जब
तकलीफ़ बढ़ी, तो अपने फैमिली डाक्टर के कहने पर इस अस्पताल में
उसने एन्जियोग्राफी कराई थी। इसकी फिल्म देखकर डाक्टर ने उसे
शीघ्र बाईपास सर्जरी की सलाह दी थी, क्योंकि किशनलाल के हृदय
की रक्त वाहनियाँ सही कार्य नहीं कर रही थीं।
किशनलाल की सर्जरी कराने की
कतई इच्छा न थी। न जाने क्यों उसे लगता था कि इस आपरेशन के बाद
वह बच नहीं सकेगा। पत्नी सुन्दरी ने उसे समझाया था - ''ईश्वर
पर भरोसा रखें, सब ठीक हो जाएगा। आजकल हृदयरोगों का इलाज आम हो
गया है। हमारी मुम्बई में तो वैसे भी दक्ष चिकित्सा विशेषज्ञ
हैं। आप हिम्मत रखे और सर्जरी के लिए मना न करें, सब ठीक से हो
जाएगा।'' किशनलाल के अभिन्न मित्र जयराम ने भी हिम्मत दिलायी
और वह आपरेशन के लिए सहमत हो गया था। आपरेशन सफल रहा है और
डाक्टर के मुताबिक वह दो-तीन दिन में अंधेरी स्थित अपने घर जा
सकेगा। हाँ, वह दो महीने अपने दफ्तर नहीं जा सकेगा और कम-से-कम
छह महीने काफी ध्यान से परहेज करते रहना होगा।
नर्स तो गोलियाँ देकर चली गई
थी। सुंदरी ने भी दूसरे पलंग पर लेटकर आँखें बंद कर ली थी।
दूसरा कोई चारा न देखकर किशनलाल भी आँखें मूँदकर सोने का
प्रयास करने लगा।
लगभग एक घंटे बाद वह चौंककर
उठा और अपनी पत्नी को बुलाने लगा। सुंदरी गहरी नींद से जागकर
उठी और पति के पलंग के सिरहाने आकर कहने लगी,
''क्यों क्या बात है? डाक्टर को बुलाऊँ?''
''नहीं प्रिया, डाक्टर की ज़रूरत नहीं, मैंने अभी एक सपना देखा
है कि मनोज अमेरिका से हवाई जहाज़ में रवाना हुआ है और कल
मुम्बई पहुँच जाएगा। कल शाम को वह मुझे देखने ज़रूर आएगा। सच
बताओ, सुंदरी क्या तुम्हें अपने बेटे की याद नहीं आती, मैं तो
उसका चेहरा देखने को तरस रहा हूँ।''
''देखिये, आप बार-बार वही बात
कर रहे हैं। यह सपना आप तीन दिन से निरंतर देख रहे हैं। आप
जानते ही हैं कि मनोज ने टेलीफोन पर कहा है कि वह इस वक्त
मुम्बई नहीं आ सकेगा, क्योंकि इस वक्त अमेरिका छोड़ने पर उसे
ग्रीन कार्ड मिलने में कठिनाई आ जाएगी। उसने पाँच हज़ार डालर
भी भेजे हैं, ताकि आपके उपचार में कोई कमी न रहे। बच्चों की
खुशी में ही खुश रहो। मनोज के अमेरिका जाने पर खुशी से सबसे
अधिक आप ही तो उछले थे। क्या आपको नारियल पानी दूँ?''
