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					 "तू 
					कैसे रोकेगी? "मैं रोक लूँगी।"
 "पक्षियों पर कोई पाबन्दी नहीं लगाई जा सकती।"
 "फिर उन्होंने चिड़िया का अण्डा क्यों तोड़ा?
 "चल? हमें क्या।"
 "क्यों? है क्यों नहीं? उसने गुस्से से कहा, 
					"चिड़िया ने हमारे घर में घोंसला बनाकर अण्डे दिए हैं... 
					हमारा फर्ज है उसकी रखवाली करना।"
 
 उस दिन बात वहीं समाप्त हो गई। क्योंकि वह बहुत भावुक नज़र आ 
					रही थी और स्त्री जब भावुक हो तो उसके साथ मुकाबला नहीं हो 
					सकता।
 
 कालिज में छुट्टियाँ थीं और मैं 
					सप्तसिंधु के लोगों के बारे में अपना शोधपत्र पूरा कर रहा था। 
					वैदिक काल के आर्य लोगों से लेकर आज तक सप्तसिंधु अथवा पंजाब 
					के लोगों को विदेशी हमलावारों और प्रकृति की निर्दयी शक्तियों 
					से युद्ध करना पड़ा है? तब जाकर वे अपने आपको इस धरती पर 
					स्थापित कर सके हैं। ... अब तो इस धरती पर वातावरण में ऐसे 
					शौर्यपूर्ण भाव व्याप्त हैं जो हर किसी को जुल्म के विरुद्ध 
					उठने के लिए प्रेरित करते हैं। मैं दोपहर तक लिखता हूँ और फिर 
					खाना खाकर सो जाता हूँ। सोते हुए भी मैं प्रायः बहादुर पंजाबी 
					लोगों के कारनामों के बारे में सोचता रहता हूँ।
 
 एक दिन दोपहर के वक्त मेरी आँख लगी ही थी कि मैंने घर के 
					पिछवाड़े पक्षियों की चीख-पुकार और बहुत ज़ोर का शोर सुना। मैं 
					तुरन्त उठकर बैठ गया। मेरी पत्नी कह रही थी . "इन शारकों ने 
					चिड़िया के बच्चे को नहीं छोड़ना।"
 "क्या कर लेंगी?
 "मार देंगी।"
 "क्यों? क्या पक्षियों में भी ईर्ष्या होती है?
 "आपका क्या ख्याल है? आदमियों में ही होती है?
 पल भर रुक कर उसने फिर कहा . "परसों चिड़िया का बच्चा नीचे गिर 
					गया था।"
 "फिर?
 "मैंने उसको उठाकर? घोंसले में रख दिया।"
 "वह तुमसे डरा नहीं?
 "नहीं ... पक्षियों को भी अपने चाहने वालों का पता होता 
					है।"
 अभी हम बात कर ही रहे थे कि चिड़ियों की चीं-चीं का बहुत बड़ा 
					तूफान उठा और मेरी पत्नी तुरन्त उठकर आगे आई? पर मैंने उसकी 
					बाजू पकड़ कर रोक लिया।
 "क्या बात है?
 
					"चिड़ियों को अपनी सहायता स्वयं करने दो," मैंने कहा। वह जल्दी 
					से बोली, "वह कमज़ोर हैं।""नहीं ... तुम ही उनको कमज़ोर समझती हो।"
 "तो क्या ... ?
 "तुम उनको शारकों के विरुद्ध लड़ने दो। हमें हर समय उनके साथ 
					नहीं रहना।"
 मैंने कहा . "ज़्यादा से ज़्यादा वह बच्चा खत्म ही तो हो जायेगा 
					... "
 "हाँ ... हाँ ... ।"
 "पर चिड़िया डटके लड़ना सीख जायेंगी।"
 उसने धैर्य से कहा . "मैं देख तो लूँ क्या हो रहा है।"
 "अवश्य देखो ... पर उनकी लड़ाई में दखल मत देना।"
 "इस तरह बुराई को सहारा मिलता है," उसने प्रतिवाद किया।
 मैंने कहा . "जिसके साथ बुराई होती है वह भी तो बुराई के 
					विरुद्ध डटे।"
 "अच्छा फिर ... लड़ने दो।" मेरी पत्नी ने बात खत्म कर दी।
 
 घर के पीछे दूसरे समय का सूरज गरम हो रहा था। हमारे घर का मुँह 
					पूरब की ओर है जिस कारण हम गर्मियों में सुबह घर के पीछे 
					पश्चिम की ओर बैठते हैं और दोपहर बाद जब सूर्य पश्चिम की ओर 
					झुक जाता है तब पूर्व की ओर घर के सामने बैठ जाते हैं।
 
 हमने पीछे बरामदे में जाकर जाली के दरवाजे से देखा तो दोपहर को 
					पाँच शारकों ने चिड़ियों के घोंसले को घेरा हुआ था। चिड़िया और 
					चिड़ा दोनों ही घोंसले के आगे बैठे शारकों का मुकाबला कर रहे 
					थे। किसी समय दो शारकें घोंसले पर हमला करतीं और कभी तीन। 
					चिड़िया का बच्चा घोंसले के पीछे बैठा जोर-जोर से चीं-चीं कर 
					रहा था। पता नहीं क्या कह रहा था।
 
 कल एक चक्कीहारा भी घोंसले को मुँह मार रहा था। मेरी पत्नी ने 
					घबराहट में कहा, "पर मैंने उसको भगा दिया... ये शारकें 
					तो पीछे ही पड़ गई है।"
 "कोई बात नहीं... तुम इनका मुकाबला देखो।"
 
