अनजान- (घड़ी दिखाते हुए) ये
आपके आने का टाइम है?
श्यामा- सॉरी कह तो दिया है सर...
अनजान- मैं पूछता हूँ कि ये
आपके आने का टाइम है?
श्यामा- मैं क्या करती सर,
पहले तो रोज़ाना वाली बस ही छूट गई, फिर रोज़ाना वाली ट्रेन भी
छूट गई। और आपको पता है सर, जब मैं चर्चगेट से यहाँ आ रही थी
ना सर तो एक पागल रास्ते में खड़ा सबको पत्थर मार रहा था। मैं
बड़ी मुश्किल से जान बचा कर आई। लम्बा चक्कर लगा कर आना पड़ा।
अनजान- मैंने आपसे पूछा है कि
ये आपके आने का समय है मैडम, आप पूरे ढाई घंटे से देरी से आ
रही हैं। आपका यही हाल रहा तो जा चुका मेरा नॉवल प्रेस में।
दीवाली अंक की घोषणा हो चुकी है। मैटर भेजने की लास्ट डेट में
सिर्फ़ तीन दिन बचे हैं। संपादक के फोन पर फोन आ रहे हैं और हर
दिन आपका नया बहाना। मैं तो परेशान हो गया आपके बहानों से।
श्यामा- अब मैं आ गई हूँ ना
सर।
अनजान- लेकिन पहले मुझे ये
बताओ कि देर क्यों हुई।
श्यामा- वो आज ना मेरे बॉय
फ्रैंड का जनम दिन था। तो बुलाया था उसने। उसी वजह से देर...
अनजान- कौन-सा वाला, वही जो
हर सोम और गुरुवार को मिलता है तुमसे?
श्यामा- (इतराते हुए) आप
जानते तो हैं उसे?
अनजान- पता नहीं कितने बाय
फ्रैंड हैं तुम्हारे। हर दिन के लिए अलग-अलग। दोस्त न हो गए
पर्स हो गए, रोज़ नया चाहिए।
श्यामा- क्या सर, तीन ही तो
हैं। एक सोम और गुरुवार वाला, एक मंगल और शुक्रवार वाला और एक
बुध और शनिवार वाला।
अनजान- संडे का भी कोई
होगा...
श्यामा- वो तो टैलिफोन फ्रैंड
है। मैं उससे मिलती थोड़े ही हूँ।
अनजान- तुम्हारे इन दोस्तों
के चक्कर में मेरा बैंड बज रहा है। अब जल्दी शुरू करो।
श्यामा- ठीक है सर।
अनजान- पिछली बार कहाँ छोड़ा
था हमने?
श्यामा- बताती हूँ सर, (पढ़
कर सुनाती है) प्रीतम सिंह और सुलोचना कई दिन के बाद मिल रहे
हैं। वे एक रेस्तराँ में बैठे हैं और उनके सामने कोल्ड ड्रिंक
रखे हैं। प्रीतम सिंह सुलोचना से कह रहा है कि जब से तुमसे
मुलाक़ात हुई है, मैं अपने होश खो बैठा हूँ। लगता है जैसे
ज़िंदगी को मक़सद मिल गया है। मेरे लिए संसार की सबसे बड़ी
खुशी तुम ही हो।
अनजान- ठीक है आगे लिखो (
सोचता है, फिर हथेली पर, दीवार पर लिखे और मेज़ पर लिखे अपने
नोट्स देखता है) हं हं हं, हाँ लिखो, प्रीतम सिंह का डॉयलाग-
मुझे लगता है हम दोनों का जनम-जनम का नाता है।
श्यामा- (टोकती है) सर, इसे
सात जनम का कर दें।
अनजान- टोको मत, जो कहा है
वही लिखो। हाँ, तुमसे मिलने के बाद अब इस ज़िंदगी में कुछ और
पाने की इच्छा ही नहीं रह गई है। बस, दिल करता है कि तुम आस
पास बनी रहो और मैं तुमसे दिन रात बातें करता रहूँ। (थोड़ी देर
सन्नाटा, वह लिखने का इंतज़ार करती रहती है।) नहीं, इस आखरी
वाक्य को काट दो और इसकी जगह नायिका का संवाद रखो। लिखो, मैं
भी तो तुमसे हर पल मिलना चाहती हूँ लेकिन तुम तो जानते ही हो
कि मेरी माँ कितनी कठोर है। हर वक्त मेरे आस पास मंडराती रहती
है। (फिर सन्नाटा, इंतज़ार) अब नायक का संवाद रखो - लेकिन तुम
फ़ोन तो कर सकती हो।
नायिकाः अब मैं तुम्हें कैसे बताऊँ कि मेरे लिए तुम्हें फोन
करना कितना मुश्किल होता है। घर से फोन करो तो ऐसे शो करना
पड़ता है मानो अपनी सहेली निशा से बात कर रही हूँ। वो भी हर
बार नहीं कर पाती क्योंकि माँ फोन को ताला लगा कर रखती है।
बाहर से फोन करो तो एसटीडी बूथ वाला हर तीन मिनट के तीन रुपये
इक्कतीस पैसे ले लेता है। तुम्हें फोन करने के चक्कर में मेरी
पूरी पाकेट मनी चली जाती है।
श्यामा- अजीब लड़की है।
अनजान- कुछ कहा आपने मैडम?
