अनजान- मेरा मतलब प्रीतम और
सुलोचना... श्यामा-
सुलोचना को प्रीतम के घर भेजने की बात चल रही थी।
अनजान- ऐसा कीजिये, लिखिये,
प्रीतम सिंह सुलोचना के पास उसकी एक सहेली के जरिये संदेश
भेजता है कि वह उसे रविवार की शाम छः बजे चर्चगेट पर मिले।
श्यामा- क्यों उस बिचारी को
इतवार के दिन गोरेगांव से इतनी दूर बुला रहे हैं सर, वहीं कहीं
आस पास ही बुला लीजिये ना...
अनजान- मैंने आपसे राय माँगी
क्या?
श्यामा- मैंने तो इसलिए कहा
कि उसके पास वैसे ही पैसों की तंगी रहती है।
अनजान- चलिये आगे लिखिये, एक
तो आप बार बार टोक कर मेरा सारा सोचा समझा डिस्टर्ब कर देती
हैं। हाँ तो आगे लिखिये, इस बीच प्रीतम सिंह ने सुलोचना के लिए
एक खूबसूरत गिफ्ट ख़रीद लिया ताकि मिलने पर उसे दे सके और उसे
मना सके।
श्यामा- अच्छा आइडिया है सर,
मेरे सारे दोस्त मुझे मनाने के लिए हमेशा बढ़िया गिफ्ट ही लाते
हैं। बाय द वे प्रीतम ने कौन-सा गिफ्ट ख़रीदा?
अनजान- अभी सरप्राइज रहने दो।
बाद में अपने आप पता चल जाएगा। आगे लिखो, तो जब सुलोचना वाकई
उससे मिलने आई तो अपनी बेवकूफी पर बहुत रोयी।
श्यामा- वह है ही बेवकूफ तो
अपनी बेवकूफी पर रो ही सकती है।
अनजान- कुछ कहा आपने?
श्यामा- नहीं कुछ नहीं।
अनजान- क्या लिखा आपने?
श्यामा- सुलोचना ने प्रीतम से
कहा हम कितना रोये।
अनजान- लेकिन मैंने ये लिखने
के लिए कहा ही कहाँ?
श्यामा- ऐसे मौकों पर
लड़कियां ऐसे ही गाने गाती हैं।
अनजान- कमाल है, उपन्यास मैं
लिख रहा हूँ या आप?
श्यामा- लिख तो मैं ही रही
हूँ, लिखवा आप रहे हैं।
अनजान- तो ढंग से लिखिये, हाँ
क्या लिखा...
श्यामा- आपने अपनी तरफ़ से
कुछ भी लिखने से मना कर दिया है।
अनजान- तो यही बता दीजिये कि
मैंने आखरी संवाद क्या लिखवाया है।
श्यामा- तो जब सुलोचना वाकई
उससे मिलने गई तो अपनी बेवकूफी पर बहुत रोयी।
अनजान- हाँ, आगे लिखिये,
प्रीतम को भी अपने कहे पर बहुत अफसोस हुआ और उसने वायदा किया
कि अब से कभी भी उसका दिल नहीं दुखायेगा और दोनों एक दूसरे का
पूरा ख़याल रखेंगे।
सुलोचना- ने भी उससे वायदा
किया कि वह उसकी आवाज़ सुनने पर अब फोन डिस्कनेक्ट नहीं करेगी।
श्यामा- प्रीतम को चाहिए था
कि उसे मोबाइल गिफ्ट में दे देता।
अनजान- आपसे किसी ने पूछा?
श्यामा- पूछा तो नहीं लेकिन
अच्छी सलाह कोई भी दे, मान लेनी चाहिये। मेरे सामने ऐसी
सिचुएशन आती तो मैं खुद अपने बॉय फ्रैंड से मोबाइल माँग लेती।
अनजान- आपकी जानकारी के लिए
मिस श्यामा ठाकुर, ये उपन्यास जो हम लिख रहे हैं, आज से
पन्द्रह बरस पहले की कहानी कह रहा है और मेहरबानी करके आप मुझे
बार बार टोकें नहीं। ध्यान भंग होता है।
श्यामा- क्या भंग होता है।
अनजान- ध्यान, ध्यान मेरा
मतलब कन्सन्ट्रेशन...