 चिड़ियों के घोसले पर हमला करने वाली शारकें बहुत लड़ाकी और 
					फुर्तीली थीं। उनके साँवले रंग और पीली चोंचें नुकीली थीं। वे 
					जब बोलतीं तो बड़ी संगीतमयी आवाज़ निकलती? पर वे काम क्या कर रही 
					थीं? मैंने अपनी पत्नी से कहा "शारकों का साँवला रंग 
					इनकी ईर्ष्या के कारण ही हुआ होगा।"
 "क्या कहा जा सकता है?
 "यही बात प्रतीत होती है।"
 "आपने कहीं पढ़ा है क्या?
 "नहीं? यह अनुभव की बात है और अनुभव की गवाही कभी गलत नहीं 
					होती।"
 पल भर वह रुक कर बोली, "मैं शारकों को उड़ाने लगी हूँ।"
 "प्रतिदिन उड़ाओगी?
 "फिर क्या करुँ? मुझसे बर्दाश्त नहीं होता 
					...।"
 "फिर तुम चिड़ियों को घर में घोंसले मत बनाने दो।"
 "मेरे से यह नहीं हो सकेगा।"
 "फिर इसे बर्दाश्त करो।"
 "किसे?
 "जो कुछ हो रहा है।"
 "पर यह तो ज्यादती है।"
 मैंने जवाब नहीं दिया।
 
 वैसे मैं सोच रहा था ...'शारकें सोच रही होंगी ? यदि धरती 
					और आकाश में चिड़िया ही चिड़िया हो गई तो हमारा क्या बनेगा ? 
					इसलिए ठीक यही है कि चिड़ियों की नसल को बढ़ने ही न दिया जाए।'
 
 उस समय जितने गुस्से से शारकों ने चिड़ियों पर हमला किया और 
					चिड़ियों ने उस हमले को रोका? उस तरह अकसर आदमी भी नहीं कर 
					सकते।
 
 दोपहर का समय था और पक्षी एक दूसरे का मुकाबला करके थक गये थे। 
					ऐसा लग रहा था कि शारकें निराश हो गई थीं। उनकी उड़ान में पहले 
					जैसा उत्साह नहीं था। चिड़िया और चिड़ा भी डटे हुए थे। चाहे वे 
					थक गये थे और उनकी साँस तेज़ी से चल रही प्रतीत हो रही थी पर 
					उनको लग रहा था कि अगर आज वे अपने बच्चे को न बचा सके तो शर्म 
					से मर जायेंगे।
 
 "बात क्या है? एक बिल्ली भी घोंसले की ओर झाँक रही थी।" मेरी 
					पत्नी बोली "पर वह ऊपर नहीं पहुँच सकती थी।"
 "चिड़ियों के दुश्मन बहुत हैं।" मैंने कहा . "पर फिर भी यह हर 
					जगह होती हैं ... खुले आकाश में विचरती हैं ... .और 
					कभी किसी का भय नहीं मानतीं ... ।"
 मेरी यह बात सुनकर मेरी पत्नी की आँखों में चमक आ गई . "आपकी यह 
					बात तो ठीक है।"
 
 उस समय हमने देखा चिड़िया चीं-चीं करके शारकों को ललकार रही थी 
					...कि हिम्मत है तो करो मुकाबला? मैंने कहा . "हमलावर में 
					तब तक हिम्मत होती है जब तक कोई उसका मुकाबला नहीं करता? 
					क्योंकि जुल्म करने वाले के पास प्राकृतिक शक्ति नहीं होती।"
 
 सूरज पश्चिम की ओर अस्त हो रहा था। लोग बरामदे में बैठे चाय पी 
					रहे थे। अब तक बच्चे भी उठ गये थे परन्तु उनको बिल्कुल मालूम न 
					था कि चिड़ियों ने शारकों का कैसे मुकाबला किया। मेरी पत्नी 
					संतुष्ट थी। वह सोच रही थी कि अगर जुल्म करने वाले का मुकाबला 
					किया जाये तो जुल्म रुक सकता है।
 
 अभी हमने चाय खत्म भी नहीं की थी कि पीछे से फिर पक्षियों का 
					शोर उठा और मेरी पत्नी ने घबराकर कहा . "इस बार शारकें चिड़िया 
					के बच्चे को नहीं छोड़ेंगी।"
 "फिर घबरा गई।"
 "बात ही घबराहट वाली है।"
 "पर तुम चिन्ता न करो।"
 यह बात सुनकर काका हमारा बेटा? जल्दी से आँगन की ओर बढ़ा और 
					फिर तुरन्त वापिस आ गया और बोला . "मम्मी जी? भागकर आओ।"
 "क्या हुआ?
 "बहुत ही दिलचस्प नज़ारा है।ठ
 हम सभी जल्दी से पिछवाड़े की ओर गये। दृश्य सचमुच ही दिलचस्प 
					था।
 चिड़िया का बच्चा घोंसले में से निकलकर आँगन में आ गया था और 
					सारी चिड़ियाँ उसको अपने साथ उड़ना सिखा रही थीं। उसके पर पूरी 
					तरह उड़ने के लिए तैयार थे और उसका शरीर भी ताकतवर था।
 
 वहाँ एक भी शारके नहीं था।
 
 "यह तो कुछ ही दिनों में इतना बड़ा हो गया? मेरी पत्नी ने खुश 
					होकर कहा . "वाहूँ वाहूँ
 "तुझे मालूम नहीं"? मैंने कहा. "मुकाबला आदमी को शक्तिशाली बना 
					देता है।"
 
 अगले पल ही एक जोरदार चीं-चीं की आवाज गूँजी और वह बच्चा पूरे 
					जोर से दीवार के ऊपर से? बिजली के तारों को पार करता हुआ 
					विस्तृत खुले आकाश में उड़ गया।
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