श्यामा- कुछ नहीं।
अनजान- तो आगे लिखो, कल शाम
मैं तुम्हारा चर्चगेट स्टेशन पर व्हीलर बुक शाप के पास
तुम्हारा इंतज़ार करता रहा, तुम्हें छः बजे तक आ जाना चाहिए
था, लेकिन तुम छः चालीस तक नहीं आई तो मैंने भाग कर छः बयालीस
की बोरीवली फास्ट पकड़ी।
श्यामा- सर एक बात बताऊँ?
अनजान- अब क्या है?
श्यामा- सर छः बयालीस की कोई
बोरीवली फास्ट नहीं है। छः सैंतालीस कर दूँ।
अनजान- आप बहुत ज़्यादा टोकती
हैं। सारा फ्लो टूट जाता है।
श्यामा- सॉरी सर, मैंने तो
सिर्फ़ आपको...
अनजान- ठीक है ठीक है, आगे
लिखिए, (सन्नाटा, सोचता है लेकिन कुछ सूझता नहीं, बार-बार
हथेली पर मुक्का मारता है) अं अं अं
श्यामा- सर आप बुरा न मानें
तो एक बात कहूँ?
अनजान- अब क्या है?
श्यामा- सर आप इस सीन को इस
तरह से आगे बढ़ाएँ कि तभी नायिका का भाई अपने दोस्त के साथ उसी
रेस्तरां में आ जाता है और अपनी बहन को इस तरह से प्रीतम के
साथ देख कर...
अनजान- नहीं नहीं ये हर तीसरी
फिल्म में होता है। हम अपने नॉवल को कुछ ओरिजिनल टच देना चाहते
हैं। हम कुछ ऐसी चीज़ देंगे कि चारों तरफ़ तहलका मच जाए।
श्यामा- यू मीन तहलका डॉट काम
अनजान- शट अप। यों लिखो कि
सुलोचना का भाई तभी अपनी गर्ल फ्रैंड के साथ उसी रेस्तराँ में
आता है लेकिन अपनी बहन को वहाँ देख कर लौट जाता है।
श्यामा- (बहुत बेमन से लिखती
है) ये क्या सर, आप यहाँ इन दोनों का आमना सामना दिखा कर अच्छे
डायलॉग दे सकते हैं।
अनजान- टोको नहीं लिखो, भाई
को देख कर सुलोचना घबरा गई है। कहती है : अब क्या होगा प्रीतम,
अगर भइया ने घर पर शिकायत कर दी तो
प्रीतम: वह ऐसा नहीं करेगा प्रीतम, क्योंकि वह खुद भी किसी
लड़की के साथ था।
सुलोचना: तुम हमारे समाज को नहीं जानते प्रीतम, हमारे समाज में
भाई को सात खून माफ़ हैं लेकिन बहन ऐसा नहीं कर सकती।
प्रीतम: ज़माना बहुत बेदर्द है सुलोचना।
सुलोचना: तो हम क्या करें प्रीतम?
प्रीतम: ज़माने को दिखा देंगे।
सुलोचना: लेकिन जब तक हमारी हड्डियाँ साबुत बची रहें तब ना!
प्रीतम: ज़माने से लड़ेंगे।
सुलोचना: किस बूते पर।
प्रीतम: तो फिर भाग चलते हैं सुलोचना।
सुलोचना:: लेकिन भाग कर जाएँगे कहाँ अभी तो...
प्रीतम: अभी तो क्या...
सुलोचना: पहले तुम्हारे पिता जी अपनी जायदाद तो तुम्हारे नाम
कर दें। हो जाए तो भागेंगे।
प्रीतम: तुम बेवफ़ा हो सुलोचना।
सुलोचना:: नहीं समझदार हूँ प्रीतम।
प्रीतम: तुम बुजदिल हो।
सुलोचना: तुम मक्कार हो।
प्रीतम: तुम मतलबी हो, प्यार को पैसे से तौल रही हो।
सुलोचना: तुम्हारी ये मजाल कि मुझ पर इतना बड़ा आरोप लगाओ, जाओ
मैं तुमसे नहीं बोलती।
प्रीतम: मैं भी तुम्हारी परवाह नहीं करता।
सुलोचना: ऐसी बात तो मैं चली।
प्रीतम:: जा कर दिखाओ। मेरे ठेंगे से...
