२२ जुलाई १९६९ की शाम चित्रा
ने ताहिरा और करन के लिए एक दावत रखी थी। रसल स्क्वेयर के
इंस्टीट्यूट आफ कामनवेल्थ स्टडीज से हैडन सैंट्रल वापिस
आने में करन को कुछ देर हो गई थी। घर पहुँचा तो ताहिरा
खिड़की से झाँकती मिली। पूरा दिन उसने कई जोड़े उतारे पहने
थे। उसका जी चाहता था कि वह ऊदे रंग का शरारा–कुरती पहने
ताकि जाहिदा खाला के हाथ का बना महीन कढ़ाई वाला भारी
दुपट्टा ओढ़ सके। लेकिन करन कह गया था कि अंडरग्राउंड में
जाना है, इसलिए गरारा या शरारा पहन कर सीढ़ियाँ उतरना चढ़ना
मुश्किल होगा।
काशनी चूड़ीदार कुरते के साथ मुकैश लगा दुपट्टा पहन जब
ताहिरा करन के साथ घर की सीढ़ियों से उतरी तो बुढ़ऊ मकान
मालिक दरवाज़े के साथ ही जुड़ कर खड़ा था।
"खूबसूरत, बहुत ही खूबसूरत।" उसने अपनी दो सूखी सी
उँगलियों से अपने होंठ चूम कर कहा, "लेकिन नहाते वक्त इतनी
देर तक गरम पानी मत चलाया करो, मेरा खर्चा बढ़ जाता है।"
ताहिरा को लगा जैसे उसके खूबसूरत लिबास के नीचे एक गीला
तौलिया उसे लपेट में लिए है जिसे जितना भी निचोड़ लो, उसकी
गीलाहट नहीं जाती। तौलिया सूखे तब न जब उसे कहीं खुली हवा
या धूप में फैलाया जाये लेकिन यह तौलिया तो धोने के बाद भी
साफ नहीं होता था। बस हर रोज इस्तेमाल के बाद और गीला होकर
चिपट ही जाता था।
हैडन सैंट्रल की उबड़ खाबड़ गोरों की गली के दोनों तरफ
बिल्कुल एक जैसे एक दूसरे से सटे हुए गिरते ढहते से दिखाई
देने वाले मकानों में रहनेवाले भी ढीले ढाले थे। ताहिरा जब
कभी सौदा सुल्फ लेने अकेले गली में उतरती, तो उसे नुक्कड़
तक पहुँच कर ही साँस में साँस आती। "यू स्टिंकिंग पाकीज",
कह कर एक बार किसी फटे हुए कोट और पजामानुमा पैंट वाले
बुढ्ढ़े ने उस पर थूक दिया था। तभी से वह गली में अकेले आने
से कतराती थी।
आज भी करन की कुहनी थामे गली से निकल जाने की उसे बहुत
जल्दी थी। लेकिन चित्रा के घर पहुँचने में ताहिरा और करन
को करीबन दो घंटे लग गये। हैडन सैंट्रल से कैसिंगहन
स्ट्रीट का पूरा रास्ता अंडरग्राउंड़ में पैंतीस–चालीस मिनट
का था। ताहिरा चारिंग क्रॉस पर ही उतर कर विंडोशापिंग में
ऐसी लगी कि चलती कम और रुकती ज़्यादा। रीजंट स्ट्रीट,
ब्रांड स्ट्रीट, आक्सफ़ोर्ड स्ट्रीट की साफ सुथरी बंद
दुकानों की सजी धजी विंडोज। न कीमत पूछने की जरूरत, न दाम
चुकाने की कैफयत का एहसास। मन ही मन उसने बहुत सा सामान
