पद्मा सचदेव
जन्म : पुरामन्डल
गाँव जम्मू में सन १९४० में।
कार्यक्षेत्र :
जम्मू और कश्मीर रेडियो में स्टाफ कलाकार के पद पर कार्य
किया एवं बाद में दिल्ली रेडियो में डोगरी समाचार वाचक के
पद पर कार्य किया।
डोगरी भाषा की प्रख्यात
लेखिका एवं कवयित्रि पदमा सचदेव को इतिहास प्रेम विरासत
में मिला है। उनके पिता प्रो. जयदेव शर्मा हिन्दी व
संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। पहले उन्होने कवयित्री के
रूप में ख्याति प्राप्त की। लोकगीतों से प्रभावित होकर
इन्होने 'मेरी कविता मेरे गीत' लिखे इस काव्य संग्रह पर
इनको १९७१ का 'साहित्य अकादमी' पुरस्कार मिला। बाद में
उन्होने हिन्दी और डोगरी गद्य पर भी वैसा ही अधिकार दिखाया
जो डोगरी कविता पर।
अपने तीन और कविता
संग्रहों के पश्चात जम्मू कश्मीर की कला संस्कृति और भाषा
अकादमी से "रोब आफ आनर" मिला। उ.प्र. हिन्दी सहित्य अकादमी
पुरस्कार, राजाराम मोहन राय पुरस्कार से सम्मानित हुई।
डोगरी कहानी के क्षेत्र
में इनके आगमन से एक नई मानसिकता व नई संवेदन शक्ति का
संचार हुआ है।
प्रमुख प्रकाशित
कृतियाँ - तवी ते चन्हान, नेहरियाँ गलियाँ, पोता पोता
निम्बल, उत्तरबैहनी, तैथियाँ, गोद भरी तथा हिन्दी में एक
विशिष्ठ उपन्यास 'अब न बनेगी देहरी' आदि। |