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                     "ठीक है ना,'' "वादा?''
 "हाँ, मैं वादा करता हूँ।
 अगले दिन के शाम को जब मैं ने दफ़तर से लौटा, सिंधु
 आकर मुझ से लिपट गयी, और बोली "पापा, अब तो २९ दिन ही बाकी....''
 "किस लिए बेटी?''
 "मेरे जन्मदिन के लिए। गुलाब वाला टेडी बियर ख़रीदकर अपने घर आने 
                    के लिए।''
 हर शाम जब मैं घर लौटता, दिनों की संख्या की याद दिलाने लगी 
                    सिंधु।
 मैंने निश्चय किया कि सिंधु की जनम दिन तक मैं उस टेडी बियर 
                    खरीद दूँगा। लेकिन कैसे?
 
 हर महीने मुझे कुछ न कुछ अतिरिक्त काम मिलता है। कोई स्पेशल 
                    एडीशन या कलर
                    सप्लिमेंट या कम से कम कैलंडर या पोस्टर के लिए आर्ट वर्क मिल 
                    जाता है। जो अतिरिक्त आमदनी मिलती है, उस से हमारे परिवार में 
                    छोटी-छोटी खुशियाँ - किसी के लिए नये कपड़े लेने, नही तो परिवार 
                    के साथ सिनेमा या पिकनिक जाने का ख़र्च निकलता है। अगर ऐसा कोई 
                    काम मिल जाय तो
                    उस कमाई से मैं इस बार टेडी बियर खरीद दूँगा, लेकिन इस महीने 
                    ऐसा मौका दिखाई नही देता।
 
 सिंधु के जनम दिन की सुबह मैं बहुत उदास मन से जागा। टेडी बियर 
                    खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। किसी न किसी तरह कमाना है। बिना 
                    नाश्ता खाए, जल्दी से घर से निकलना चाहता हूँ। सिंधु सो रही 
                    है। चुपचाप कमरे से बाहर आने लगा, तो सिंधु ने कंबल से सिर 
                    उठाया और
                    बाली,
 "पापा, मुझे बधाई देने भूल गए''
 "मेरी परी रानी को जन्मदिन मुबारक''
 भरे गले से बोलते हुए मैंने उसके माथे को चूम लिया, लेकिन आँसुओं को नीचे नहीं गिरने दिया। 
                    कमरे से बाहर आते समय सिंधु ने मुझे एक बार फिर याद दिलाया,
 "पापा, 
                    आज आप टेडी बियर लाएँगे ना। मैं आप का इंतजार करूँगी''।
 मैं चुपचाप से दफ़तर चल गया।
 
 शाम होने लगी। अचानक विचार आया कि घर लौटते समय, उपसंपादक से 
                    मिलकर आठ सौ रुपये उधार माँग लूँ। महीने के अंत में वेतन में 
                    से काटने को कहूँगा। इस महीने के कुछ खर्च कम करने होंगे, 
                    परवाह नहीं। यह सोचकर मैं उपसंपादक के केबिन की ओर बढ़ गया। 
                    उन्हें अपनी विवशता बताई। लेकिन उन्होंने रुपये देने की बजाय 
                    एक प्रस्ताव रखा।
 
 "देखो, तुम उधार माँग रहे हो पर मैं तुम्हें अतिरिक्त कमाई का रास्ता 
                    बताता हूँ। तुम इन तीन कहानियों के चित्र बना डालो। नौ सौ 
                    रुपये 
                    दूँगा। लेकिन चित्र तो आज रात को ही प्रेस में जाने हैं। मतलब, 
                    तुम्हें अभी, इसी वक्त यहीं बैठ कर चित्र बनाने होंगे। तुम्हारे 
                    लिए ये कोई बड़ी बात
                    नहीं। ज्यादा से ज्यादा दो घंटे लगेंगे। तुम आठ बजे तक, पैसे 
                    लेकर घर जाकर अपनी बेटी की जन्मदिन की पार्टी धूमधाम से मना 
                    सकते हो। सोच लो।''
 
 मेरे पास दूसरा विकल्प नहीं है।
 सच पूछो तो मैं क्या कोई भी चित्रकार, समय की सीमा में बँधकर अच्छे 
                    चित्र नहीं बना सकता। खैर मैं काम पर लग गया - समय को, सिंधु 
                    को उसके जन्मदिन को और टेडी बियर को भूल गया। जब काम पूरा करके, पैसे 
                    लेकर बाहर निकला तो घड़ी में नौ बजने वाले थे। भेंट खरीदने 
                    के लिए तेज़ कदमों से दूकान पहुँचा लेकिन तब तक दूकान बंद हो 
                    चुकी थी। मैं निराश होकर घर लौट आया।
 