खरीदा और बड़े सलीके से एक खूबसूरत सा घर सजा लिया। एक ऐसा
घर जिसमें वह जितनी देर चाहे नहा सकती थी। जहाँ कई
खिड़कियाँ थीं, दरवाज़े थे और जिसके फर्श पर कोई फटी हुई दरी
नहीं थी। बांड स्ट्रीट की एक शो विंडो में सजाये फर्नीचर
को उसने एक इरानी कालीन के आस पास रखना शुरू ही किया था कि
करन ने उसे एक हल्का सा धक्का देकर कहा,
"तुम्हारे चलनें की रफतार अगर यही रही तो दुनिया का पहला
आदमी चाँद पर पहले उतरेगा और हम चित्रा के घर बाद में
पहुँचेंगे।"
"आदमी को चाँद पर तो गई रात ढले उतरना है ना, अभी तो सात
भी नहीं बजे।" ताहिरा ने एक बार फिर दामास्क के हलके
तरबूजी रंग के गद्दों वाले सोफ़े को हसरत भरी नजरों से
देखा।
"चित्रा बड़ी स्मार्ट लड़की है ताहिरा। हमें शादी की मुबारक
देने के लिए उसने आज का ही दिन चुना, यह महज इत्तफ़ाक नहीं
है। तुम देखना, इस एक बनाए गए इत्तफ़ाक से और कितने इत्तफ़ाक
निकल आयेंगे।"
"जैसे?" ताहिरा की नजरें अब शो विंड़ो से टंगे एक भूरे
बादामी लेडीज कोट पर थी।
"जैसे कि डेविड हमारी शादी की मुबारक का जाम उठाते हुए
कहेगा, "अगर इन्सान चाँद पर उतर के वहाँ चहल कदमी कर सकता
है, और एक काश्मीरी ब्राह्मण नौजवान एक पाकिस्तानी मुस्लिम
लड़की से शादी कर सकता है, तो दुनिया में क्या नहीं हो
सकता? अब तो हम यह उम्मीद भी कर सकते हैं कि वह दिन दूर
नहीं जब भारत और पाकिस्तान अपने आपसी भेद–भाव भुला कर तमाम
दक्षिण एशिया की माली हालत सुधारने में साँझी जिम्मेदारी
सँभाल लेंगे। "
ताहिरा ने शो विंडो से अपनी नजरें हटा ली। हल्की सी ताली
बजाई और पूछा,
"यह तुम हमारे लिए दी जाने वाली दावत की बात कर रहे हो या
फ़ेलोशिप खत्म होने पर किसी और ग्रांट के लिए अप्लाय करने
का मजमून ढूँढ रहे हो।"
"मुझे डेविड की तरह किताबें लिखने पढ़ने का कोई शौक नहीं।"
"तो यहाँ क्यों आए थे?"
"इत्तफ़ाक से मौका मिला, आ गया वरना पापा जी के साथ
काश्मीरी कालीन बेचता रहता।"
ताहिरा अब फिर रुक गई थी। औरतों के अंडरगार्मेंटस की एक
बड़ी दुकान की शो विंडो के सामने। शीशे की बड़ी सी खिड़की में
लेस और सिल्क की ब्रा और पैंटीज के बीच एक छोटे से
कार्डबोर्ड के फट्टे पर काले रिबन से लिखा था "सेल्सगर्ल
वान्टेड, फलेक्सिबल आवर्स।"
"देखो करन, लगता है मुझे भी इत्तफ़ाक से मौका मिल सकता है,
मैं अप्लाय कर दूँ?"
"जी नहीं।"
"लेकिन क्यों?"
