध्यापक की नियुक्ति की जाएगी।
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अमेरिका,
ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, रूस, तमिलनाडु तथा असम की सड़कों पर हिंदी में
मार्गदर्शन हेतु पट्टे लगाए जाएँगे।
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हिंदी के लेखकों
तथा कवियों को सरकार की तरफ के एक विशेष भत्ता दिया जाएगा तथा उनके
बच्चों को अनुसूचित जनजाति का आरक्षण भी दिया जाएगा।
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सभी स्कूलों में
दो घंटे हिंदी घंटों के रूप में मनाए जाएँगे। यदि इनमें कोई बच्चा दूसरी
भाषा बोलता पकड़ा गया तो उसके माता पिता को जयशंकर प्रसाद की महान रचना
कामायनी याद करके प्रधानाचार्य को सुनानी पड़ेगी। (देवनागरी लिपि में
लिखे उर्दू के शब्दों को दूसरी भाषा नहीं माना जाएगा।)
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प्रत्येक हिंदी
फिल्म को अब अपना कम से कम एक गाना किसी नए कवि से लिखवाना होगा। ऐसा न
करने पर वह फिल्म बैन कर दी जाएगी।
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अच्छी हिंदी में
बात करने वाले लोगों को सरकारी नौकरियों में जल्दी प्रमोशन दिया जाएगा
तथा निजी कंपनियों में भी इस प्रकार की सुविधा लाने के प्रयास किए
जाएँगे।
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राष्ट्र गीत की
ही भांति एक राष्ट्रभाषा गीत भी चुना जाएगा, जिसके बजने पर सबको खड़ा
होकर सम्मान प्रगट करना पड़ेगा। जिस कवि की रचना इस गीत के रूप में चुनी
जाएगी उसे भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किया जाएगा।
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नगर नगर में कवि
सम्मेलन आयोजित किए जाएँगे तथा इनके आयोजन पर होने वाले खर्चे को आयकर
मुक्त कर दिया जाएगा। कवि का मानदेय, आयकर मुक्त रहेगा।
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हिंदी नाटकों को
बढ़ावा देने के लिए हर सिनेमा हाल में पिक्चर शुरू होने से पहले आधे घंटे
का हिंदी नाटक खेला जाएगा तथा टिकट का 25 प्रतिशत पैसा नाटक मंडली को
दिया जाएगा।
समापन सत्र में
भाषणों और स्वागतों का ऐसा बोलबाला हुआ कि एक पल को तो लगा मानो अपनी धरती
पर इतने स्वागत देखने के बाद न्यूयार्क को आने वाले कई वर्षों तक किसी का
स्वागत करने की आवश्यकता नहीं रह जाएगी। सुनने में यह भी आया है कि इस
कार्यक्रम के बाद न्यूयार्क का नाम बदल कर नवीन नगर रखने का प्रस्ताव
अमेरिकी संसद में पेश किया जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति यूँ तो सुरक्षा
कारणों से कार्यक्रम में नहीं आ पाए थे, पर उन्होंने अपने भिजवाए हुए संदेश
में भारत से पधारे सभी गणमान्य लोगों की वंदना करते हुए कहा कि "अभी टुम
लोग आया, हमको अच्छा लगा। अबी अम भी हिंदी बोलटा। जय हिन्द जय हिंदी।"
साहित्य में अनुवाद
की भूमिका पर बड़ा गहन चिंतन हुआ। हमारे देबाशीष दादा सुनिए क्या कह रहे
हैं,
"उड़ी बाबा, क्या बोलेगा, सौब कुछ तो पोहिले ही बोला जा चुका हाय। आमार
गुरुदेव भीषोन सुंदर कोबिता लिखा, जोदि ओनुभाद नई होता तो कोइसे सोबको पोता
चोलता। तूम भी शुनो, जोदी तोर डाक शुने क्यो नाय आ शे तोबे एकला चौलो रे।"
एक महापुरुष ने यह विचार रखे कि, " अम क्या बोलेगा जी, ये बच्चा लोग हिंदी
पढ़ेगा तो अच्छा आदमी बनेगा और अँग्रेज़ी पढ़ेगा तो नौकरी पाएगा। नौकरी
