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यह कहते हुए उसने हवनकुंड को उठाकर कूड़ेदान में फेंक दिया। चारों उसका मुँह देखने लगे। अचानक कालीचरण ने समझाने की मुद्रा अख्तियार की और बोला - 'देखो, वह जैसी भी थी, उतनी बुरी नहीं थी, जितना पिछला मैनेजर ब्रायन। क्या तुम भूल गये कि वह कैसा नस्लपरस्त और बदजबान था ? बिना गाली के उसके मुँह से बात नहीं निकलती थी। अब तो उस बेचारी की नौकरी भी नहीं रही । मरे हुए को क्या मारना ?'

हैरिसन फूड्स के एशियन डिपार्टमेंट के अधिकांश कर्मचारी केवल हिमानी से ही नही, कालीचरण से भी कभी-न-कभी अपमानित हो चुके थे। उन्होंने उसे मिरची, बिच्छूबूटी, कनखजूरा और क्लेश वगैरह कई नाम दे रखे थे। उसके समझाने का उनपर जरा भी असर नहीं हुआ, लेकिन चूँकि अब वह मैनेजर बनने की स्थिति में आ गया था और कम्पनी के प्रभावशाली डाइरेक्टर जेम्स फॉक्स का खास आदमी भी था, इस लिये सबने उसका लिहाज किया। वे चुपचाप अपनी सीटों पर जा बैठे, लेकिन जब उन्होंने देखा कि कालीचरण अपनी सीट की बजाय हिमानी की सीट पर जा डटा है, तो नगेश ने कागज के एक पुर्जे पर 'साला साँप' लिखा और उसे बगल में बैठे शेखर की ओर बढ़ा दिया। शेखर ने 'साँप' पर लाल पेन से गोला बनाते हुए उसके नीचे कोबरा (नाग) लिखा और मेज की विभाजक तख्ती के दूसरी ओर बैठी सबनीता की ओर फेंक दिया। सबनीता ने उसमें कोबरा के आगे 'स्पिटिंग' (जहर की पिचकारी मारने वाला नाग) जोड़कर उसे बगल वाले साथी की ओर लुढ़का दिया।

सबकी सृजनशीलता उड़ान भर रही थी और सब अपना-अपना ग़ुस्सा नये-नये रूपकों, उपमाओं, विशेषणों और संज्ञाओं में व्यक्त कर रहे थे। देखते-ही-देखते वह पुर्जा कई तरह के नामों और टिप्पणियों से लगभग पूरा भर गया। उसके एक कोने में जहाँ जरा-सी जगह बची थी, उसपर राकेश ने अपनी भड़ास जोड़ी - 'अंग्रेजों का मोबाइल टॉयलेट' । एक बार वह पुर्जा फिर सब दोस्तों के पास पहुँचा और अन्त में जब नगेश के पास लौटा, तो उसने उसे अपनी उसी गुप्त फ़ाइल में रख लिया, जिसमें वह हिमानी को दी गई गालियों के पुर्जे रखा करता था।

हिमानी के निकाले जाने पर एशियन डिपार्टमेंट के केवल एक-दो कर्मचारियों को ही अफ़सोस हुआ। शेष सबने राहत की साँस ली। उनको ऐसे लगा जैसे कोई कर्फ्यू खत्म हुआ है। किसी जमाने में जब हिमानी सबके साथ बैठकर काम करती थी, तो उनके हँसी-मजाक में ही नहीं, उनके द्वारा घर से लाये हुए खानों के प्रीतिभोज में भी शामिल होती थी और कभी-कभी खुद भी उड़द, मसालेदार छोले, इडली, उपमा या कोई और व्यंजन बनाकर ले आती थी, जिन्हें सब मिलकर खाते थे। लेकिन एशियन डिपार्टमेंट की मैनेजर बनते ही वह सबके सिर पर सवार हो गई। वह टोनी मॉरिसन जैसे बोर्ड के एक-दो डाइरेक्टरों की मुँहलगी थी। इसलिये सबने एक पर्चे पर उसके साथ उसके रिश्ते को गालियों के रूप में लिखा और दोस्तों में घुमा कर अपनी-अपनी आग उगली।