"इस बात पर जिरह करनें का यह कोई वक्त है क्या?" करन की
आवाज में हल्की सी तल्ख़ी थी। "हमें पहले ही काफ़ी देर हो
चुकी है।" फिर उसने जो ताहिरा का हाथ पकड़ कर चलना शुरू
किया तो कैंसिगटन स्ट्रीट पहुँच कर ही रुका।
••••
चौड़े सलेटी पत्थरों की शानदार तिमंजली इमारत। हर मंजिल पर
फर्श से उठ कर छत को छूती साफ सुथरे काँच की खिड़कियाँ,
खिड़कियों के आगे चमकते हुए काले रेलिंग वाली बालकनियों में
सजे बड़े बड़े गमलों से ऊँचे उठते हरे कचूच पौधे। पौधों से
परे खिड़कियों के पार बादामी झालर वाले महीन परदों की
अधखुली भीतों से झाँकते कंदील। पूरी इमारत में जाने के लिए
एक मजबूत महागनी की चमचमाती लकड़ी का लंबा चौड़ा दरवाजा।
दरवाज़े के दायीं तरफ दीवार पर औंधाए गमले जैसे शेड से ढँके
दूधिया बल्ब की रोशनी में चमचम करती पीतल से लिखी
रहनेवालों के नाम की फहरिस्त। ताहिरा ने फहरिस्त पढ़नी शुरू
ही की थी कि करन ने सिर हिलाकर टोक दिया।
"हमें बेसमेंट में जाना है।"
बेसमेंट का दरवाजा डेविड ने खोला, अदब से ताहिरा की कोहनी
थामी और एक हल्की सी सीटी बजाकर चुपचाप खड़ा हो गया। कमरे
में जमी भीड़ से उठती आवाज़ें एकदम खामोश हो गई।
"लीजिए साहिबान, दुल्हन आ गयी। " डेविड ने कहा।
तालियों की बौछार हुई, और यकलख्त ताहिरा के जिस्म से लिपटा
गीला तौलिया कहीं गायब हो गया। फर्श को छूते अपने मुकैश
वाले दुपट्टे का पल्ला सँभालती वह करन के बाजू से घिरी
दूधिया बल्बों की गुदगुदी रोशनी में नहा गई। एक के बाद एक
नया अजनबी चेहरा, हर जुबान से नये अंदाज में मुबारकबादी,
हर मिलने वाले हाथ में गरमजोशी, हर उठती हुई नजर में कहीं
अनकही खुशामदीद।
"दुल्हनें तो सभी खूबसूरत होती हैं लेकिन इस दुल्हन की
खूबसूरती? बिलकुल बेमिसाल है।" कहने वाले ने अपना नाम
ह्यूम मोस्ले बताया। ताहिरा के साथ खड़े करन का चेहरा खिल
उठा।
"आप आज यहाँ आने का वक्त निकाल पाये, सर, यह हमारे लिये
बहुत बड़ी बात है। हम दोनों आपके बेहद मशकूर हैं।" करन बोला
और फिर ताहिरा की तरफ देखकर कहा उसने जैसे कोई ताजा जीती
ट्राफ़ी दिखा रहा हो।
"प्रोफ़ेसर मोस्ले इंस्टीट्यूट आफ कॉमनवेल्थ स्टडिज के
डायरेक्टर हैं।"
ट्वीड का कोट ओर डार्क ग्रे पैंट के साथ हल्की स्लेटी कमीज
और बरगंडी स्कार्फ पहने एक बरौब अजनबी अब ताहिरा से मिलने
के लिए हाथ बढ़ाए खड़ा था।
डेवड ने परिचय कराया।
"डा॰रिचर्ड टेलर आर्ट हिस्टरी डिपार्टमेन्ट के हेड हैं।
चित्रा इनके डिपार्टमेन्ट की स्नातक है।"
गरमजोशी से हाथ मिलाकर डा॰टेलर ने एक बाँह फैलायी और बिना
छुऐ ताहिरा के कंधों को घेरे में ले लिया। फिर वैसे ही
थामे पास की दीवार पर लगी एक ब्लैक अैंड व्हाइट तस्वीर
दिखा कर बोले,
"मुझे पूरा यकीन है कि आज से पचास साल बाद भी आप और आपके
पति साथ साथ इतने ही खुश होंगे जितने आप दोनों आज हैं।"
तस्वीर में एक जोड़े की पीठ थी। बाहें एक दूसरे की कमर में,
सर एकदूसरे की तरफ झुकते हुए। गरम कोटों मे से झुके हुए
काँधे, बालों की सफ़ेदी और हाथों की उभरी नसें सभी उनकी
उम्र का अहसास दिला रही थीं। किसी पुल पर एक लैम्पपोस्ट के
पास खड़े उनके न दिखने वाले चेहरे शाम के धुँधलके का नकाब
ओढ़े थे।
"तुम इस जोड़ी को जानते हो क्या?" डॉ टेलर ने डेविड से
पूछा,
"नहीं गर्मियों की छुट्टियों में चित्रा और मैं रोम गये
थे, वहीं पर चित्रा ने इन दोनों को पुल पर ऐसा खड़ा देख कर
यह तस्वीर ली थी, इनको बिना बताये। इनको एक कॉपी भेजने की
इजाजत भी फ़ोटो लेने के बाद ही ली।"
"बहुत यादगार लम्हा कैमरे में उतारा है चित्रा ने। किसी
आर्ट स्टूडेंट को कहना चाहिये कि वह फ़ोटोग्राफ़ी, एचिंग और
आर्किटेक्चर के आपसी प्रभाव पर योरोपीय और एशियाई संदर्भ
में कुछ और रिसर्च करे। तुम्हारा क्या ख्याल है डेविड?