श्यामा- ये डायलाग है क्या
सर...
अनजान- अरे बाबा डायलाग नहीं
है, आपको नेक सलाह है। आगे लिखियेः जब सुलोचना ये गिफ्ट पैकेट
ले कर घर पहुँची तो उसने तेज़ी से अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर
लिया और धड़कते दिल से पैकेट खोला। पैकेट खोलने से पहले उसने
अपनी आँखें बंद कर लीं और काँपते हाथों से पैकेट खोला। पैकेट
खोलते ही उसके हाथों के तोते उड़ गए।
श्यामा- धत, कोई अपनी रूठी
हुई प्रेमिका को मनाने के लिए तोते गिफ्ट पैक करके देता है।
अनजान- अरे ये तो मुहावरा है।
सच में तोते थोड़े ही थे।
श्यामा- (बोलते हुए लिखती है)
अरे ये तो मुहावरा है। सच में तोते थोड़े ही थे।
अनजान- जब उसने आँखें खोली तो
उसे अपनी आँखों पर विश्वास न हुआ। उसके सामने एक जगमगाता,
नहीं, झिलमिलाता, नहीं नहीं, झिलमिलाता भी नहीं, चमकता, दमकता
और...
श्यामा- और क्या?
अनजान- और मुस्कुराता टैडी
बीयर था। वह उसे देखते ही खिलखिला पड़ी और प्यार से बोली,
प्रीतम भी बिल्कुल सरदार ही है। गिफ्ट देना भी नहीं आता। लेकिन
साथ ही उसे इस प्यारे गिफ्ट को पा कर बहुत अच्छा भी लगा। उसने
उसे अपने सीने से लगा लिया
श्यामा- किसे? प्रीतम को?
अनजान- अब ये प्रीतम कहाँ से
आ गया बीच में। वहाँ तो उसका भेजा टैडी बीयर ही है। उसी को गले
लगाया। समझीं और ध्यान से लिखिये। आपका ध्यान पता नहीं
कहाँ-कहाँ होता है।
श्यामा- कहीं भी तो नहीं। मैं
तो पूरे ध्यान से लिख रही हूँ।
अनजान- ठीक है। ठीक है। आगे
लिखिये...
श्यामा- जी।
अनजान- उधर प्रीतम सिंह के
दिल में धुकधुकी मची हुई थी कि पता नहीं सुलोचना ने उसे माफ़
किया है या नहीं और क्या उसे टैडी बीयर पसंद आया या नहीं। यही
सोचता हुआ वह अपने घर की छत पर चहलकदमी करता रहा। चारों तरफ़
निस्तब्धता थी।
श्यामा- क्या थी?
अनजान- निस्तब्धता।
श्यामा- वो क्या होती सर?
अनजान- उसे क्या कहते हैं
ट्रिंकुवैलिटी।
श्यामा- तो हिन्दी में बोलिये
ना...
अनजान- हाँ तो वह, मतलब वही
छायी हुई थी। कहीं कोई पत्ता खड़कने की आवाज़ भी नहीं आ रही
थी।
श्यामा- रात में वैसे भी
पत्ते नहीं खड़कते सर।
अनजान- ठीक है ठीक है आगे
लिखो, प्रीतम को लग रहा था, इस बार ज़रूर उसकी मन माँगी मुराद
पूरी हो जाएगी और सुलोचना शादी के लिए हाँ कह देगी। कितने बरस
हो गए उसे इस तरह से अकेले रहते हुए और होटलों का खाना खाते
हुए। ईश्वर ने चाहा तो उसकी भी शादी होगी और वह दूल्हा बन कर
सुलोचना के घर जाएगा।
श्यामा- सर, सिक्वेंस उल्टी
नहीं हो रही है यहाँ, पहले शादी और फिर दूल्हा बन कर जाने की
बात।
अनजान- नहीं, ठीक है। आगे
लिखो, उसका कारोबार चल निकलेगा और वह एक दिन अपनी प्यारी गाड़ी
में बैठ कर अपनी दुलारी सुलोचना को घुमाने ले जाएगा।
श्यामा- पागल है।
अनजान- क्या कहा?