फुर्सत मिलते ही नगेश ने आज अपनी फ़ाइल से फिर वह पर्चा निकाला, उसकी कई फोटो कॉपियाँ बनार्इं और सारे अन्तरंग साथियों में बाँट दीं। शेखर ने एक पर्चा और घुमाया कि आज शाम को घर जाने से पहले हम दफ़्तर के सामने वाले कैफे में मिलेंगे।

कमाल है, किसी को पता ही नहीं चला कि मॉरिसन की चुसी हुई हड्डी को कूड़ेदान में फेंका जा रह है - नगेश ने झाग वाली 'लाते' का भरपूर घूँट भरते हुए कहा। वह अपने दोस्तों के साथ 'कैफे पैरिस' में बैठा हिमानी का पोस्ट मॉर्टम कर रहा था।

साली मॉरिसन की जूती ! आज सवेरे कैसी बन-ठन कर आई थी ! पहले से ज्यादा सजी-सँवरी ! एक तो भगवान ने वैसे ही इसे फुर्सत के दिन बनाया था और बिज्जू जैसा थोबड़ा और तूँबी जैसा बदन दिया था, ऊपर से नौ सौ चूहे खाने वाली सजकर दफ़्तर आती थी - शेखर ने जोड़ा। अरे जाना होगा इस बंदरिया को उस बंदर की जूएँ खाने उसके घर - सबनीता ने शेखर की निर्लज्जता भरी टिप्पणी में कुछ और इजाफ़ा करते हुए कहा।

लेकिन तुमने देखा, आज सवेरे जब वह मॉरिसन के केबिन से निकली थी, तो उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं - अवनीन्द्र ने विचित्र मुद्रा बनाते हुए जोड़ा। लेकिन यह चमत्कार हुआ कैसे ? नगेश की इस बात का जब तक कोई जवाब देता, सबनीता बोली - मॉरिसन को तो यह मदारिन उँगलियों पर नचाती थी। समझती थी जैसे इसे कोई हाथ नहीं लगा सकता। मुझे तो उसी दिन दाल में हड्डी नजर आ गई थी, जब हमारी कम्पनी के व्यंजनों में सड़ा हुआ चिकन निकला था - शेखर ने ऐसे कहा, जैसे उसे हिमानी के निकाले जाने का सही कारण मालूम हो।

कुछ हफ़्ते पहले हैरिसन की फैक्टरी पर 'फूड इंस्पेक्टरों' का छापा पड़ा था। वहाँ उन्हें न केवल ढेरों जूठे बरतन, मैले 'वर्क-टॉप्स' और गंदे फ़र्श ही मिले थे, चूहों की मेंगनी और कॉकरोच भी दिखाई दिये थे। इनसे भी बढ़कर जब इंस्पेक्टरों ने चिकन की जाँच की, तो उनका शक सही निकला। वह 'यूज बाई' (प्रयोग की आखिरी तारीख) के बाद वाला सड़ा हुआ चिकन था, जिसे कुछ मसालों से धो-धा कर 'पेटीज' और 'पाईज' में भरा जा रहा था और उसी का चिकन टिक्का मसाला भी बनाया जा रहा था। इन व्यंजनों के लिये हैरिसन का बड़ा नाम था। उसपर ढाई लाख पाउंड का कड़ा जुर्माना किया गया। उसी दिन हैरिसन के सारे एशियाई सप्लायरों की फैक्टरियों पर भी छापे पड़े, जिनके बाद चीनी, इतालवी और अरबी व्यंजनों के सप्लायरों की फैक्टरियों की जाँच की गई। हैरिसन फूड्स का भारी नुक़्सान हुआ, उसकी साख गिर गई और मीडिया में उसकी भारी बदनामी हुई। उसके उत्पादनों की बिक्री तो लगभग बंद ही हो गई और उसे सुपरमार्किटों में भेजा अपना माल भी वापस मँगाना पड़ा।