किशनलाल कुछ क्षण चुप रहा और
छत की ओर एकटक निहारने लगा। सुंदरी जब बाथरूम से बाहर आयी, तो
पति की आँखों से आँसू बहते देख वह खुद भी दुखी हो गई। उसने
देखा कि पति के आँसुओं से अस्पताल के बिस्तर का तकिया भी गीला
हो गया है।
सुंदरी की आँखों में भी आँसू
तैर आये थे, वह मुँह फेरकर खिड़की से बाहर समंदर की लहरों को
देखने लगी। उसे लगा, मानो यह समंदर सुंदरी और किशनलाल जैसे
लोगों के आसुँओं से भरा है। तभी तो खारा है।
अपने आपको समझाते हुए,
दुपट्टे के कोने से अपने आँसू पोंछकर और नारियल का पानी
प्लास्टिक की थैली से निकालकर, गिलास में भरकर, पति के पास
वाली मेज पर रख दिया।
किशनलाल पलंग पर तकिये को
अपनी सुविधा से टिकाकर लेट गया। उसकी आँखें अभी भी बेटे की याद
में नम थीं। सुंदरी ने स्नेहपूर्वक रूमाल से पति के आँसुओं को
पोछा और उसे नारियल का पानी पिलाने लगी।
किशनलाल फिर बतियाने लगे -
''सुंदरी ये तो बताओ क्या ग्रीन कार्ड पिता से बड़ी वस्तु है?
यदि मैं मर जाऊँ, तो शायद मेरा बेटा मुझे कंधा देने भी नहीं
आएगा। ऐसा कहकर कि ग्रीनकार्ड मिलने में दिक्कत होगी। क्या यही
है हमारे प्यार और परवरिश का प्रतिफल?''
सुंदरी ने पति को कोई जवाब
नहीं दिया। फिर वह स्टूल को पलंग के पास सरकाकर बैठ गई और
पैरों को हिलाने लगी। उसे याद आया मनोज जब छोटा था - तो वह उसे
कैसे सी कराती थीं। अपने पैरों का झूला बनाकर जब मनोज को
झुलाती, तो वह खिलखिलाकर अपनी छोटी-छोटी बाहें माँ के गले में
डालकर चिपक जाता। और अब वह माँ-बाप से हज़ारों मील दूर अमेरिका
में ग्रीनकार्ड मिलने का इंतज़ार कर रहा है। जिससे हमेशा-हमेशा
के लिए माँ-बाप से दूर रह सके। सुंदरी के चेहरे पर थोड़ी देर
के लिए आई मुस्कान अब गायब हो चुकी थी। उसने पैरों का झूला
झुलाना बंद कर दिया। वह पति की ओर देखने लगी, जो छत से आँखें
गडाये जाने क्या सोच रहे थे?
''सुंदरी सुनो तो'' किशनलाल
ने सुंदरी की ओर मुखातिब होकर कहा - ''तुम्हें याद है, जब मनोज
दस साल का था और उसे पीलिया हो गया था, तब मैंने पूरे दो महीने
छुट्टी ली थी। ऑफिस से बर्खास्तगी की चेतावनी का नोटिस तक आ
गया था। लेकिन मैंने नौकरी की कोई परवाह नहीं की थी और जब तक
मनोज ठीक होकर स्कूल नहीं जाने लगा था, तब तक ऑफिस नहीं गया
था। फिर दो महीने बाद हम वैष्णो देवी गए थे, तब भी ऑफिस में
झगड़ा करके उसने छुट्टी दी थी।
क्या मनोज वह सब भी भूल गया है?
''अब छोड़ो, पुरानी बातों को,
क्यों मन को दुखी करते हो?'' सुंदरी ने पति को तो पुरानी बातें
याद न करने को कहा, लेकिन खुद भूतकाल के भँवर में अभी भी फँसी
हुई थी। उसे याद आया कि जब मनोज पाँच साल का था, उसे तेज़
बुखार हो गया था, उस समय किशनलाल भी ऑफिस के कार्य से बाहर गए
हुए थे। मनोज को रात में ही कंबल ओढकर वह डॉक्टर के पास ले गई
थी।
उस वक्त उसके पास पर्याप्त
पैसे तक नहीं थे, किसी तरह जोड़-तोड़कर उसने मनोज की एक हफ्ते
तक दवा करायी थी। मनोज के ठीक होने के बाद स्वयं उसे मलेरिया
हो गया था। किशनलाल ने टूर से लौटकर सब कुछ सँभाल लिया था।
परन्तु उस बीमारी के दौरान मनोज जिस तरह उसकी छाती से चिपका
रहता था, वह दुख और हाँ, वह सुख, अभी भी दिल के किसी कोने में
छिपा बैठा है। |