मुझे तो अब तक लगता है कि यूरोप और एशिया की परम्पराएँ
उनके इतिहास से कम और भूगोल से ज्यादा प्रभावित है।"
खामोश खड़ी ताहिरा से अब एक और अजनबी हाथ मिला रहा था।
"मिसेस जुत्शी, मैं आज शाम की खास मेहमान से जल्दी जाने की
इजाजत चाहूँगा। मुझे घर पहुँचने के लिये अभी मीलों का
फ़ासला तय करना है। इन्सान को चांद पर पहला कदम रखते हुए
देखने के लिए, मेरा परिवार मेरे साथ होगा।"
डेविड जाने वाले को दरवाजे तक छोड़ने गया, करन ने ताहिरा से
कहा,
"वो डा॰टामसपेलिंग थे, स्कूल ऑफ ओरियंटल एैंड अफ़ीकन स्टडीज
में साउथ ऐशिया प्रोग्राम के डाइरेक्टर है, डेविड के बॉस
हैं।"
"तुम जानते हो अभी जाने से पहले टॉमस मुझे क्या कह कर गया
है?" डेविड कह रहा था, "वह चाहता है कि किसी स्टूडेंट से
कह कर कैम्पस जर्नल के आने वाले इश्यू में तुम दोनों को
लेकर एक लेख छपाया जाये।"
करन को बड़े नाटकीय आवाज में अपनी टाई ठीक करते हुए देख कर
डेविड मुस्करा दिया।
"अरे हाँ टॉमस यह भी कह रहा था कि तुम दोनों की जोड़ी इतनी
खूबसूरत है कि कैमरा तो तुम्हें तलाश करेगा ही, देखने वाले
भी एकबार देख लेंगे तो पूरा लेख पढ़ ही डालेंगे।"
करन और ताहिरा की शादी को लेकर रसल स्क्वेयर के हरे भरे
अहाते में काफ़ी चर्चा थी।
इन्स्टीट्यूट आफ कामन वेल्थ स्टड़ीज और स्कूल आफ ओरियंटल
ऐंड अफ़ीकन स्टड़ीज में अन्तर–जातीय, अन्तर–मजहबी या
अन्तर–देशीय शादी होना कोई बड़ी बात नहीं थी। अन्तरदेशीय
माहौल में रहकर ही तो इंसान मजहब, जाति और राष्ट्रीयता के
संकुचित दायरों से उपर उठता है न इसीलिए तो कई कई परोपकारी
दूर दूर से बिछड़े हुए देशों के स्नातकों को वज़ीफ़े देकर
बाहर की दुनिया में पढ़ने–लिखने का मौका देते हैं। लेकिन
करन तो ताहिरा से शादी करने के बाद ही लंदन आया था, और वह
भी पहली बार। जम्मू कश्मीर युनिवर्सिटी से सेकन्ड डिवीजन
में एम ए किया था उसने और ताहिरा लाहौर के किसी प्राइवेट
कालिज में पढ़कर बी ए हुई थी।
स्कूल आफ ओरियंटल ऐंड अफ़ीकन स्टड़ीज में हिस्टरी आफ आर्ट की
छात्रा चित्रा की एक सहपाठिन ने पूछा कि क्या वह ताहिरा और
करन को जानती है।
"मेरे दादा ताहिरा के पिता थे।" चित्रा ने ऐसे सहज कहा
जैसे कि "कुनबे के दरख्त" की किसी टहनी पर हाथ रख दिया हो।
बस फिर तो उत्सुक स्नातकों का ताँता सा लग गया चित्रा के
आस पास।
"तुम्हारे दादा मुस्लिम थे क्या?"
"करन तो ऊँची जाती का हिंदू है ना? ब्राह्मण है?"
"एक भारतीय और एक पाकिस्तानी में शादी होना तो बड़ी सनसनी
वाली वारदात रही होगी?"