हालाँकि इसके लिये अकेली हिमानी ही जिम्मेदार नहीं थी, लेकिन उसके अगले-पिछले कई अपराधों को आधार बनाकर उसे बलि का पहला बकरा बनाया गया। मॉरिसन ने डाइरेक्टरों की आपाद् बैठक में उसकी ओर से सफ़ाई देने और उसे बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन जवाब में उसको भी कई डाइरेक्टरों से खूब खरी-खोटी सुननी पड़ी। चेयरमैन को तो पहले दिन से ही हिमानी पसंद नहीं थी, लेकिन चूँकि ब्रायन एक अन्य कम्पनी में बढ़िया तनख्वाह, शेयर और बोनस मिलने पर हैरिसन फूड्स को छोड़ चुका था, इस लिये चेयरमैन ने उसके स्थान पर किसी अंग्रेज को ही नया मैनेजर बनाने का निर्णय किया। उधर हिमानी के लिये मॉरिसन जैसे दो-तीन प्रभावशाली डाइरेक्टरों ने दबाव डाला। मॉरिसन ने कहा - हमारे इंडियन प्रोडक्ट्स सब कम्यूनिटीज में पॉपुलर हो रहे हैं। इस लिये उनकी पब्लिसिटी और क्वालिटी के वास्ते हिमानी बहुत उपयोगी होगी।

उसने यह भी कहा - वह इंडियन कुकरी (पाक कला) की माहिर है और उसे एशियन डिशेज (व्यंजनों) की क्वालिटी की अच्छी जानकारी है। वह टॉपमोस्ट इंडियन तंदूरी रेस्टोरैंट्स की शॉर्टकमिंग्ज (कमियों) जानती है, इस लिये हमारी कम्पनी को उसकी जानकारी और अनुभव को इस्तेमाल करना चाहिए।

जब एक अन्य डाइरेक्टर ने शंका की थी कि एक मामूली औरत को मैनेजर बनाने से कम्पनी की छवि खराब हो सकती है, तो मॉरिसन ने कहा था - डोंट फॉअगेट (मत भूलिये) औरत को मैनेजर बनाकर हम सरकार और रेशियल ईक्वैलिटी कमिशन का मुँह बंद कर सकते हैं, जो पर्संटेज ऑफ़ विमेन मैनेजर्ज (महिला प्रबन्धकों का प्रतिशत) बढ़ाने को मैड हो रहा है।

डाइरेक्टर जेम्स फॉक्स को मॉरिसन और हिमानी के गुप्त सम्बन्धों की जानकारी थी, इस लिये उसने मॉरिसन द्वारा हिमानी की हिमायत करने का 'दूसरा' मतलब भी अच्छी तरह समझा था। वैसे जिन अन्य डाइरेक्टरों को इसकी जानकारी थी, उन्हें भी इसमें कोई दोष नहीं दिखा था, क्योंकि बीवी के अलावा रखैल या प्रेमिका रखना और समाज की तितलियों के साथ गुलछर्रे उड़ाना, सम्भ्रान्त गोरी सोसाइटी की शान समझा जाता है। कुछ सोचने के बाद जेम्स ने यह शर्त रखते हुए हिमानी के लिये हामी भर दी थी कि अगर मॉरिसन जिम्मेदारी ले रहा है, तो मान लेते हैं। तब चेयरमैन समेत अधिकांश डाइरेक्टरों ने हिमानी को मैनेजर बनाने का समर्थन कर दिया था।