सुलोचना: तो मेरा भी ठेंगा देख लो।
और तभी सुलोचना प्रीतम से रूठ कर चली जाती है। प्रीतम उसे जाते
देखता रहता है।
अब काफी हो गया। छोटा सा ब्रेक ले लें। कॉफी शाफी हो जाए।
श्यामा- सर बड़ा अटपटा-सा
डायलॉग हो गया ये तो...
अनजान- क्यों क्या हो गया?
ज़रा पढ़ना तो...
श्यामा- सुलोचना जा रही है और
प्रीतम कह रहा है, अब काफी हो गया। छोटा-सा ब्रेक ले लें। कॉफी
शाफी हो जाए।
अनजान- आप भी कमाल करती हैं
श्यामा जी, ये डायलॉग नहीं है। ये तो मैं आपसे कह रहा हूँ कि
बहुत हो गया। ज़रा कॉफी हो जाए। समझीं...
(कॉफी बनाने का अभिनय)
श्यामा- एक बात बताऊँ सर
अनजान- अब क्या है?
श्यामा- आपने ये जो नायक का
नाम प्रीतम सिंह रखा है लगता है कोई टैक्सी ड्राइवर है और
सुलोचना से लगता है कि गाँव में रहने वाली कोई लड़की है।
अनजान- आपने ठीक पहचाना मैडम,
प्रीतम सिंह की टैक्सियाँ चलती हैं और उसका बाप भी ड्राइवर है।
सुलोचना गोरेगांव में रहती है।
श्यामा- ओह आइ सी...
अनजान- हाँ उसके पापा आइल
इंडिया कार्पोरेशन में हैं।
तो शुरू करते हैं। लिखिये, सुलोचना जब प्रीतम से नाराज़ हो कर
चली गई तो उसकी आँखों में आँसू।
श्यामा- सर जब चली गई तो पीठ
पीछे आँसू।
अनजान- टोकिये मत, पूरा वाक्य
सुनिए।
श्यामा- सॉरी सर, आगे बोलिए।
अनजान- आप सब कुछ भुला देती
हैं। पूरा वाक्य इस तरह से है कि सुलोचना जब प्रीतम से नाराज़
हो कर चली गई तो उसकी आँखों में आँसुओं की कल्पना करके ही उसे
डर लगने लगा कि कहीं वह खुदकशी न कर ले।
श्यामा- कोई इत्ती-सी बात पर
खुदकुशी नहीं किया करता।
अनजान- आपको कैसे मालूम, आप
कोई ज्योतिषी हैं क्या?
श्यामा- हमें सब मालूम है।
अगर मैं सारे बॉय फ्रैंडस की बातों का बुरा मानने लगी तो अब तक
दस बार खुदकुशी कर चुकी होती।
अनजान- बहुत आत्म विश्वास है
अपने आप पर...
श्यामा- करना पड़ता है वरना
ये लड़के लोग तो हमें बेच खायें।
अनजान- चलिए आगे लिखिए...
श्यामा- जी सर।
अनजान- अब प्रीतम सिंह परेशान
है कि सुलोचना से कांटैक्ट कैसे हो। सुलोचना उसका फोन सुनते ही
रख देती है और उससे बात ही नहीं करना चाहती। प्रीतम परेशान है
कि क्या करे और सुलोचना को कैसे मनाये। वह यह भी जानना चाहता
है कि कहीं उसके भाई ने घर पर शिकायत तो नहीं कर दी है।
श्यामा- पागल है।
अनजान- आपने कुछ कहा मैडम?
श्यामा- नहीं आपसे नहीं...
अनजान- तो किससे कहा, यहाँ तो
और कोई भी नहीं है।
श्यामा- मैं तो सिर्फ़ ये सोच
रही थी कि मेरा बाय फ्रैंड अगर ऐसा आरोप लगाता मुझ पर तो मैं
उसे चार जूते मारती।
अनजान- आप ज़रूर मेरे नावल का
भट्टा बिठाएँगी। वैसे ही आगे नहीं बढ़ रहा और ऊपर से आप...
श्यामा- मेरी मानिये तो लड़की
को थोड़ा बोल्ड बनाइए और उसे सीधे प्रीतम सिंह के घर भेज
दीजिए।
अनजान- उससे क्या होगा?
श्यामा- होगा क्या, दोनों की
गलतफहमी दूर हो जाएगी। और आपका नावल आगे बढ़ने लगेगा।
अनजान- खतम नहीं हो जाएगा
वहीं पर।
श्यामा- तो हो जाने दीजिये
ना।
अनजान- कमाल करती हैं आप भी।
यहाँ लाखों पाठक मेरे उपन्यास की राह देख रहे हैं और आप इसका
बंडल बनाने के चक्कर में हैं। चलिये आगे लिखते हैं। कहाँ थे
हम?
श्यामा- हम तो यहीं थे सर। |