"तुम्हारे यहाँ तो शादियाँ अरेंज होती है, इनका प्रेम
विवाह हुआ होगा। मिले कहाँ होंगे यह दोनों? काश्मीर में
मिले हो, ऐसा मुमकिन तो नहीं लगता।"
फतरतन कम बोलने वाली चित्रा ने डेविड को बताया,
"करन और ताहिरा के बारे में बातें करना मुझे अजीब सा लगता
है। पता नहीं वह दोनों खुद पब्लिक में क्या कहना चाहते
हैं?"
"तुम उन दोनो के लिये एक दावत दे सकती हो। कैम्पस वाले इस
जोड़ी से एक बार खुद मिल लेंगे तो शायद एक दूसरे के आदी भी
हो जायेंगे।" डेविड ने सलाह दी।
चित्रा ने करन से पूछा,
"तुम किस किसको न्योता देना चाहोगे?"
करन ने कुछ सीनियर फैकल्टी मेम्बरज के नाम गिना दिए
जिन्हें वह एकाध बार मिल चुका था और जो शायद उसका नाम उसके
चेहरे से जोड़ सकते थे। स्नातकों की फहरिस्त चित्रा और
डेविड पर छोड़ दी।
रसल स्क्वेयर का अहाता लंदन के बीचो बीच पड़ता है।
इंस्टीट्यूट ऑफ कामनवेल्थ स्टडीज और स्कूल आफ ओरियंटल ऐंड
अफ़ीकन स्टडीज जैसी दो नामवर संस्थाएँ इसी अहाते में एक
दूसरे से कुछ ही कदमों की दूरी पर हैं। वहां के सीनियर
फैकल्टी मेम्बर्स इंग्लैंड में ही नहीं, दूसरे मुल्कों में
भी आला तालीम, व्यापारी और सियासती मामलों में सलाह करते
हैं, देते हैं। न जाने कौन, कब, किसकी नजर में पड़ जाये?
कहाँ से कहाँ पहुँच जाये? वैसे भी करन यही मान कर चलता था
कि अंग्रेज़ों ने ऐसा एम्पायर तो जरूर बनाया था जहाँ सूरज
कभी डूबता नहीं, लेकिन जब वो टूट कर बिखरा तो काफ़ी मेस हो
गई। उसे संभालने के लिए कुछ तो इमदाद चाहिए थी। वह तैयार
था, बस बात उस पर किसी की नजर पड़ने की थी।
"नीली छतरीवाला अगर अंग्रेज है तो उपर से नीचे देखने वक्त
मैं उसे एक बार बस दिखाई दे जाऊँ, बाकी मैं खुद सँभाल
लूँगा।" उसने चित्रा से कहा, "फिर तुम्हारी पार्टी में तो
ताहिरा भी मेरे साथ होगी। उसे देख कर नजर फेर लेना मुमकिन
ही नहीं।"
सीनियर फैकल्टी मेम्बर्स जब तक पार्टी में रुके, बाकी
मेहमान उन्हीं को घेरे रहे, उनके जाते ही पूरी पार्टी का
नक्शा बदल गया। छोटी छोटी टोलियाँ बनीं और यहाँ वहाँ बिखर
गई। कैंट, मार्लबरो और रॉथमैन सिगरेटों से उठते धुएँ की
अलग–अलग महक कई–कई आवाज़ों से उठता बे–अल्फ़ाज शोर। खाली
गिलासों को भरने के लिए कोने में रखी ड्रिंक्स की ट्रे की
तरफ बढ़ते और वहाँ से लौटते कदमों की चहल पहल। करीनेवार
बेतरतीबी का जीता जागता मेला। मेले में करन ताहिरा से कब
जुदा हुआ, उसे पता नहीं चला।
दीवार से सटी बुक शेल्फ के पास खड़ी ताहिरा का जी चाहा कि
वह एक नहीं, छः सात हो जाये। हर टोली में एक साथ शामिल हो,
हर उठते हुए ठहाके पर खिलखिला के हँसे, और फिर किसी जादुई
पिटारी में ताजा धुएँ की महक, उठती आवाजों का शोर, चलते
फिरते कदमों की आहट को कैद कर ले। पिटारी इतनी छोटी हो कि
आज तो उसके पर्स में आसानी से पूरी आ जाए। लेकिन हैडन
सैंट्रल पहुँचनेपर फैल कर वो सारा कमरा भर दे जहाँ वह करन
के जाने और लौटने के बीच बिल्कुल अकेली होती है। उस कमरे
में न टी वी था, न रेडिओ न टेपरिकार्डर। उस कमरे की घड़ी भी
टिक टिक नहीं करती थी। सड़क की तरफ खुलती एक खिड़की थी,
गुसलखाने की तरफ जाते हुए गलियारे में एक दरवाजा। पचासी
साल की स्पिंस्टर बहिन के मरने पर अस्सी साल के बिली को
हैंडन सेन्ट्रल का मकान इकलौते वारिस की हैसियत से मुफ़्त