दरअस्ल जेम्स ने हिमानी के लिये हामी भरते हुए अंदर ही अंदर एक और फैसला भी किया था कि हम एशियन डिपार्टमेंट में अपना आदमी भी रखेंगे। उसके पास बना-बनाया बहाना था कि इस डिपार्टमेंट का विस्तार हो रहा है, इस लिये हमें इसमें एक डिप्टी मैनेजर की भी जरूरत है । चूँकि इससे हिमानी पर कंट्रोल रखने के अलावा एशियाई कर्मचारियों में गुटबंदी और जासूसी कराने के काम भी कराये जा सकते थे, इस लिये जब हिमानी के भागों मैनेजरी का छींका टूटा, तो कालीचरण की क़िस्मत भी खुल गई।

जेम्स फॉक्स कालीचरण से वैसे भी बहुत खुश था, क्योंकि उसने उसे न केवल शानदार होटलों मे दावतें दी थीं और महँगे थियेटरों में नाटक दिखाये थे, बल्कि वह उसके और उसके बच्चों के लिये ढेरों क़ीमती उपहार भी भेजता रहता था। सबसे बढ़कर बात यह थी कि वह जेम्स फॉक्स का जासूस था।

मॉरिसन किसी पर उपकार करके उसकी पूरी क़ीमत वसूल किये बिना छोड़ता नहीं था। वह कम्पनी के सप्लायरों से मिलने, नये उत्पादन तैयार कराने या उनका मुआयना वगैरा करने के लिये अक्सर दौरे पर जाता था। अब हिमानी भी उसके साथ जाने लगी। इससे पहले वह मॉरिसन के बीवी-बच्चों के कहीं जाने पर ही उसके बँगले पर आती थी।

हैरिसन फूड्स का नाम उसके जिन व्यंजनों से खूब चमका और उसकी तिजोरियाँ खनखनाने लगीं, वे थे तीन रंग के खास तरह के समोसे। हल्के नारंगी रंग के चिकन (मुर्गे) के समोसों में चिकन के अलावा गुलाबी पनीर, केसर, काजू और खटमिट्ठी किशमिश होते थे। हल्के हरे रंग के समोसों में पालक, ब्रॉकली, पिस्ता और हरा धनिया तथा पीले समोसों में हल्दी, सूखा धनिया और जीरे की हल्की बघार वाले आलुओं के साथ मक्की और पीली शिमला मिर्च डाली जाती। इन रंगीन समोसों में कुछ गुप्त मसाले भी मिलाये जाते, जिनके कारण उनसे अलग तरह की सुगन्ध आती। समोसों के रंगों के मुताबिक पैकेटों में लाल, पीली और हरी चटनी भी रखी जाती। लोग उन समोसों के दीवाने हो गये और क्या भारतीय और क्या अंग्रेज, सबके घरों, 'फ़ास्ट फूड' की दुकानों और सुपरमार्किटों में वही दिखाई देने लगे। शुरू में जिस भारतीय कम्पनी को इन समोसों को केवल हैरिसन फूड्स को ही सप्लाई करने का ठेका मिला, उसे इसका श्रेय देने की बजाय हिमानी ने सारा श्रेय खुद लूट लिया।

 दरअस्ल इन समोसों के लोकप्रिय होते ही हैरिसन फूड्स ने उस कम्पनी को खरीद लिया था और इन समोसों का पेटैंट भी करवा लिया था। चूँकि इस योजना में हिमानी ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था और मॉरिसन की मदद से यह भी प्रचारित किया था कि ये समोसे मेरा आविष्कार हैं, इस लिये हैरिसन में हिमानी का डंका बजने लगा। एशियन डिपार्टमेंट हैरिसन फूड्स के लिये सोने के अंडे देने वाली मुर्गी बन ही रहा था, इस लिये हिमानी की चाँदी ही चाँदी थी।

एक बार होली के अवसर पर उसने प्रसिद्ध ग्रॉविनर होटल में एक एशियाई सन्ध्या का आयोजन किया, जिसमें गण्यमान्य एशियाई व्यंजन-उत्पादक बुलाये गये। हिमानी चहकती हुई कभी एक के साथ फ़ोटो खिंचवाती, कभी दूसरे के। वह हर मेज के पास जा-जाकर नई अदाएँ दिखा रही थी। जब वह 'तुगलक तंदूरी' के मालिक अहमद शाह के पास पहुँची, तो उसने उसका उठकर स्वागत तो अवश्य किया, लेकिन यह शिकायत भी की कि आप हमारी कम्पनी को बिजनेस नहीं देतीं।