मिलने पर तो हर कोई अच्छा लगने लगता है आजकल।"
देवनागरी सत्र में यह सुनने को मिला की,
"दिस देवनागरी लिपी इस एक्चुअली वेरी कूल,
सी दिस इज अ, ऐड ए लाईन एण्ड नाओ दिस इज आ। यू सी ला साउन्ड इन लाईन इज़
मेकिंग अ टु आ।
लुक ऐट दिस, दिस इज़ इ, ऐंड ए सी एट द टाप एण्ड नाओ दिस इज ई। सी साउन्ड इन
सी इज़ मेकिंग इ टु ई।
आल्सो, लुक ऐट दिस, दिस इज़ उ, ऐड ए यू इन बिटवीन एण्ड नाओ दिस इज ऊ। ऊ
साउन्ड इन यू इज़ मेकिंग उ टु ऊ।
मोर कूल स्टफ, आहा इस ए कैरेक्टर आफ देवनागरी, इटस रिटैन एज़ अः। इज़न्ट इट
कूल ड्यूड। यू मस्ट लर्न देवनागरी स्क्रिप्ट।"
ये जो ढाई घंटे का
समापन सत्र था इसको थोड़ा कम करके पुराने हिंदी फ़िल्मी गानों का एक आइटम
रखा जा सकता था। पर अब जब पूरी तीन दिवसीय फिल्म देखी थी तो सबके नाम तो
देखने ही थे ना। धन्यवाद ज्ञापन देते हुए कहा गया कि, "क्या मामू, मजाक
मजाक में काफी बढ़िया कार्यक्रम हो गया। तीन दिन से इतना सही सही भाषण उषण
सुना, इतना बड़ा लोग आ आके बोला अइसा करने का, अइसा होने का। ये सब काएके
वास्ते तुम लोगों को धन्य करने के वास्ते। अभी सब लोग धन्य हो गए ना, चलो
अब जाओ बाद में आना।"
सत्य तथ्य
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अशोक चक्रधर एवं
उनकी टीम ने सम्मेलन समाचार बनाने में बड़ी मेहनत की (तथा लोगों के ताने
भी सुने)। आप समाचार सम्मेलन की साइट पर देख सकते हैं।
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काफी लोगों को आज
ही पता चला कि प्रदर्शनी में लगी पुस्तकें बिकने के लिए हैं। जब वाणी
प्रकाशन के श्री अरुण महेश्वरी किताबें समेट रहे थे तभी कुछ लोग उनसे
पुस्तकें ख़रीदते हुए पाए गए। वे सभी यह कह रहे थे कि उन्हें आज ही पता
चला कि ये खरीदी जा सकती हैं।
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शाम को सभागार के
प्रांगण में रेणु राजवंशी गुप्त जी के संचालन तथा प्रख्यात लेखिका
सूर्यबाला की अध्यक्षता में एक अति सुंदर काव्य गोष्ठी आयोजित की गई।
इसमें लगभग २५ कवियों ने अपनी रचनाएँ सुनाईं।
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पंकज उधास ग़ज़ल
से अच्छे गीत गाते हैं परंतु उन्होंने अपने कार्यक्रम में अधिकतर ग़ज़लें
ही सुनाईं जिससे कुछ श्रोता कुछ रुष्ट हुए।
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सम्मेलन के बाद
रेडियो सलाम नमस्ते पर एक छोटा सा लाईव कवि सम्मेलन हुआ जिसमें सात
कवियों ने अपनी रचनाएँ पढ़ीं।
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सम्मेलन के दोने
सत्रों में कुछ झगड़े हुए।
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एक चंचल साहब
बोले उर्दू हिंदी की माँ है, पंकज उधास बोले कि हिंदी उर्दू की माँ है,
डा कुमार ने कहा कि हिंदी और उर्दू बहने हैं। (इस जटिल प्रश्न को सुलझाने
के लिए अगला सम्मेलन मिलकर मनाने पर भी विचार किया गया।)
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प्रतिभागियों और
आयोजकों में से किसी ने भी बिछड़ते समय कोई भावुकता नहीं दिखाई।
नोटः इस रिपोर्टिंग
शृंखला की यह अंतिम रिपोर्ट है। इस खोजी पत्रकारिता के लिए हम पर मानहानि
के दावे ठोंक दिए गए हैं, अतः सबसे अनुरोध है कि वे अपने आसपास वालों को
यह रिपोर्टस दिखाए तथा उनसे पूछे कि क्या इसमें मानहानि लायक कुछ है।