मिला था। पिछले दस सालों में दो बीवियों को दफ़्न कर चुका
था। अब एक बयासी साल की बेवा के चक्कर लगा रहता था। दो
कमरों वाले मकान का एक कमरा किराये पर चढ़ा दिया था करन को।
पूरे लंदन में करन को वहीं क्यों रहना पसंद आया, यह उसने
ताहिरा को नहीं बताया। बस इतना ही कह दिया बिना ताहिरा के
पूछे,
"थोड़ी सी परेशानी बर्दाश्त कर लो भाई। हाथ खुलते ही निकल
जायेंगे यहाँ से।"
ताहिरा के कंधे पर एक मुलायम हाथ आ कर टिक गया।
"क्यों ताहिरा? यह फैसला नहीं कर पा रही हो कि किस खुशनसीब
टोली में जाकर शामिल होना है आज?" चित्रा पूछ रही थी।
डेविड उसके पास खड़ा था।
खुलते हुए गेहुए रंग और जहीन चेहरे वाली कली सी नाजुक
चित्रा। मँझले कद का दुबला पतला लंबे भूरे बालों वाल
डेविड। चित्रा अपने पाँव के नीचे आता एक कुशन उठाने को
झुकी तो डेविड ने उसके माथे पर गिरते बालों की लट पीछे
सरका दी। चित्रा ने हाथ बढ़ा कर ड्रिंक ट्रे से एक गिलास
उठाया तो डेविड ने बोतल पकड़ कर उँड़ेलना शुरू कर दिया।
गिलास उसके हाथों से लेकर पहले उसी के ओठों तक ले गया और
उसके घूँट भरते ही खुद भी उसी गिलास से सिप करने लगा। अब
चित्रा डेविड की बाँह के घेरे में थी और वह अपने ओठ उसके
माथे पर रख कर लंबी साँस ले रहा था।
"हम यहीं अपनी एक छोटी सी टोली क्यों ना बना ले? कम से कम
थोड़ी देर के लिये, सिर्फ हम तीनों?" डेविड ने कहा।
उसके खुले बालों में अँगुलियाँ घुमाती चित्रा हँस दी।
"मुझे लगता है कि डेविड को अपने बालों की पोनी टेल बाँधनी
चाहिये। मुझसे कहीं घने बाल हैं इसके। तुम्हारा क्या ख्याल
है ताहिरा?"
ताहिरा का मन अचानक करन से बिल्कुल सट कर बैठने को हुआ।
उसने चारों तरफ नजर दौड़ाई।
"करन को देख रही हो न? वहाँ सोफ़े पर है।"
ताहिरा को अपनी तरफ आते देखकर करन के साथ सोफ़े पर बैठे
दोनों अजनबी उठ खड़े हुए। करन ने दोनों को वापस बिठा दिया
फिर अपनी जगह पर ताहिरा को बिठा, खुद उसके पास सोफ़े के
बाजू पर बैठ गया।
"यह असलमबेग है, कराची से, और यह अयूमा ओवुली है नैरोबी
से।" उसने परिचय कराया। "दोनों मेरी तरह इंस्टीट्यूट में
फेलोज हैं।"
असलम नें ताहिरा को अपनी बातचीत में शामिल करते हुए कहा,
"हम लोग पीने वालों की जमातें बना रहे थे। एक वो जो बोतल
देखकर कहते हैं : आज तू नहीं या मैं नहीं, दूसरे वो जो
पीते कम और झूमते ज्यादा हैं।" वह रुका, भरपूर नजरों से
पहले ताहिरा और फिर सामने से आती हुई चित्रा को देखा। फिर
आह भर कर बोला,
"तीसरे वो जिन्हें अच्छी सूरत देखकर बिना पिये ही नशा हो
जाता है।"
डेविड भी अब तक आ गया था और चित्रा के कंधे तक कटे बालों
से छेड़खानी कर रहा था। चित्रा ने असलम की कही बात का
तर्जुमा किया तो हँस कर बोला,
"अगर तुम चित्रा को निहारने से एक आध मिनट की फ़ुरसत ले सको
असलम, तो मैं पूछना चाहता हूँ कि तुम्हारे लिये क्या ला
सकता हूँ? मेरा मतलब है कि तुम्हारे पीने के लिये।"
असलम न मुस्कुराया, न कुछ बोला। जब डेविड ड्रिंक्स ट्रे की
तरफ जाने को मुड़ा तो असलम ने उसे रोक लिया।
"एक बात बताओगे डेविड? ऐसा क्या है तुम गोरे आदमियों के
पास कि हमारे यहाँ की आला उमदा लड़कियों को तुम फाँस लेते
हो और हमारे हिस्से आती हैं तुम्हारी बेचारी तलछट। दफ्तरों
में टाइप करने वालियाँ, डाकघरों के खतों को मोहरें लगाने
वालियाँ, बसों और गाड़ियों के टिकट बेचने वालियाँ?"