ऐसा कैसे हो सकता है ? हैरिसन अपने सारे मेहरबानों का पूरा खयाल रखता है - हिमानी ने नारीसुलभ मोहक हँसी से अहमद शाह के वार को भोथरा करना चाहा।

केवल बातों से। जरा बताइए पिछले दो साल में आपने तुगलक तंदूरी को कितने ऑर्डर दिये हैं ? - अहमद शाह ने पूछा।

हिमानी ने स्थिति को फ़ौरन सँभालते हुए कहा - आगे से आपको शिकायत का मौक़ा नहीं मिलेगा। अहमद शाह ने मुस्कुराते हुए जेब से एक लिफ़ाफ़ा निकाला और उसे हिमानी की ओर बढ़ाते हुए कहा - चलिए, आप कह रही हैं, तो मान लेते हैं।

हिमानी जानती थी कि उस लिफ़ाफे में क्या है। उसे कई कम्पनियों की ओर से ऐसे लिफ़ाफे अक्सर मिलते रहते थे। लिफ़ाफे को हाथों में तोलते और साड़ी के पल्लू में छिपाकर पर्स के हवाले करते हुए उसने अंदाजा लगाया कि उसमें कितना माल होगा।

कुछ महीने पहले जब वह भारत के दौरे से लौटी थी और उसने 'अकाउंट्स डिपार्टमेंट' को अपने होटलों, टैक्सियों और इधर-उधर के खर्चों के बिल दिये थे, तो वह हमेशा की तरह निश्चिन्त थी कि उसके सारे बिल बिना किसी अड़चन के पास हो जायेंगे, लेकिन उसे क्या पता था कि उसके छोटे-से-छोटे खर्च में भी मीन-मेख निकाली जायेगी। दरअस्ल किसी ने कम्पनी के कुछ डाइरेक्टरों को गुप्त शिकायत की थी कि हिमानी झूठे बिल बनवाती है। न उसने इतने शहरों का दौरा किया, न होटलों में ठहरी और न ही उसने टैक्सियों का इस्तेमाल किया। भारत के उसके इस दौरे को अनावश्यक भी माना गया, क्योंकि जिस उद्देश्य से वह वहाँ गई थी, कम्पनी के 'फ़ाइनेंशल डाइरेक्टर' के विचार में उसकी कोई जरूरत नहीं थी। भला नये भारतीय पकवानों का जायजा लेने और उनकी रैसिपीज व्यंजन-विधियाँ लाने के लिये भारत जाने और हजारों पाउंड उड़ाने की क्या जरूरत थी ? ये काम तो ब्रिटेन में रहकर भी हो सकते थे और बहुत सस्ते, जहाँ हजारों इंडियन तंदूरी रेस्टोरेंट चल रहे हैं, अच्छे-से-अच्छे 'शैफ़' तथा सप्लायर मौजूद हैं और भारतीय व्यंजनों की 'विधियों' की अच्छी-से-अच्छी किताबें मिलती हैं। हिमानी के आधे बिल भी पास नहीं हुए और उसे चेतावनी अलग दी गई कि भविष्य में वह इन कामों के लिये भारत जाना बंद करे। हिमानी ने इसके विरुद्ध अपील करनी चाही, तो मॉरिसन ने उसे समझाया - देखो स्वीटी, डाइरेक्टरों का शक निराधार नहीं है और चेयरमैन ने तो थोड़ी-बहुत जाँच भी करा ली है। इसलिये जो मिल रहा है, चुपचाप ले लो। अगर इनक्वायरी हो गई, तो निलम्बित हो जाओगी और क्या पता, बरखास्त भी कर दी जाओ।