श्यामा- जी कुछ नहीं, प्रीतम
को पहले प्रोपोज़ तो करना चाहिए। फालतू में ख़्वाब देखे जा रहा
है।
अनजान- उधर सुलोचना का भी यही
हाल है। वह समझ नहीं पा रही कि प्रीतम ने क्या सोच कर उसे ये
बड़ा सा टैडी बीयर दिया है। वह भी अपनी छत पर आ जाती है और
चाँदनी रात में गुनगुनाने लगती है।
श्यामा- कौन-सा गाना सर?
अनजान- वह गुनगुना रही है मिस
श्यामा ठाकुर इसलिए ज़रूरी नहीं कि गाने के बोल भी दिये ही
जाएँ।
श्यामा- मैंने तो यों ही
पूछा। वैसे मैं होती तो वो वाला गाना गाती : चाँदनी रात
पिया...
अनजान- ठीक है आप अपनी पसंद
का गाना गा लेना लेकिन फिलहाल लिखिये : सुलोचना भी सोचे रही
है, कितनी खुशनसीब है वो कि कोई उसे इतना प्यार करता है। और
उसके लिए आहें भरता है। अपने इश्क को परवान चढ़ते देख किसे
अच्छा...
श्यामा- क्या चढ़ते सर?
अनजान- परवान...
श्यामा- माने?
अनजान- माने वो ऊपर यानी
सीढ़ियाँ।
श्यामा- ओह माइ गॉड, मैं तो
एकदम भूल ही गई थी।
अनजान- अब क्या हो गया क्या
भूल गईं आप?
श्यामा- आज ज़रूर मेरी पिटाई
होगी आपके इस नावल के डिक्टेशन के चक्कर में। मैं भूल ही गई थी
कि मेरी दादी आज सीढ़ियों से फिसल कर नीचे गिर गई है और मुझे
उसे अस्पताल भरती कराने जाना है। मैं जाऊँ सर?
अनजान- बाय द वे आज कौन-सा
दिन है।
श्यामा- क्यों, आज सोमवार है।
अनजान- तो मिस श्यामा ठाकुर,
आज सोमवार है और आप आज वाले बाय फ्रैंड से मिल ही चुकी हैं। ये
एक्स्ट्रा शिफ्ट किस लिए?
श्यामा- वो ऐसा है ना कि सर
आज उसका जनम दिन है।
अनजान- वो आज आप यहाँ आने से
पहले ही मना चुकी हैं। अब किसलिए जाना है?
श्यामा- सर वो आज बहुत लोनली
फील कर रहा है ना इसलिए।
अनजान- और यहाँ प्रीतम और
सुलोचना एक दूसरे के लिए ठंडी आहें भर रहे हैं वो।
श्यामा- वैसे भी सर, आप कहाँ
उन दोनों को फिर से मिलवाने वाले हैं। चाँदनी रात में दोनों
अपनी अपनी छत पर खड़े ठंडी आहें ही तो भर रहे हैं। भरने दीजिए
थोड़ी देर। मैं जाऊँ सर?
अनजान- अब तो भगवान ही मालिक
है मेरे नावल का। यही हाल रहा तो (सिर पकड़ कर बैठ जाता है)।
श्यामा- मैं जा रही हूँ सर,
गुडडे।
अनजान- सुनिये मिस श्यामा
ठाकुर...
श्यामा- जी।
अनजान- क्या नाम है आपके आज
वाले बाय फ्रैंड का?
श्यामा- क्यों, संदीप है उसका
नाम। आप उसके लिए कोई गिफ्ट दे रहे हैं सर, हाय आप कितने अच्छे
हैं। संदीप एकदम खुश हो जाएगा।
अनजान- ऐसा कीजिये मिस श्यामा
ठाकुर, मैं यह नावल आप दोनों को समर्पित करता हूँ। वैसे भी अब
ये तीन दिन में पूरा होने से रहा। मुझे लगता है प्रेम के बारे
में आपके अनुभव मुझसे ज़्यादा और सच्चे हैं। आप सुलोचना की जगह
ले लीजिये और प्रीतम की जगह अपने किसी भी बाय फ्रैंड को रख
दीजिये और नावल पूरा कर दीजिये। टाइप करके भेज दीजिये कहीं भी।
ज़रूर छप जाएगा। जाइये बेस्ट आफ लक।
(दोनों जड़वत
हो जाते हैं।) |