|
अभी हिमानी लिफ्ट तक भी
नहीं पहुँची थी कि नगेश, अवनीन्द्र, शेखर और सबनीता उसका
'अन्तिम संस्कार' करने लगे। उन्होंने प्रिंटर की स्याही वाले
खाली डिब्बे का हवनकुंड बना लिया और हिमानी ने उन्हें जो लिखित
चेतावनियाँ और आदेश दिये थे, उन्हें फाड़-फाड़ कर हवनकुंड में
आहुतियों की तरह डालने लगे। साथ में वे अपने बनाये मन्त्र पढ़
रहे थे। ये वही गालियाँ थीं, जो वे रोज दबी जबान से हिमानी को
दिया करते थे। जब एक का मन्त्र खत्म होता, तो दूसरा फौरन अपना
मन्त्र शुरू कर
देता- ओम् सत्यानाशिनी स्वाहा, ओम् बेड़ागर्किनी स्वाहा,
ओम् सड़ियल थोबड़ी स्वाहा, ओम् मॉरिसन की रखैल स्वाहा। इस तमाशे
को देखने के लिये आसपास के कर्मचारी आकर उनके चारों ओर खड़े हो
गये। उनमें से एक ने हिमानी द्वारा लिखी 'भारतीय व्यंजनों की
पाक-विधि' नामक पुस्तिका की आहुति डालते हुए कहा- 'ओम् दूसरे
से लिखवाई किताब की कूड़ा लेखिका स्वाहा।' ऐसा लग रहा था मानो
हैरिसन फ़ूड्स का एशियन डिपार्टमेंट दफ़्तर नहीं, कोई यज्ञशाला
है।
1
यज्ञ के मुख्य यजमान बने चारों दोस्तों ने ज्योंही 'ओम्' कहकर
अगला मन्त्र शुरू किया, कालीचरण लौट आया। वह अकेला हिमानी को
विदा करने लिफ़्ट तक गया था। बाकी सब अपनी सीटों पर बैठे चुपचाप
उसका जाना देखते रहे थे। कालीचरण ने आते ही 'बस बस' कहकर उनका
मन्त्रोच्चार रोक दिया। फिर अफसरी ढंग से उन्हें धिक्कारते हुए
बोला- 'अगर उसके गुणों का बखान ही करना था, तो उसके मुँह पर
करते और यह हवन उसके सामने करके दिखाते। तब क्या सबको साँप
सूँघ गया था?' |