एशियन डिपार्टमेंट के अलावा हैरिसन फूड्स के इतालवी, फ़्रेंच, चीनी, अरबी और तुर्की आदि कई डिपार्टमेंट थे। यह कम्पनी दुनिया भर के व्यंजनों की सर्वोच्च उत्पादक मानी जाती थी,जो नये डिपार्टमेंट खोलकर और विभिन्न देशों को नये-से-नये व्यंजनों का निर्यात करके निरन्तर उन्नति कर रही थी। उसके अलग-अलग विभागों में सम्बन्धित देशों या क्षेत्रों के कर्मचारी बहुतायत से लगे हुए थे।

एक बार कालीचरण की बीवी और बच्चे भारत गये हुए थे, तो वह उसके घर पहुँच गई। बातों-बातों में उसने इतनी देर कर दी कि ट्यूब (मेट्रो) या बस से अकेली सफ़र न करना पड़े। कालीचरण को बड़ा असमंजस हुआ। न वह उसे उसके फ़्लैट तक छोड़ने जा सकता था, क्योंकि उसके पास कार नहीं थी और न ही रात को रुकने के लिये कह सकता था। आखिर उसे टैक्सी बुलवानी पड़ी, लेकिन हिमानी ने तब भी उठने में कोई उत्साह नहीं दिखाया।

तीसरे-चौथे दिन शाम को वह फिर कालीचरण का दरवाजा खटखटा रही थी। जब ऐसा लगभग हर शाम होने लगा, तो कालीचरण घबराया। वह चाहता, तो घर में खुद बहकर आई गंगा में रोज स्नान कर सकता था, लेकिन उसमें और चाहे जो ऐब हों, लंगोटी का ढीलापन नहीं था। और फिर, वह हिमानी से डरता भी था, उस मकड़े की तरह, जो साथी बनाने के लिये मोहक इशारे करने वाली मकड़ी से डरता है।

कालीचरण की हाँडी में दाल गलती न देखकर हिमानी ने आशु चोपड़ा को फाँसा। दरअस्ल हिमानी को मैनेजरी करना तो आता नहीं था, इस लिये उसे एक विश्वासपात्र सलाहकार और अंतरंग सहायक की हमेशा जरूरत रहती थी। चोपड़ा हैरिसन फूड्स में आने से पहले छोटे-मोटे इंडियन रेस्टोरेंटों में मैनेजरी कर चुका था। वह चुलबुला और रंगीन मिजाज था और बीवी को छोड़े हुए था। अब जो उसकी मैनेजर खुद उसकी गोद में गिरने को बेताब हुई, तो उसने झोली फैला दी।

'जनाब मैंने अपनी आँखों से देखा, दोनों एक-दूसरे की बगल में हाथ डाले हुए चल रहे थे' - अवनीन्द्र एक दिन अपने साथियों को बता रहा था।
कहाँ ? - यह पूछने पर उसने बताया कि वे ऑक्सफ़ोर्ड स्ट्रीट में शॉपिंग कर रहे थे।
वह बोला - अचानक वे मेरे सामने पड़ गये। अब वे न तो बच सकते थे और न ही छुप सकते थे। पर उनकी हिम्मत देखो, वे जरा नहीं घबराये और हँसते हुए ऐसे बातें करने लगे, जैसे उन्हें खुद अपने इश्क़ का ढिंढोरा पीटना हो। और हिमानी की दिलेरी की तो मैं भी दाद दूँगा, जिसने कहा - शॉपिंग जल्दी खतम करो अवनीन्द्र और घर पहुँचो। आज हम तुम्हारे घर कॉफ़ी पीने आ रहे हैं।