ताहिरा ने असलम की तरफ देखा। वो न तो पी रहा था न ही उसकी
आँखों में कोई हँसी मजाक की हल्की सी छाँव थी।
करन ने बात का रुख मोड़ा।
"यह सारा कुसूर मेरा है। न मैं ताहिरा को चित्रा समझता, न
चित्रा डेविड से मिलती। मैं तो अपनी खूबसूरत बीवी को आज भी
सेल्सगर्ल होते होते बचा लाया हूँ। क्या पता कौन खरीददार
कभी दुकान की रसीद के साथ बेचनेवाली को भी बतौर तोहफ़ा पैक
करवा लेनेकी ज़िद पकड़ ले।"
इस से पहले कि चित्रा करन की बात का तर्जुमा करे, असलम करन
की तरफ देखकर बोला।
"तुम हिंदुओं की हीपोक्रसी का तो जवाब ही नहीं। यहाँ आते
ही स्कर्ट पहनी हुई हर चीज के साथ लिपट जाने और जहाँ तहाँ
जायका बदलने में तुम्हें कोई परहेज नहीं रहता। फिर वहाँ जा
कर कुँवारी दुल्हनें ले आते हो जो तुम्हारे अलावा किसी को
देख भी ले तो उनकी शामत।" न उसकी आवाज में कोई चुहल थी, न
चेहरे पर कोई मुस्कराहट।
"अब बस भी करो असलम।" अभी तक खामोश बैठे अयुमा आवुलो ने
ट्रूस की माँग करता हुआ हाथ उठा दिया। "तुम भी कैसा
हरामीपना दिखाने पर उतर आये हो।"
अब असलम उठ कर खड़ा हो गया। अयूमा ओवुली के कंधों पर उसने
दोनों हाथ रख दिये और मुस्करा कर कहा,
"तुम्हारी बात तो मैंने सुन ली, मेरे साँवले सलोने दोस्त,
लेकिन अगर किसी गोरे हरामी ने मुझे माँ की गाली दी होती तो
यकीनन उसी की माँ को ही खराब कर के उसकी बात रख लेता।"
ताहिरा ने डेविड को देखा। उसके चेहरे पर न गुस्सा था, न
परेशानी। पास खड़ी चित्रा को देख उसका हाथ अपने हाथ में
लेकर बड़े इत्मीनान से डेविड ने पूछा, "चल के देखें कि पॉट
रोस्ट तैयार हो गया या नहीं? पक जाने की खुशबू तो आ रही
है।"
जैसे किसी ने कुछ कहा ही नहीं, जैसे किसी ने कुछ सुना ही
नहीं।
अपोलो ११ की चाँद के धरातल पर पहुँचती तस्वीर ज्योंही टी
वी पर उभरी, डेविड ने एक एक करके कमरे के सारे लैंप बुझा
दिये। उस घुप्प अँधेरे में पूरा कमरा भी आसमान हो गया। फिर
जो बत्ती जलाई तो कमरे की छत पर छोटे छोटे टिमटिम करते
नीले बल्बों का चंदोवा था, हल्के स्लेटी रंग की दीवारों पर
टंगे छोटे बड़े कई पोस्टर धुँधले बादलों की टुकड़ियाँ थीं,
वॉल टू वॉल फरशी दरी एक तिलस्मी कालीन थी, और उस पर जहाँ
तहाँ बिखरी मेहमानों की टोलियाँ अपनी अँगुलियाँ क्रास किये
टी वी पर नजरें एकटक गडाए थीं जैसे पलक झपकने पर तिलस्म
टूटने का अंदेशा हो। स्पेस सूट पहने नील आर्मस्ट्रांग का
पहला कदम जब चाँद के अछूते धरातल पर उतरने में सिर्फ जरा
सा ठिठका तो ताहिरा ने पास बैठे करन का हाथ कस कर थाम
लिया। दुनिया के हर इन्सान के लाखों मील दूर, अपोलो ११ में
अपने दूसरे साथियों की पहुँच से बाहर, यह अकेला इंसान इस
वक्त कितनी नजरों के दायरे में है? किसी एक अकेली जान को
क्या कभी इतनी नजरों ने पहले भी एक साथ देखा है? देखेंगी?