                    
                    बरामदे 
                    में आते ही मेरी पत्नी ने शिकायती स्वर में कहा - "बेचारी। जब 
                    भी दरवाज़े पर आहट होती थी, बाहर आकर आप के लिए देखती थी। शाम 
                    से कुछ नहीं खाया उसने। कहती रही, "पापा आएँगे, टेडी बियर 
                    लाएँगे। तब मैं, पापा और टेडी बियर मिलकर एक साथ खाएँगे'। अभी 
                    अभी सोई है''।
 मैं हतोत्साहित हो गया। खाने की इच्छा भी लुप्त हो गयी। उदास 
                    मन से, सम्मानार्थ भेजी गई एक पत्रिका के पृष्ठ उलटने लगा। उसमें किसी प्रतियोगिता के नतीजे छपे थे। इस प्रतियोगिता में विजेताओं को इनाम के रूप में 
                    गिफ़्ट कूपन दे रहे थे। इन गिफ़्ट कूपनों को चुनी हुई दूकानों में देकर मनपसंद सामान ख़रीदा जा 
                    सकता था।
 
 झट से मुझे एक उपाय सूझा। एक चार्ट-पेपर लेकर, उस पर गुलाबवाले 
                    टेडी बियर का चित्र बनाया। आकार और रंग में वह बिलकुल असली टेडी 
                    बियर लगता था। उस चित्र पर आदत के अनुसार मैंने हस्ताक्षर भी 
                    कर दिए। एक चॉकलेट का बाक्स, जिसे मेरी पत्नी ने ख़रीदा था, और 
                    इस
                    चित्र को साथ लेकर हमने सिंधु को जगाया।
 
 "सिंधु बेटी, और एक बार जनम दिन के मुबारक। लो ये चॉकलेट बाक्स 
                    और ये टेडी बियर का चित्र तुम्हारा गिफ़्ट कूपन। कल सुबह यह 
                    गिफ़्ट कूपन दुकान पर दोगी तो, वहाँ के अंकल तुम्हें असली टेडी 
                    बियर देंगे।''
 "पापा, ये टेडी बियर का चित्र आपने बनाया क्या?''
 "हाँ बेटी''
 मैं पहले से ही अपनी योजना पत्नी को बता चुका। कल किसी समय 
                    सिंधु को दुकान जाकर असली टेडी बियर दिलवा देना और दुकानदार के 
                    पास पहले ही पैसे जमा कर देना
                    ताकि सिंधु को लगे कि उसे टेडी बियर इस टेडी बियर के चित्र यानी 
                    गिफ़्ट कूपन के बदले में ही मिल रहा है।
 
 सिंधु मेरे बनाए गए उस चित्र को देर तक देखती रही, फिर बोली,
 "पापा, ये तो बिलकुल वह दुकानवाला असली टेडी बियर लगता है। 
                    थैंक्स पापा, अपना वादा निभाने के लिये।''
 अगले दिन दफ़तर से आने के बाद मैंने टेडी बियर के बारे में पत्नी 
                    से पूछा।
 "सिंधु ने उस का नाम तक नहीं लिया। पता नहीं क्यों''। पत्नी ने 
                    उत्तर दिया।
 मैं हैरान हो गया। सोचा कि मुझे खुद सिंधु को दुकान ले जाकर 
                    टेडी बियर दिलवा देना 
                    बेहतर रहेगा।
 मैंने 
                    सिंधु से पूछा,"क्यों बेटी, आज हम दुकान जाकर असली टेडी बियर को घर ले आएँ?''
 
 सिंधु कुछ देर तक मुझे देखते हुए कुछ सोचती रही फिर कुछ समय के बाद बोली - 
                    "पापा, अब मैंने अपना इरादा बदल दिया है। जो चित्र आपने बनाया 
                    था न, वो बहुत सुंदर है। ऐसा सुंदर चित्र में दूकान वाले
                    अंकल को क्यों दूँ। ना पापा, मुझे वो गुलाब वाली टेडी बियर 
                    नहीं चाहिए। मुझे यही चित्र चाहिए। दुनिया की किसी भी मूल्यवान 
                    वस्तु के बदले में, मैं इस चित्र को नहीं दूँगी।''
 
 यह सुनकर
                    मुझे इतनी खुशी हुई  जो मेरे किसी चित्र को अंतर्राष्ट्रीय 
                    स्तर पर प्रथम पुरस्कार मिलने पर भी नहीं होती। अकस्मात मेरा 
                    मन हुआ कि इस दुनिया के सारे
                    गुलाब वाले टेडी बियर खरीद कर अपनी नन्ही राजकुमारी के पैरों 
                    के पास रख दूँ।
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