अवनीन्द्र का फ़्लैट ऑक्सफ़ोर्ड स्ट्रीट से ज्यादा दूर नहीं था और वह कोई बहाना भी नहीं बना सकता था। उसे झख मारकर जल्दी घर जाना पड़ा। लेकिन पहले वह यूस्टन स्टेशन के बगल वाली ड्रमंड स्ट्रीट से एशियाई मिठाइयाँ और नमकीन वगैरह लेने पहुँचा। वहीं से उसने अपनी पत्नी को फ़ोन किया कि मेहमान-नवाजी की तैयारी करो। लेकिन जाने क्यों, हिमानी और चोपड़ा उस दिन उसके घर नहीं आये।

जल्दी ही हैरिसन फूड्स में हिमानी और चोपड़ा की शादी की अफ़वाह इस तरह फैली, जैसे एशियाई रेस्टोरैंटों के आसपास लहसुन और मसालों की फैलती है। इसको फैलाने में अवनीन्द्र और उसके दोस्तों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। यही नहीं, उन्होंने हिमानी और चोपड़ा के पीछे एक प्राइवेट गुप्तचर एजंसी को भी लगा दिया। जल्दी ही उनके पास काफ़ी जानकारी और सुबूत जमा हो गये, जिनमें हिमानी और चोपड़ा की भारत में हुई गुप्त शादी के 'सर्टिफ़िकेट' की कॉपी भी थी। कम्पनी के नियम के अनुसार किसी कर्मचारी को मैनेजर से शादी करने की इजाजत नहीं थी।

चोपड़ा स्पष्टीकरण के लिये बोर्ड के सामने बुलाया गया, लेकिन उसने इस बात से साफ़ इनकार किया कि मेरा हिमानी से कोई रिश्ता है। उसने कहा - नहीं सर, हम अच्छे दोस्त जरूर हैं, लेकिन और कुछ नहीं।
तुम्हारे साथी तो कुछ और कहते हैं - चेयरमैन ने कहा।
वे मुझसे जलते हैं, क्योंकि मैं मेहनती हूँ और कम्पनी ने मुझे हाल ही में ज्यादा बोनस भी दिया है - चोपड़ा ने चापलूसी की चाशनी में कृतज्ञता का रंग मिलाते हुए कहा।
चोपड़ा को यह बोनस हिमानी ने दिलाया था, जिसने डाइरेक्टरों से उसकी सिफ़ारिश करते हुए कहा था कि उसकी तुलना में अव
नीन्द्र, नगेश, सबनीता और शेखर एकदम निकम्मे हैं।
चेयरमैन ने चोपड़ा और हिमानी की शादी के सर्टिफ़िकेट को उसके आगे रखते हुए पूछा - आपका इसके बारे में क्या कहना है ?
चोपड़ा के होश उड़ गये। उसने हकलाते हुए अभी सर, सर कहना शुरू किया ही था कि एक अन्य डाइरेक्टर ने उसे टोकते हुए कहा - हम ईमानदार लोगों को बोनस और इनाम देते हैं, धोखेबाजों और झूठ बोलने वालों को नहीं।
लगता था चेयरमैन बहुत ग़ुस्से में है। उसने काफ़ी सख्त रवैया अख्तियार करते हुए कहा - हम आपकी तनख्वाह से बोनस काट सकते हैं और आपको बरखास्त कर सकते हैं।
गलती हो गई, सर, मुझे दुख है। मैं इस अपराध के लिये माफ़ी चाहता हूँ।
आप जा सकते हैं - यह कहते हुए चेयरमैन ने उसे जाने का इशारा किया।

इसके बाद बंद कमरे में बोर्ड की जो मीटिंग हुई, उसमें चोपड़ा को बरखास्त करने के बोर्ड के फैसले का मॉरिसन ने कोई विरोध नहीं किया। हालांकि हिमानी की मॉरिसन के प्रति वफ़ादारी में कोई अन्तर नहीं आया था, लेकिन मॉरिसन को लगा कि हिमानी ने मुझे धोखा दिया है।