तालियों की गड़गड़ाहट के साथ देखने वालों ने एक दूसरे को गले
लगाया, शैम्पैन के ग्लास खनके। असलम अपना गिलास ताहिरा के
गिलास से खनका कर करन से बोला,
"आज के बाद खूबसूरत चेहरों की तशबीह चाँद के देने वालों का
क्या होगा यार, मगर आज के दिन मुझे जाम उठाने की इजाजत दे
ही दो। एक ऐसी खूबसूरत औरत के नाम जिसकी मिसाल चाँद से हो
ही नहीं सकती क्योंकि उसके सामने चाँद भी फीका लगता है...
मैं अपना यह जाम तुम्हारी दुल्हन के नाम उठाता हूँ, करन।"
ताहिरा ने जाहिदा खाला को एक और खत लिखा,
खाला जान,
कल चित्रा ने हमारे लिए एक शानदार दावत दी। बहुत शहाना
इलाके में रिहाइश है उसकी, लेकिन जमीन से ऊपर नहीं, जमीन
के नीचे। यहाँ उसे बेसमेंट कहते हैं। दावत का सारा माहौल
ही बिल्कुल तिलस्मी कर के रखा था उसने। मेहमान कह रहे थे
कि मेरा काशनी मुकैश वाला दुपट्टा और चित्रा की बेसमेंट की
नीची छत से टिमटिमाते छोटे छोटे नीले बल्बों की रोशनी में
मुकाबला चल रहा है। किसके पास ज्यादा सितारे हैं?
चित्रा की तो मैं फूफी हूँ न खाला जान। उम्र में भी मुझसे
कोई साल भर छोटी है वो लेकिन मेरा ऐसा दुलार करती है वो
जैसे मेरी आपा हो। बड़ी ही प्यारी है और सँभली हुई भी।
मैंने उसे एक बार भी माथे पर तेवर डाले नहीं देखा है तो
बड़ी कम–गो। पर हर बात इशारतन सँभाल लेती है। मुझे तो लगता
है कि वो जो भी चाहे कर सकती है। चाँद पर भी उतरती तो वहाँ
ऐसे घूमने निकल जाती जैसे कम्पनी बाग में सैर करने गई हो।
लाहौर से लंदन इतना दूर तो नहीं है न खाला जान जितना जमीन
से चाँद आप यहाँ आतीं तो कितना अच्छा होता।
आपकी अपनी गुड़िया
ताहिरा
हाँ एक बात और। मुझे मेरा खत मिलते ही लंबा सा खत
लिखियेगा। इतना लंबा कि उसे एक बार पढ़ने में ही मेरा पूरा
दिन निकल जाये। रुक रुक पढ़ूँगी और पढ़ती पढ़ती आपसे बातें
करूँगी। कितनी बातें बतानी है आपको।
ताहिरा
पूरा करने के बाद ताहिरा ने काफ़ी बार सोचा कि डेविड के
बारे में कुछ लिखे। चित्रा उसी के साथ रहती है। दोनों
कितने प्यारे लगते हैं। लेकिन लिखा कुछ नहीं। |