चोपड़ा के जाने से हिमानी के पर कट गये और उसका उड़ना, चहकना और फुदकना भी बंद हो गया। उधर चोपड़ा ने कम्पनी से अलग होते ही हिमानी की जिंदगी से भी किनारा करने का फैसला कर लिया। उसने हिमानी की सहायता से कालीचरण की जगह लेने का 'प्लान' बनाया था । अब हिमानी उसके लिये आम की चुसी हुई गुठली थी।

हिमानी को ज्योंही नगेश, सबनीता, शेखर और अवनीन्द्र की करतूतों का पता चला, वह उन्हें और भी दुखी करने लगी। कालीचरण ने हिमानी की डूबती हुई नैया देख ही ली थी। वह अपनी अलग शतरंज खेलने लगा। पहले तो वह हिमानी का हिमायती बन गया और फिर दोनों उन चारों को उनकी छोटी-छोटी गलतियों की कड़ी सजा देने लगे । कभी वे उनको बहुत सवेरे या देर शाम को फैक्टरियों और सप्लायरों की जाँच के लिये भेजते और कभी उनकी कई तरह की सख्त ड्यूटियाँ लगाते। वे उनकी छोटी-मोटी गलतियों के लिये उनपर जुर्माने भी करते और उनका 'सर्विस रिकॉर्ड' खराब करने के लिये लिखित चेतावनी देने में भी देर न लगाते।

उन्हीं दिनों सबनीता से एक भूल हो गई। वह कम्पनी का विज्ञापन तैयार कर रही थी, जिसमें उसने भारतीय व्यंजनों को भूल से बंगलादेशी लिख दिया। बात साधारण भी थी और गम्भीर भी। ब्रिटेन में अधिकांश रेस्टोरैंटों और व्यंजन-उत्पादकों के मालिक बंगलादेशी हैं। सबनीता ने अपनी भूल के लिये माफ़ी तो माँगी, लेकिन जिन भारतीय व्यंजनों को बंगलादेशी कहा गया था, उनके निर्माता इस विज्ञापन को देख कर नाराज हो गये। इसपर कालीचरण ने सबनीता को इतनी बुरी तरह डाँटा कि उसका रोना निकल गया। वह अगले कई दिनों तक बाक़ी तीनों पर भी गरजता और बरसता रहा।

 हैरिसन फूड्स के मुक़ाबले में नई-नई एशियाई कम्पनियाँ पहले ही खुल चुकी थीं। जो रही-सही कसर थी, वह स्टाफ़ के आपसी झगड़ों और दफ़्तर की कड़ुवाहट ने पूरी कर दी। हिमानी के गलत रवैये से बोर्ड को और भी ग़ुस्सा आया। उसके पास हिमानी द्वारा हेराफेरी करने, रिश्वत लेने, कम्पनी को बदनाम करने और कर्मचारियों का सही ढंग से प्रबन्ध न करने के सुबूत थे ही। इस लिये उसने हिमानी को रस्मी तौर पर निलम्बित करके कोई दो हफ़्ते की दिखावटी जाँच-पड़ताल कराई और फिर उसे नौकरी से निकाल दिया।

कैफे पैरिस में 'लाते' की अन्तिम चुस्की लेते हुए नगेश ने कहा - छुछूँदर तो गई, लेकिन यह साला राक्षस अभी बैठा है और अपने दाँत और पंजे पहले से भी ज्यादा खूँख्वार तरीके से निकाल रहा है। आज इस राक्षस ने हमारे यज्ञ का ध्वंस किया है - अवनीन्द्र ने मानो रामायण की याद दिलाते हुए जोड़ा। तभी नगेश ने दाँत भींचते हुए कहा - हमें इसका भी नाश करना है। लेकिन 'विश्वामित्र' जी, हमें अयोध्या से राम और लक्ष्मण को लाने की जरूरत नहीं है - सबनीता ने कहा - हम खुद इसका नाश कर सकते हैं...
...और बिना किसी विघ्न के अपने यज्ञ को पूरा कर सकते हैं - सबने हाथ मिलाते हुए कहा।

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१४ मई २०१२

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